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तेलंगाना में 9 और जज निलंबित, विरोध में 200 जज सामूहिक अवकाश पर गए

हैदराबाद। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच न्यायाधीशों के अस्थायी आवंटन के खिलाफ आंदोलन मंगलवार को उस समय और तेज हो गया जब उच्च न्यायालय ने अनुशासनहीनता के आधार पर निचली अदालत के नौ और न्यायाधीशों को निलंबित कर दिया और इसके विरोध में 200 न्यायिक अधिकारी 15 दिन के लिए सामूहिक अवकाश पर चले गये।
तेलंगाना जजेज एसोसिएशन ने कल ‘उच्च न्यायालय बंद’ का आह्वान किया है। इस घटनाक्रम से तेलंगाना सरकार और केन्द्र के बीच विवाद भी बढ़ गया। टीआरएस ने वर्ष 2014 के अविभाजित आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग बनने के बाद उच्च न्यायालय का विभाजन नहीं करने के लिए केन्द्र को जिम्मेदार ठहराया। उच्च न्यायालय की आज की कार्रवाई का विरोध करते हुए करीब 200 न्यायिक अधिकारियों ने आज से 15 दिन के लिए सामूहिक अवकाश पर जाने का फैसला किया।
उच्च न्यायालय ने सोमवार को दो न्यायाधीशों को निलंबित किया था। ‘तेलंगाना जजेज एसोसिएशन’ के बैनर तले सौ से अधिक न्यायाधीशों ने रविवार को गन पार्क से राजभवन तक जुलूस निकाला था और राज्यपाल को न्यायिक अधिकारियों के अस्थायी आवंटन के खिलाफ ज्ञापन सौंपा था। सत्तारूढ़ टीआरएस ने आज आरोप लगाया कि केन्द्र अब तक उच्च न्यायालय का विभाजन नहीं करके इस मुद्दे पर ‘असंवेदनशील’ है। टीआरएस की लोकसभा सदस्य के. कविता ने आरोप लगाया कि उनके पिता एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव का इस मुद्दे पर दिल्ली में विरोध प्रदर्शन का प्रस्ताव भी है।
हालांकि केन्द्रीय विधि मंत्री डीवी सदानंद गौडा ने आज कहा कि तेलंगाना के लिए नये उच्च न्यायालय के गठन में केन्द्र की कोई भूमिका नहीं है। गौडा ने कहा कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा केन्द्र को जिम्मेदार ठहराना ‘अस्वीकार्य एवं बर्दाश्त से बाहर है।’ उन्होंने टीआरएस के इस आरोप को भी खारिज किया कि केन्द्र आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तरफ से राजनीतिक दबाव में है।
गौडा ने कहा कि तेलंगाना के लिए नए उच्च न्यायालय का गठन मुख्यमंत्री और उस उच्च न्यायालय (आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के लिए यह साझा है, और जून 2014 में पूर्व राज्य के विभाजन के बाद जिसका विभाजन नहीं हुआ है) के मुख्य न्यायाधीश के हाथों में है।

हैदराबाद में ISIS के 11 संदिग्ध पकड़े गए, सीरिया से मिल रहा था पैसा

हैदराबाद.नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने पुराने हैदराबाद शहर में 10 ठिकानों पर छापेमारी कर ISIS के एक मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है। शुरुआती जानकारी के मुताबिक, 11 लोगों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की जा रही है। एनआईए ने लोकल पुलिस की मदद से छापेमारी की है। सस्पेक्ट्स के पास से एक्सप्लोजिव्स, हथियार और 15 लाख रुपए कैश मिला है।
सूत्रों के मुताबिक, एनआईए और लोकल पुलिस की टीम ने मंगलवार देर रात ये रेड प्लान की थी। बुधवार सुबह पांच बजे इसे अंजाम दिया गया।
NIA के आईजी संजीव कुमार ने बताया कि खुफिया इनपुट पर लोकल पुलिस के साथ रेड की गई। जब्त किए गए एक्सप्लोजिव्स और हथियारों के बारे में अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। जनवरी, 2016 में भी NIA ने देश के अलग-अलग शहरों से आईएस से जुड़े 14 लोगों को अरेस्ट किया था, जिनमें से 2 हैदराबाद के थे।
आईबी ने इनपुट दिया था कि हैदराबाद के कुछ संदिग्ध सीरिया में IS के हैंडलर्स के कॉन्ट्रैक्ट में हैं। इसके बाद ये जानकारी एनआईए को दी गई। एनआईए ने जब इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस बढ़ाया तो उसके अफसर चौंक गए। आरोपी ज्यादातर वक्त सीरियाई हैंडलर्स के टच में बने रहते थे। ये लोग बाहर भी काफी कम आते थे। भारत में किसी बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए इन्हें पैसे और हथियार मुहैया कराए गए थे।
कुछ लैपटॉप और स्मार्टफोन भी जब्त किए गए हैं। इनके जरिए संदिग्ध हैंडलर्स के टच में रहते थे।

भारत सिर्फ अपने बारे में सोच रहा : चीन

चीनी मीडिया ने मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) में भारत को शामिल करने भड़क गया है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि पिछले कुछ सालों में पश्चिमी दुनिया ने भारत को बहुत कुछ दिया है और चीन को ठेंगा दिखाया है। भारत पश्चिमी देशों का आंखों का तारा बन गया है और वह अंतरराष्ट्रीय मामलों मे सिर्फ अपने बारे में सोचता है।
विश्व बिरादरी ने चीन को एमटीसीआर की इसकी सदस्यता नहीं दी और भारत का आवेदन स्वीकार कर लिया। उसने एनएसजी में भारत की सदस्यता पर चीन के विरोध को भी नैतिक रूप से सही बताया। उसने स्पष्ट किया कि चीन की बजाय एनएसजी के नियमों ने भारत को रोका। लेकिन भारत ने ऐसा दिखाने की कोशिश की कि चीन को छोड़कर सारे देश उसका समर्थन कर रहे हों। जबकि दस देशों ने एनपीटी का सदस्य न होने का हवाला देते हुए भारत की सदस्यता विरोध किया था।
भारतीयों ने ऐसे प्रतिक्रिया दी कि राष्ट्रीय हितों के आगे वैश्विक सिद्धांतों का कोई महत्व नहीं है। एमटीसीआर पर उसने कहा कि भारत की सदस्यता पर चीन में कोई हलचल नहीं दिखाई दी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मामलों में झटकों को लेकर चीनी काफी परिपक्व हैं।
अखबार के मुताबिक, भारत सरकार ने सही तरीके से प्रतिक्रिया दी। जबकि भारत के राष्ट्रवादियों को समझना होगा कि कैसे व्यवहार किया जाता है। अगर वे देश को महाशक्ति बनाना चाहते हैं तो उन्हें जानना चाहिए कि महाशक्तियां कैसे व्यवहार करती हैं।
उसने लिखा, अमेरिकी समर्थन भारत की एनएसजी सदस्यता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बना। लेकिन अमेरिका के समर्थन का यह मतलब नहीं है कि भारत को दुनिया का समर्थन मिल गया। भारत के साथ अमेरिका की नजदीकियां वास्तव में चीन को रोकने के लिए हैं।
चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर मंगलवार को सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। चीन ने कहा कि वह विवाद वाले विषयों के निष्पक्ष, तर्कसंगत और परस्पर स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए भारत के साथ बातचीत करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हांग ली ने कहा कि दोनों देशों के बीच समान हितों का पलड़ा उनके मतभेदों से भारी है।
पीएम मोदी ने सोमवार को कहा था कि एनएसजी, मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने जैसे मुद्दों पर गतिरोध के बावजूद चीन के साथ हमारा संवाद जारी रहेगा। मोदी ने कहा था कि चीन के साथ हमारा संवाद जारी है और यह जारी रहना चाहिए। उन्होंने कहा था कि चीन के साथ हमारी एक समस्या नहीं है, उसके साथ हमारी तमाम समस्याएं लंबित हैं। कई मुद्दे हैं। लेकिन हम आगे बढ़ना जारी रखेंगे।

इस्तांबुल एयरपोर्ट पर फिदायीन हमले में 36 लोगों की मौत

इस्तांबुल: तुर्की के शहर इस्तांबुल के अतातुर्क अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हुए बम धमाके में 36 लोगों की मौत हो गई है और तकरीबन 150 लोग घायल हो गए। तुर्की के पीएम के मुताबिक, शुरुआती जांच में पता चला है कि हमले में शामिल रहे तीनों आतंकियों ने खुद को धमाका कर उड़ा लिया।
अभी तक किसी संगठन ने हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली है लेकिन इसके पीछे आईएस के आतंकियों पर शक़ जताया जा रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति ने इस हमले के बाद आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय मुहिम शुरू करने की अपील की है। तुर्की में जनवरी से अब तक 6 बड़े आतंकी हमले हुए हैं जिसमें आम लोगों के साथ साथ सैनिकों को भी निशाना बनाया गया है। हालिया जानकारी के मुताबिक, मरने वालों में कोई भारतीय शामिल नहीं है।
तुर्की के प्रधानमंत्री बिनाली यिलदिरिम ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया कि विस्‍फोटों के बाद जो शुरुआती संकेत मिल रहे हैं, उससे लगता है कि इसके पीछे आतंकी संगठन आईएसआईएस का हाथ है। उन्‍होंने पत्रकारों से कहा कि ताजा सूचना के मुताबिक मरने वालों की संख्‍या बढ़कर 36 हो गई है। इसके साथ ही उन्‍होंने जोड़ा कि जो सबूत मिल रहे हैं, वे इसके पीछे आईएसआईएस का हाथ होने की तरफ इशारा कर रहे हैं। न्याय मंत्री बेकिर बोजगाद ने कहा कि 147 लोग घायल हुए हैं।
इससे पहले तुर्की के सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक स्‍थानीय समयानुसार मंगलवार रात करीब 10 बजे एयरपोर्ट टर्मिनल के प्रवेश द्वार के निकट हमलावरों ने सुरक्षाकर्मियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इससे दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी शुरू हो गई और उसके बाद एक-एक कर आत्‍मघाती बम विस्‍फोट में खुद को उड़ा दिया। हमले के बाद राष्‍ट्रपति रेकेप तैयप एर्डोगन ने आतंक के खिलाफ अंतरराष्‍ट्रीय ‘संयुक्‍त मुहिम’ का आहवान किया।
हमले की तात्‍कालिक रूप से किसी ने जिम्‍मेदारी नहीं ली है। घटना के बाद तुर्की के इस सबसे व्‍यस्‍त एयरपोर्ट से सभी उड़ानें रद्द कर दी गई हैं। इस्‍तांबुल के गवर्नर वासिप साहिन ने कहा कि तीन आत्‍मघाती हमलावरों ने इस घटना को अंजाम दिया।
एक प्रत्‍यक्षदर्शी ने सीएनएन तुर्क को बताया, ‘वह बहुत तेज धमाका था। हर आदमी दहशत में था और सभी चारों तरफ भागने लगे थे।’ सुरक्षाकर्मियों को यात्रियों को एयरपोर्ट से सुरक्षित निकालने का प्रबंध करते देखा गया। पुलिस ने घटनास्‍थल के चारों तरफ सुरक्षा चक्र का घेरा बना दिया है और सैकड़ों एंबुलेंस को वहां भेजा गया है।
पिछले एक साल में तुर्की में इस तरह के कई आत्‍मघाती बम विस्‍फोट हुए हैं। इनमें कुर्द विद्रोहियों और आतंकी संगठन आईएसआईएस का हाथ होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। आईएसआईएस पर इसलिए भी शक की सुई घूम रही है क्‍योंकि इसी मार्च में ब्रुसेल्‍स एयरपोर्ट और शहर के मेट्रो स्‍टेशन पर भी कमोबेश उसने इसी तरह के हमले किए थे, जिनमें 32 लोगों की जानें गई थीं।

छह देशों के हॉकी टूर्नामेंट के पहले मैच में जर्मनी से हारा भारत

वेलेंसिया: छह देशों के आमंत्रण टूर्नामेंट में भारतीय पुरुष हॉकी टीम की शुरुआत खराब रही, जब उसे अपने पहले ही मैच में जर्मनी के खिलाफ 0-4 से शिकस्त का सामना करना पड़ा।
जर्मनी ने पहले क्वार्टर में पांचवें मिनट में ही मैट्स ग्रामबुश के गोल की मदद से बढ़त बनाई। ग्रामबुश ने कुछ मिनटों बाद ही टीम की बढ़त को दोगुना कर दिया, जबकि मोरिट्ज फुएस्र्ते ने 14वें मिनट में एक और गोल दागकर पहले क्वार्टर में ही जर्मनी को 3-0 से आगे कर दिया।
भारतीय खिलाड़ियों ने दूसरे क्वार्टर में वापसी की और कुछ अच्छे मूव भी बनाए, लेकिन गोल नहीं कर सके। मध्यांतर तक जर्मनी की टीम 3-0 से आगे थी।
तीसरे क्वार्टर में भी दोनों टीमों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। पहले जर्मनी के मार्टिन ज्विकर और फिर क्रिस्टोफर वेस्ली को फाउल के लिए बाहर किया गया, लेकिन भारत इसका फायदा नहीं उठा पाया।
भारत ने अंतिम क्वार्टर में पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन लुकास विंडफीडर ने 57वें मिनट में पेनल्टी कार्नर को गोल में बदलते हुए जर्मनी की 4-0 से जीत सुनिश्चित की।

सुशांत राजपूत से ब्रेकअप के बाद अंकिता को मिला नया साथी!

छोटे पर्दे के कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे को नया साथी मिल गया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अंकिता टीवी एक्टर कुशाल टंडन के करीब आ गई हैं।
दरअसल कुशाल ने अपने इंस्टग्राम अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर की है, जिसमें वो अंकिता के साथ दिख रहे हैं, इसी को लेकर कहा जा रहा है कि कुशाल और अंकिता के बीच कुछ तो चल रहा है।
अब तक अंकिता लोखंडे के पूर्व ब्यॉयफ्रेंड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत अपनी राबता की को-स्टार कृति सेनन के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंट करते अक्सर देखे जाते रहे।
वैसे कुशाल का कुछ महीने पहले ही गौहर खान के साथ ब्रेकअप हुआ है, वहीं अंकिता का भी सुशांत से 2 महीने पहले ही ब्रेकअप हुआ है।

'सुल्तान' का नया गाना, शान से तिरंगा लहराते दिखे सलमान

बॉलीवुड के दंबग खान की फिल्‍म ‘सुल्‍तान’ का टाईटल ट्रैक रिलीज हो गया है। सुखविंदर सिंह की जबरदस्त आवाज में गाए हुए इस टाइटल ट्रैक में फिल्‍म की कहानी की झलक दिख रही है।
गाने में बजाया गया गिटार वाकई में जबरदस्त है। विशाल शेखर ने गाने को संगीत दिया है। गाना में सलमान खान जिम करते नजर आ रहे हैं। रणदीप हुड्डा इस फिल्म में सलमान खान के ट्रेनर बने हैं। गाने में उनकी भी झलक देखी जा सकती है।
बता दें कि, इस फिल्‍म में सलमान के साथ अभिनेत्री अनुष्‍का शर्मा भी पहलवान का किरदार निभा रही हैं। यह फिल्‍म इस ईद पर सिनेमाघरों में रिलीज की जायेगी।

रजनीकांत की फिल्म ने चुराया हमारी फिल्म का पोस्टर : इरफान खान

मुंबई: अभिनेता इरफान खान का कहना है कि सुपरस्टार रजनीकांत की आगामी फिल्म कबाली के जो पोस्टर रिलीज किया गया है वह उनकी आने वाली फिल्म मदारी से चुराई गई है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, दर्शक दोनों फिल्में देखने जाएं।
जब इरफान खान से दोनों फिल्मों के पोस्टरों में समानता के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा, ‘ पता नहीं यह कैसे हुआ। हम छोटे फिल्मकार हैं, मैने देखा कि रजनीकांतजी की फिल्म ने हमारी फिल्म का पोस्टर चोरी किया है। आप उनकी फिल्म का पोस्टर देखें और हमारी फिल्म का पोस्टर देखें। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, आप उनक और हमारी दोनों की फिल्में देखें।’
दोनों ही फिल्मों के पोस्टरों में लीड एक्टर इरफान खान और रजनीकांत के चेहरे ऊंची इमारतों के बीच नजर आ रहे हैं। हालांकि मदारी का पोस्टर फिल्म का आधिकारिक पोस्टर है, वहीं रजनीकांत के फैन्स ने साफ किया है कि कबाली का पोस्टर फैन्स ने बनाया है। वह फिल्म का ऑफिशियल पोस्टर नहीं है।
सोशल मीडिया में रजनीकांत की आगामी फिल्म के कई पोस्टर शेयर किए जा रहे है। पिछले साल सितंबर में फिल्म की शूटिंग शुरू होने के बाद रजनीकांत ने अपने ट्विटर हैंडल पर दो पोस्टर शेयर किए थे। इन दिनों कबाली के कुछ और पोस्टर्स जारी हुए हैं जिनमें से एक में रजनीकांत हाथ में गन लिए उसे देखते नजर आ रहे हैं, एक में वे सोफे पर बैठे हैं।
मदारी के बारे में इरफान ने बताया, ‘यह फिल्म एक थ्रिलर फिल्म है, जो आपके बारे में बात करती है। यह फिल्म 150 करोड़ लोगों के बारे में बात करती है कि हर इंसान के अंदर हीरो है। जब वह जागता है तो कोई उसका सामना नहीं कर सकता।’
निश्कांत कामत के साथ काम करने के एक्सपीरियंस के बारे में इरफान ने कहा, “उनके साथ का काम करना मजेदार रहा। इससे पहले उन्होंने दृश्यम, फोर्स और मुंबई मेरी जान जैसी फिल्में बनाई हैं।”

मुख्तार अंसारी के नाम पर खेला गया नाटक सपा के लिए सुखांत हो सकता था अगर…

कहा जाता है कि प्रेम और जंग में सब कुछ जायज होता है. उत्तर प्रदेश में यह बात राजनीति पर भी लागू होती है. कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी के साथ हुए विलय के बाद से चल रहे घटनाक्रम का जिस तरह से नाटकीय पटाक्षेप हुआ उससे एक बार फिर से यह बात साबित हो गई कि सत्ता की शतरंजी बिसात पर राजा को बचाना ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, फिर चाहे उसके लिए प्यादा किसी को भी क्यों न बनाना पड़े. मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा के साथ हुए विलय और फिर इस विलय के पटाक्षेप से अखिलेश को पुनर्स्थापित करने के इस नाटक में समाजवादी पार्टी ,शिवपाल सिंह यादव और स्वयं मुलायम सिंह यादव को प्यादा बना पड़ा. लेकिन इस नाटक का अंत सपा के लिए सुखांत होगा, इसमें संदेह है.
जिस दिन यह विलय हुआ उस दिन विलय के कुछ क्षण पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक जिलास्तरीय कार्यक्रम में पत्रकारों के सवाल पर कहा था कि अगर कार्यकर्ता ठीक से काम करते रहे तो समाजवादी पार्टी को किसी के विलय की जरूरत नहीं है. यह सवाल इसलिए पूछा गया था कि कौमी एकता दल के सपा के साथ विलय की तारीख के बारे में कई दिन से मीडिया में खबरें आ रही थीं. मगर अखिलेश ने उस वक़्त अपनी जुबान से न तो मुख्तार अंसारी का नाम लिया और न ही इस बहुप्रचारित विलय की खबरों पर कोई विराम लगाया. हाल में हुए राज़्य सभा और विधान परिषद चुनावों में भी मुख्तार और उनके कौमी एकता दल के वोट अपने पाले में पड़ते देख कर भी उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. राजधानी लखनऊ के सभी अखबारों में इस आशय के समाचार छप रहे थे. टीवी चैनलों और न्यूज़ पोर्टलों में भी विलय की ख़बरें थीं. मगर अखिलेश ने इन अटकलों को खारिज नहीं किया. लखनऊ में इस बारे में पत्रकारों के सवालों को भी वे टालते रहे. मगर जब लखनऊ में मुख्तार के दो बड़े भाइयों की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल यादव ने कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की घोषणा कर दी तो अखिलेश यादव को तुरंत गुस्सा आ गया.
नाटक के पहले प्यादे बने मुलायम के पुराने साथी और मंत्री बलराम यादव. अखिलेश ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया. बलराम यादव का अपराध यह बताया गया कि उनकी ही मध्यस्थता के कारण कौमी एकता दल का सपा में विलय हुआ था. इसके बाद बलराम यादव को मीडिया के सामने आंसू बहाते देखा गया. ये बलराम यादव वही हैं जिनके मुलायम सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए उत्तर प्रदेश का पहला बड़ा सरकार संरक्षित घोटाला यानि आयुर्वेद घोटाला हुआ था. बहरहाल बलराम यादव को अगर गुनाहगार माना गया था तो उनसे बड़ा गुनाह मुलायम सिंह यादव का था जिन्होंने विलय को हरी झंडी दिखाई थी और शिवपाल यादव का भी जिन्होंने विलय की सार्वजनिक घोषणा की थी. इसके अगले दिन अखिलेश का अलग ही रंग था. उन्होंने पत्रकारों से बहुत संयत ढंग से कहा कि मुख्तार अंसारी को लेखर कोई विवाद नहीं है और इस मामले नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव का फैसला स्वीकार्य है.
इस बीच जब यह बात चर्चा में आ गयी कि विलय होते ही मुख्तार अंसारी को उनकी सुविधा को देखते हुए आगरा जेल से लखनऊ बुला लिया गया है तो नाटक में एक और पात्र जोड़ दिया गया. ये थे कारागार मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया.उन्होंने आननफानन में एक प्रेस कांफ्रेंस बुला कर मामले को संभालने की कोशिश की. हालांकि यह दांव उलटा पड़ गया क्योंकि पत्रकारों के सवालों से उलझे रामूवालिया के मुंह से मुख्तार की जेल बदले जाने के मामले में यह निकल गया कि प्रदेश में चींटी भी चलती है तो सीएम को जानकारी रहती है. हालांकि बाद में वे यह सफाई देते रहे कि मुख्यमंत्री को मुख्तार मामले की जानकारी नहीं थी. इस प्रकरण में एक सफाई शिवपाल यादव की ओर से भी आई कि यह फैसला पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का था लेकिन, अब संसदीय बोर्ड की बैठक में इस पर अंतिम फैसला होगा.
मगर पटकथा में एक दृश्य और बाकी था. बैठक से पूर्व ही एक नेशनल न्यूज चैनल के लाइव प्रोग्राम में मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी कि उन्हें मुख्तार अंसारी जैसे लोगों का समाजवादी पार्टी में आना मंजूर नहीं. हालांकि यह माना जा रहा था कि ऐसी घोषणा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद होगी.
दरअसल इस पूरे नाटक का मक़सद अखिलेश की 2012 वाली छवि को पुनर्स्थापित करना था. तब उन्होंने इसी तरह पहले घोषणा हो जाने के बाद दागी डीपी यादव और उनकी राष्ट्रीय परिवर्तन पार्टी का समाजवादी पार्टी में शामिल होना रद्द करवा दिया था. चुनावी माहौल में फिर से अखिलेश की बेदाग छवि को पेश करने के मक़सद से मुख्तार प्रकरण में अखिलेश की घोषणा के लिए सबसे तेज चैनल के सजीव प्रसारण को मंच चुना गया और बाद में जब तक संसदीय बोर्ड ने कौमी एकता दल का सपा में विलय रद्द होने की घोषणा की, उसके पहले ही अखिलेश की साफ़ सुथरी राजनीति के काफी कसीदे पढ़े जा चुके थे. साथ ही 2012 की साइकिल यात्रा की तरह ही अखिलेश की विकास रथ यात्रा निकाले जाने की घोषणा भी हो चुकी थी.
अब चाहे इसे चाचा पर भतीजे के भारी पड़ने की बात कह कर प्रचारित किया जाए या फिर मुलायम का धोबी पछाड़ दांव कह कर, मगर इस बार और 2012 की स्थितियों में बहुत अंतर है. तब अखिलेश यादव सत्ता परिवर्तन की लड़ाई लड़ रहे थे और मायावती के भ्रष्ट शासन से त्रस्त, बदलाव चाह रही जनता को एक विकल्प के रूप में दिख रहे थे. लेकिन अब अखिलेश यादव खुद सत्ता में हैं. अब वे सिर्फ मुख्तार को आपराधिक राजनीति का प्रतीक बता कर खुद बेदाग शासन के प्रतीक नहीं बन सकते. जनता की समस्या सिर्फ राजनीति के बाहुबली ही नहीं हैं. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं, नेताओं और मंत्रियों की करतूतों के लिए भी वह अखिलेश से ही जवाब चाहती है. पुलिस के यादवीकरण, पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार, पुलिस नियुक्तियों में धांधलियों, लगातार बढ़ रही पुलिसकर्मियों की हत्याओं और खुद पुलिस के अपराध तंत्र में शामिल होने की बढ़ती घटनाओं के लिए भी जवाब अखिलेश यादव को ही देना है. राजधानी के एक थाने में पुलिस द्वारा दबंग अपराधियों को बचाने के लिए बलात्कार पीड़िता के परिवार को ही जेल भेज देने जैसे अनेक मामलों के लिए भी जनता अखिलेश से ही जवाब मांगेगी.
इसलिए मुख्तार अंसारी के नाम पर हुए नाटक का समाजवादी पार्टी के पक्ष में सुखात अंत अब महज एक कल्पना ही साबित होने वाला है. इस प्रकरण के राजनीतिक प्रभावों का आकलन तो बाद में होगा मगर अभी तो अखिलेश की छवि सुधारने का यह नाटक फ्लॉप ही दिखता है.

शिवसेना का केंद्र सरकार पर तंज, कहा- यहां चाय से ज्यादा केतली गरम…

मुंबई : महाराष्‍ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिव सेना ने एक बार फिर काले धन के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की है. मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में शि‍वसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके चुनावी वादे को लेकर सवाल उठाए और पूछा कि आखि‍र सरकार ने दो साल के कार्यकाल में कितने देशवासियों के बैंक खातों में 15 लाख रुपये जमा करवाए हैं?
मुखपत्र के संपादकीय में पार्टी ने लिखा है कि राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए चुनाव से पहले कालेधन की वापसी की महत्वपूर्ण घोषणा की गई थी उसका क्या हुआ? दो साल में आखिर कितने देशवासियों के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा करवाए हैं केंद्र सरकार ने? आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कालेधन को लेकर अपनी राय लोगों के सामने रखी थी और अघोषित संपत्त‍ि का खुलासा 30 सितंबर से पहले करने को कहा था.
प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम पर नि शाना साधते हुए शिवसेना ने लेख का शीर्षक ‘चाय से ज्यादा केतली गरम… मन की बात!’ दिया है. शिवसेना के मुख्‍सपत्र में कालेधन को केंद्र में रखकर यह लेख लिखा गया है. लेख में तंज कसते हुए कहा गया है कि , ‘देश बदल रहा है, लेकिन हमें मुफ्त चाय नहीं चाहिए? चुनाव से पहले जो आपने वादा किया था उसके अनुसार हमारे बैंक खाते में 15 लाख रुपये कब जमा करते हो, पहले बताओ? ऐसा कोई व्यक्ति चाय की चुस्की मारते हुए पूछे तो क्या उसका जवाब क्या होगा? उसे मारें, जलाएं या पकड़ें, ऐसा सवाल कुछ लोगों के मन में स्वभाविक तौर पर उठ सकता है.’
‘सामना’ में ऐसा सवाल पूछने वालों के लिए जवाब का उल्लेख भी है जिसके अनुसार – ‘बाबा रे, प्रधानमंत्री मोदी 50 साल की गंदगी साफ करने में लगे हैं. उनके हाथ में छड़ी जरूर है, लेकिन वह जादू की छड़ी मालूल नहीं होती. इसलिए सिर्फ दो साल में सब कुछ बदल जाएगा, ऐसी उम्मीद पालने की गलती मत करो. प्रधानमंत्री को कुछ और समय दो.’
शि‍वसेना ने सामना में लिखा है कि कालाधन उद्योगपति, फिल्मवाले और आतंकवादी संगठनों के साथ राजनीति में भी प्रचुर मात्रा में मिलता है. कालाधन ढूंढने के लिए स्विट्जरलैंड या मॉरिशस जाने की आवश्‍यकता नहीं है. कालाधन हमारे खुद के घर में है, उसे खोदकर निकाले तो भी मोदी जी का मिशन काला धन सफल हो जाएगा. लेख में आगे लिखा गया है कि मोदी के ‘मन की बात’ कड़क चाय के समान है, लेकिन मुंबई में कालेधन पर लोग ‘मन की बात’ सुने इसलिए कई स्थानों पर मुफ्त में ‘चाय-पानी’ की करवाई गई.
संपादकीय में लिखा गया है कि अगर कोई सिरफिरा सच बोलने की हिम्मत करता है इसलिए उसे मारा जाए, जलाया जाए यह बोलना हमारी संस्कृति के अनुसार उचित नहीं है.

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