परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने से वंचित रहने के तीन दिन बाद आज सोमवार को भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का सदस्य बन जाएगा। एमटीसीआर दुनिया के चार महत्वपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात करने वाले महत्वपूर्ण देशों के समूह में से एक है।
भारत ने पिछले वर्ष एमटीसीआर की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने इस आशय की जानकारी देते हुए कहा कि एनएसजी पर भारत अपना प्रयास जारी रखेगा।
विदेश सचिव एस जयशंकर सोमवार को फ्रांस, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग के राजदूतों की मौजूदगी में इस क्लब में शामिल होने के लिए दस्तावेज पर हस्ताक्षर करेंगे। विकास स्वरूप ने एनएसजी की सदस्यता न मिलने को असफलता मानने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
एकमात्र देश ने भारत की सदस्यता के दावे का विरोध किया था। गौरतलब है कि परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात करने वाले समूहों में भारत के शामिल होने की इच्छा वर्षों पुरानी है। इस क्रम में भारत ने एमटीसीआर और एनएसजी के लिए जोर लगाया था।
भविष्य में उसका इरादा इससे संबंधित दो अन्य समूहों ऑस्ट्रेलियन ग्रुप और वास्सेनार एग्रीमेंट में शामिल होने की है। एनएसजी में हालांकि भारत चीन के विरोध की दीवार नहीं लांघ पाया।
मगर एमटीसीआर में अंत समय में इटली का विरोध छोड़ने के बाद भारत का रास्ता साफ हो गया। स्वरूप ने बताया कि सोमवार को भारत एमटीसीआर का पूर्ण रूप से सदस्य बन जाएगा। उन्होंने कहा कि एनएसजी मामले में भारत की पाकिस्तान से तुलना कहीं से उचित नहीं है।
एमटीसीआर का सदस्य बनने से भारत को प्रमुख उत्पादनकर्ताओं से अत्याधुनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी और निगरानी प्रणाली खरीद में मदद मिलेगी, जिसे केवल एमटीसीआर सदस्य देशों को ही खरीदने की इजाजत है। सदस्य होने के बाद भारत पर लगा अंकुश हट जाएगा।
भारत के लिए अमेरिका से ड्रोन तकनीकी लेना सरल हो जाएगा। साथ ही भारत मिसाइल तकनीकी का निर्यात कर सकेगा। हेग आचार संहिता में शामिल होने को मजबूती मिलेगी।
यह संहिता बैलेस्टिक मिसाइल अप्रसार संधि की निगरानी करती है। इसके साथ ही रूस के साथ संयुक्त उपक्रम को बल मिलेगा।
एमटीसीआर का उद्देश्य मिसाइलों के प्रसार को प्रतिबंधित करना, रॉकेट सिस्टम को पूरा करने के अलावा मानव रहित जंगी जहाजों पर 500 किलोग्राम भार के प्रक्षेपास्त्र को 300 किलोमीटर तक ले जाने की क्षमता वाली तकनीक को बढ़ावा देना है। व्यापक विनाश वाले हथियारों और तकनीक पर पाबंदी लगाना इस समूह का उद्देश्य है।
MTCR में शामिल हुआ भारत, चीन और पाकिस्तान अब हो गए मिसाइल की ताकत में हमसे पीछे
ब्रेक्जिट के बाद लेबर पार्टी संकट में : मुखिया कोर्बीन को लेकर हो रही है बगावत
लंदन: जेरेमी कोर्बीन के अपने विदेश मंत्री को बर्खास्त कर देने और इसके बाद भारतीय मूल की एक मंत्री सहित शैडो कैबिनेट (समानांतर मंत्रिमंडल) के अन्य वरिष्ठ सदस्यों के इस्तीफा देने से ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी को आज बगावत का सामना करना पड़ा। यूरोपीय संघ (ईयू) के जनमत संग्रह से ढुलमुल तरीके से अपने दिग्गज नेता के निबटने पर पार्टी में यह मतभेद उभर कर आया है।
हिलेरी बेन को विदेश मंत्री पद से बर्खास्त किए जाने के बाद वित्त विभाग की मुख्य शैडो मंत्री सीमा मल्होत्रा कोर्बीन के खिलाफ बगावत करने वाले अपने सात सहकर्मियों की फेहरिस्त में शामिल हो गई हैं। कोर्बीन के मंत्रालय में भरोसा नहीं रह जाने की बात कहने के बाद शैडो विदेश मंत्री हिलेरी बेन को बर्खास्त कर दिया गया। इसके शीघ्र बाद उनके सहकर्मी शैडो स्वास्थ्य मंत्री हेइदी एलेक्जेंडर ने ट्विटर पर अपने इस्तीफे की घोषणा की। इस्तीफा देने वाले अगले मंत्री ग्लोरिया डे पीयरो थे जो युवा मामलों और मतदाता पंजीकरण के शैडो मंत्री थे। साथ ही, स्कॉटलैंड के लिए शैडो मंत्री इयान मर्ररे ने भी इस्तीफा दे दिया। मल्होत्रा के इस्तीफा देने के शीघ्र बाद शैडो परिवहन मंत्री लिलियन ग्रीनवुड, शिक्षा मंत्री लुसी पॉवेल और पर्यावरण, खाद्यान्न एवं ग्रामीण मामलों के प्रभारी केरी मैककार्थी ने भी इस्तीफा दे दिया। कोर्बीन के शैडो कैबिनेट के अन्य सदस्यों के भी इसी तर्ज पर चलने की उम्मीद है क्योंकि कई लेबर सांसद ब्रिटेन के ईयू पर जनमत संग्रह से निपटने के तरीके पर कोर्बीन की आलोचना कर रहे हैं।
28 सदस्यीय यूरोपीय संघ से बाहर होने का देश को स्तब्ध कर देने वाला फैसला कई लेबर सांसदों की इच्छा के खिलाफ है। बेन ने कहा, ‘‘यदि जेरेमी नेता बने रहते हैं तो अगला चुनाव जीतने का कोई भरोसा नहीं है। जेरेमी को एक फोन कॉल में मैंने उनसे कहा कि मैंने पार्टी का नेतृत्व करने की उनकी क्षमता पर भरोसा खो दिया है और उन्होंने मुझे बर्खास्त कर दिया।’’
खबरों के मुताबिक यदि कोर्बीन अविश्वास प्रस्ताव की अनदेखी करते हैं तो इस स्थिति में बेन शैडो मंत्रियों को इस्तीफा देने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। बेन ने पार्टी नेतृत्व के लिए खुद के आगे आने की महत्वाकांक्षा से इनकार करते हुए बीबीसी से कहा कि ईयू जनमतसंग्रह नतीजे के बाद हमारे देश की इस बेहद नाजुक घड़ी में लेबर पार्टी को सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए पार्टी को मजबूत और प्रभावी नेतृत्व की जरूरत है। फिलहाल हमारे पास वह नहीं है और इस पर भरोसा नहीं है कि जेरेमी के नेता रहते हम आम चुनाव जीत पाने में सक्षम होंगे। 67 वर्षीय कोर्बीन अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं ।
ब्रेग्जिट के पक्ष में जनमत संग्रह आने के बाद लेबर सांसद डेम मार्गरेट हॉज और एन कोफी ने संसदीय लेबर पार्टी (पीएलपी) के अध्यक्ष जॉन क्रेयर को अविश्वास प्रस्ताव का एक नोटिस सौंपा। प्रस्ताव में कोई संवैधानिक शक्ति नहीं है लेकिन उसमें कल पीएलपी की अगली बैठक में चर्चा की मांग की गयी है। अध्यक्ष इस पर फैसला करेंगे कि इस पर चर्चा हो या नहीं। यदि यह स्वीकार हो जाता है तो मंगलवार को लेबर सांसदों का एक गुप्त मतदान हो सकता है।
अब सलमान करेंगे सारे गायकों की छुट्टी!
सलमान खान का गायकों से पंगा पुराना है. न सिर्फ अरिजीत सिंह बल्कि सोनू निगम से भी उनके रिश्ते अब ठीक नहीं रहे. पिछले साल टी-सीरीज की एक पार्टी में न सिर्फ सलमान ने पब्लिकली यह कहा था कि गायकों को फिल्मी गानों के लिए जरूरत से ज्यादा क्रेडिट दिया जाता है बल्कि पार्टी में मौजूद सोनू निगम के सामने ही यह भी कह दिया कि उनके गानों को किसी सोनू निगम की जरूरत नहीं है, और वे खुद ही इतने अच्छे गायक हैं कि टेक्नोलाजी की थोड़ी सी मदद लेकर अपने गाने खुद गा सकते हैं! बात यहीं खत्म नहीं हुई, और ‘किक’ के लिए पार्श्वगायन करने स्टूडियो आए सोनू निगम से वहां भी सलमान ने ऐसा ही कुछ कहा. कहते हैं कि सोनू निगम इस गलत बात से इतने नाराज हुए कि न सिर्फ अब वे सलमान के लिए गाते नहीं हैं बल्कि जब भी मौका मिलता है पब्लिकली ये भी दर्ज कराते हैं कि कैसे आजकल ऑटोट्यून की गईं आवाजों के भरोसे ही हिंदी गीत चल रहे हैं. वे यह भी कहने से नहीं चूकते कि अच्छे गायकों की असल परीक्षा तो स्टेज पर गाते वक्त होती है.
लेकिन सलमान अपनी बात को लेकर अभी भी सीरियस हैं. खुद को अच्छा गायक साबित करने के लिए और बाकी गायकों की छुट्टी करने के लिए वे पिछले कई महीनों से लगातार गायकी का अभ्यास कर रहे हैं! इसमें उनकी मदद अनु मलिक के भतीजे और आज के हिट कंपोजर अरमान मलिक कर रहे हैं. वे भाई का आदेश आते ही अपने सगे भाई और गायक अमाल मलिक के साथ भाई के पनवेल वाले फार्महाउस पर पहुंच जाते हैं. ताकि भाई की गायकी पर सभी मिलकर काम कर सकें!
‘हीरो’ फिल्म में इन्हीं अरमान मलिक के गीत ‘मैं हूं हीरो तेरा’ को सलमान ने अपनी जिद्द मनवाने के लिए ही खुद गाया था और इसकी तैयारी के लिए न सिर्फ महीनों तक इसके रफ वर्जन को जिम से लेकर अपनी गाड़ी तक में बजवाया बल्कि ऑटोट्यून सॉफ्टवेयर का भी लेटेस्ट वर्जन ही संगीतकार से खरीदवाया! अब वे आगे भी ऐसा ही करके न सिर्फ अच्छे गायकों को हाशिए पर ढकेल देना चाहते हैं बल्कि आपके शब्दकोश में आए ‘कर्कश गायक’ शब्द की परिभाषा भी शायद अपने नाम करवाना चाहते हैं!
क्या ‘सरबजीत’ की दुर्दशा के जिम्मेदार खुद उसके निर्देशक हैं?
‘सरबजीत’ में जितनी तारीफ रणदीप हुड्डा के अभिनय की हुई उतनी ही बुराई फिल्म के ट्रीटमेंट और ऐश्वर्या से ओवर द टॉप एक्टिंग करवाने के लिए फिल्म के निर्देशक ओमंग कुमार की भी हुई. अब फिल्मी गलियारा इन खबरों की गूंज से पटा हुआ है कि पब्लिक एपीयरेंस, रियलिटी शोज और कान फिल्म फेस्टिवल में शिरकत करने की वजह से ओमंग कुमार ने ‘सरबजीत’ के पोस्ट-प्रोडक्शन पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया. फिल्म का फाइनल कट भी उनकी अनुपस्थिति में तैयार हुआ और एडिटिंग से जुड़े ज्यादातर निर्णय उन्होंने फोन पर ही अपने संपादक को दिए. फिल्म की लंबाई को कम करने से लेकर ऐश्वर्या के ओवर द टॉप अभिनय पर ओवर द टॉप ही बैकग्राउंड स्कोर चढ़ाने जैसे फैसले भी उन्होंने चलते-फिरते ही लिए और अपना ज्यादातर वक्त उस वक्त मिल रही लाइमलाइट को एंजॉय करने में खर्च किया. ऐसा ही होता है, जब निर्देशक खुद को ही फिल्म की ऐश्वर्या राय समझने लगता है, तब वो फिल्म पर नहीं सिर्फ अपनी एपीयरेंस पर काम करने लगता है और फिल्म सरबजीत जैसी फ्लॉप हो जाती है.
कहानी ‘गुनाहों का देवता’ उपन्यास पर न बन सकी उस फिल्म की जिसके नायक बच्चन थे
धर्मवीर भारती के सर्वकालिक महान उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ को पर्दे पर सिर्फ एकबार उतारा गया है और वह भी एक साधारण से सीरियल ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ में. यह सीरियल पिछले साल आया था. भारतीय जनमानस पर एक लंबे समय तक इस उपन्यास का जो असर रहा उसे देखते हुए इस बात पर हैरानी होती है कि गुनाहों का देवता पर कोई फिल्म नहीं बनी. किसी महान उपन्यास की ऐसी नाकद्री शायद ही दूसरे देशों के सिनेमा ने अपने साहित्य के साथ की होगी लेकिन हमारे यहां इस उपन्यास पर सिर्फ एक कोशिश के बाद ही फिल्मकारों ने हमेशा के लिए हार मान ली है.
वो पहली और शायद आखिरी कोशिश 1969 में शुरू हुई जब इस उपन्यास पर ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ नाम से ही फिल्म बनाने का फैसला लिया गया. उपन्यास का ओरिजनल नाम ‘गुनाहों का देवता’ इस फिल्म के टाइटल के लिए उपयोग नहीं किया जा सका क्योंकि उसी दौरान रिलीज हुई जितेंद्र की एक फिल्म का नाम भी ‘गुनाहों का देवता’ था, हालांकि उस फिल्म का धर्मवीर भारती के उपन्यास से कोई लेना देना नहीं था.
‘एक था चंदर एक थी सुधा’ में नायक का किरदार निभाने के लिए अमिताभ बच्चन को लिया गया और नायिका के लिए रेखा को. यह उस दौर की बात है जब बच्चन फिल्मों में अपने करियर की शुरुआत फ्लॉप फिल्म से कर चुके थे और इस वजह से इस फिल्म के लिए भी धन जुटाने में निर्माताओं को पसीने छूट रहे थे. फिल्म की शूटिंग कुछ दिनों तक इलाहाबाद में हुई भी और अमिताभ व रेखा के बीच रोमांटिक गीत भी शूट हुए. लेकिन जल्द ही पैसों की तंगी ने फिल्म को डिब्बाबंद करवा दिया.
एक लंबा वक्त गुजरने के बाद 1973 में ‘जंजीर’ आई और बच्चन की बढ़ चुकी मार्केट वेल्यू ने इस फिल्म के दोबारा फ्लोर पर जाने की उम्मीदें बढ़ा दीं. लेकिन इस दौरान बच्चन न सिर्फ दूसरी बड़ी फिल्मों में व्यस्त हो चुके थे बल्कि एंग्री यंग मैन की छवि में भी कैद हो चुके थे. पैसा लगाने वाले सेठों ने ऐसी किसी भी फिल्म पर पैसा लगाने से इंकार कर दिया जो बच्चन की धन कमाकर देने वाली इमेज को भुनाने की नीयत नहीं रखती थी.
इसके बाद ‘गुनाहों का देवता’ के इस फिल्मी संस्करण को बड़ा परदा कभी नसीब नहीं हुआ. कई सालों बाद दक्षिण के एक निर्माता पूर्णचंद्र राव ने डिब्बाबंद ‘एक था चंदर…’ के राइट्स खरीदने के साथ ही अमिताभ बच्चन का फिल्म के लिए किया कांट्रेक्ट भी अपने नाम कर लिया और उस कांट्रेक्ट के सहारे अमिताभ को रजनीकांत की एक फिल्म में छोटी-सी भूमिका ऑफर की. यह भूमिका वक्त के साथ बड़ी होते-होते मुख्य नायक की हो गई और 1983 में अमिताभ बच्चन के हिस्से में रजनीकांत और हेमा मालिनी के साथ वाली मशहूर फिल्म ‘अंधा कानून’ आई.
विडंबना देखिए, एक तरफ तो ‘एक था चंदर…’ 13-14 साल के लंबे इंतजार के बाद भी बन न सकी, वहीं उस फिल्म के डिब्बाबंद होने की वजह से ही अमिताभ बच्चन के हिस्से में ‘अंधा कानून’ नाम की वो फिल्म आई जो अपने समय की बड़ी सफलता कहलाई.
साइना ने फिर किया कमाल, दूसरी बार जीता ऑस्ट्रेलियन ओपन का खिताब
भारतीय बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल ने चीन की सुन यू को हराकर ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज अपने नाम कर ली है। सिडनी में हुए मुकाबले में साइना ने एक घंटे 11 मिनट में ऑस्ट्रेलियन ओपन का खिताब जीता। साइना ने सुन यू को 11-21, 21-14, 21-19 से हराया।
पहले सेट में साइना नेहवाल को 11-21 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन साइना ने जबरदस्त वापसी करते हुए दूसरा सेट 21-14 से और तीसरा सेट 21-19 से जीत लिया। इसके साथ ही साइना ने इस साल का पहला खिताब अपने नाम कर लिया।
इससे पहले साइना ने चीन की ही वांग यिहान को सीधे सेटों में हराकर ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज के फाइनल का टिकट कटाया था। सेमीफाइनल में वर्ल्ड नंबर 8 साइना ने वर्ल्ड नंबर 2 यिहान को 21-8, 21-12 से हराया। यह ऑस्ट्रेलियाई ओपन में साइना की दूसरी खिताबी जीत है इससे पहले 2014 में भी यहां खिताबी जीत दर्ज की थी। इस सत्र के पहले खिताब के साथ साइना ने 7.5 लाख डॉलर ईनामी राशि भी जीती।
4 दर्जन से भी ज्यादा लोग हैं टीम इंडिया के कोच के दावेदार
मार्च-अप्रैल में भारत में खत्म हुए टी-20 वर्ल्ड कप के बाद टीम डायरेक्टर के रुप में रवि शास्त्री का कार्यकाल खत्म होने के बाद से टीम इंडिया में कोच का पद खाली है। अगले महीने जुलाई में टीम के वेस्टइंडीज जाने से पहले बोर्ड चाहता है कि नए कोच का चुनाव कर लिया जाए।
बोर्ड ने इसी सिलसिले में पहली जून को अपनी वेबसाइट पर नए कोच के लिए आवेदन मांगे थे और इसके लिए आवेदन करने के वास्ते 10 जून तक का समय दिया था।
अब कोच पद के लिए टीम इंडिया के पूर्व डायरेक्टर रवि शास्त्री और चयन समिति प्रमुख संदीप पाटिल सहित 57 लोगों ने मुख्य प्रशिक्षक पद के लिए आवेदन कर डाला है। आवेदन करने की अंतिम तिथि 10 जून थी।
बीसीसीआई ने एक बयान के जरिए इस बात की जानकारी दी है। हालांकि उसने आवेदन करने वालों के नामों की कोई जानकारी नहीं दी है। बीसीसीआई सचिव का कार्यालय अब इन आवेदनों को खंगालेगा और जो लोग जरूरी मापदंडों पर खरे उतरेंगे उनके नामों को आगे बढ़ाया जाएगा।
शास्त्री और पाटिल के अलावा जो अन्य प्रमुख नाम चल रहे हैं उनमें पूर्व तेज गेंदबाज वेंकटेश प्रसाद, बलविंदर सिंह संधू और पूर्व बल्लेबाज ऋषिकेश कानितकर शामिल हैं।
शास्त्री ग्रुप के सपोर्ट स्टाफ भरत अरुण, आर श्रीधर और संजय बांगड़ ने मुख्य प्रशिक्षक पद के लिए आवेदन नहीं किया है और संभवत: वे उस दूसरे दौर का इंतजार कर रहे जब बीसीसीआई बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण के लिए स्पेशलिस्ट कोच के लिए भर्ती करेगा।
जहां तक विदेशी नामों में सबसे बड़े नामों का सवाल है तो उसमें ऑस्ट्रेलिया से एक बड़ा नाम आ रहा था। मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि ऑस्ट्रेलिया के पूर्व तेज गेंदबाज और इंग्लिश काउंटी में यॉर्कशायर के कोच जेसन गिलेस्पी ने भी इस पद के लिए आवेदन किया है। हालांकि गिलेस्पी ने इससे इंकार किया है।
ऑस्ट्रेलिया के ही एक अन्य पूर्व क्रिकेटर स्टुअर्ट लॉ जो जुलाई 2011 से लेकर जून 2012 तक बांग्लादेश के कोच रहे हैं ने भी टीम इंडिया का कोच बनने की इच्छा जताई है।
बीसीसीआई के सचिव अजय शिर्के 57 आवेदनकर्ताओं में से नाम छांटने के बाद क्रिकेट की एडवाइजरी पैनल के पास संशोधित नाम भेजेंगे। जुलाई में भारतीय टीम के कैरेबियाई दौरे से रवाना पहले से फाइनल निर्णय लिए जाने की खबर है।
वो देश, जहां फिल्मों को सेंसर करना है संविधान के खिलाफ
अभिषेक चौबे की फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ को सेंसर किए जाने से जुड़ा विवाद एक मौका है जब फिल्मों और टीवी को सेंसर करने की स्वस्थ परंपराओं की शुरुआत की जा सकती है। इस जाँच की कसौटी को बनाने में अमरीका और यूरोप में फिल्मों की सेंसरशिप पर एक नजर डालने से मदद मिल सकती है। वैसे भारत में सेंसर को लेकर दोहरी दिक्कत है।
एक फिल्म सेंसर बोर्ड तो है ही जो प्रदर्शन से पहले हर फिल्म को देख कर उसे सार्वजनिक प्रसारण के लिए उपयुक्त या अनुपयुक्त करार देता है तो दूसरी ओर ऐसी घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं जब सेंसर का प्रमाणपत्र हासिल करने वाली फिल्मों का प्रदर्शन राजनीतिक या धार्मिक संगठनों के कार्यकर्ता स्थानीय स्तर पर रोक देते है।
सेंसर का तरीका बदलने से इस समस्या से निजात मिल सकती है। साठ के दशक तक पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों में सेंसरशिप के नियम भारत की ही तरह कड़े थे। अमरीका में साठ के दशक में सेंसर की पाबंदियाँ नरम की गईं। ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन में साठ के दशक के मध्य से पहले ये कानून उदार नहीं थे।
आज काफी उदार कानूनों के बावजूद सेंसरशिप दूसरे रास्तों से अपना हस्तक्षेप करती रहती है। अपनी कठोर सेक्युलर संस्कृति के लिए चर्चित फ्रांस जैसे देश में भी मार्टिन स्कोरसीज़ की 1988 में प्रदर्शित फिल्म ‘दि लास्ट टेम्पटेशन ऑफ क्राइस्ट’ को कई शहरों के मेयरों ने प्रदर्शित नहीं होने दिया था। इसके पीछे वहाँ की प्रभावशाली कैथॅलिक लॉबी थी।
लेकिन यह एक अपवाद है। आज अमरीकी और यूरोपीय फिल्मों के लिए सेक्स, सेक्शुएलिटी और नग्नता का चित्रण अपने-आप में कोई बेचैन कर देने वाली समस्या नही है। इन फिल्मों में मैथुन के दृश्य भी आमतौर से दिखाए जाते है। लेकिन भारतीय फिल्मों में चुम्बन दिखाने को लेकर भी काफी बहस होती रही है।
इसी तरह हिंसा का मसला है। पश्चिमी फिल्मों में भीषण हिंसा और रक्तपात का चित्रण रोजमर्रा की जिदगी को दिखाता है, पर भारतीय पर्दे पर दिखाई जाने वाली मारपीट में घूँसों की आवाज तो खूब आती है, पर उसकी तुलना में न तो हड्डी टूटती है और न ही खून निकलता है।
इसी भारतीय रवैये के कारण यूरोप के कला सिनेमा के प्रभाव में बनी कला फिल्मों ने अपनी विषय-वस्तुओं से सामान्यतया सेक्स को दूर रखा जबकि फ्रांस और जर्मनी में बनी कला फिल्मों का एक मुख्य लक्षण सेक्स और सेंशुलिटी का चित्रण भी था।
अमरीका में तो इन फिल्मों का लोकप्रिय बाजार सेक्स सिनेमा के तौर पर ही तैयार हुआ था। खास बात यह है कि सेक्स का बिना संकोच इस्तेमाल करने वाली यूरोप की कला फिल्मों में वहाँ की सरकारों का पैसा लगा था।
अब तो स्थिति यह है कि अमरीका और जर्मनी में फिल्मों को सेंसर करना संविधान के खिलाफ माना जाता है। हॉलीवुड की फिल्मों पर ‘मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एंड डिस्ट्रीयूटर्स ऑफ अमेरिका’ नामक संस्था नजर रखती है जो सरकारी न हो कर फिल्म व्यवसाय द्वारा ही 1922 में बनाई गई थी।
23 साल तक इसके अध्यक्ष रहे विलियम एच हेज़ के नाम पर इसे हेज कोड के नाम से भी जाना जाता है। हेज की मान्यता थी कि अगर हॉलीवुड संघीय सरकार के हस्तक्षेप से खुद को बचाना चाहता है तो उसे खुद को सेंसर करने की कोशिश करनी चाहिए।
शुरुआत में यह काम हेज कोड ने किया। पर तीस के दशक में अपराध जगत और गिरोहबाजो को केंद्र में रख कर बनी फिल्म की आलोचना की प्रतिक्रिया में एक फिल्म निर्माण संहिता जारी की गई। इसका पालन करना सभी फिल्म कंपनियों के लिए जरूरी था।
1968 में इसकी जगह ‘मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ (एमपीएए) ने एक रेटिंग सिस्टम लागू किया जो आज तक सफलतापूर्वक साथ काम कर रहा है। हम कई गलत बातों के लिए पश्चिम और अमरीका की तरफ देखते है। अगर अमरीका से कुछ सीखना ही है, तो ये सीखना चाहिए कि उनका फिल्म उद्योग बिना सरकारी हस्तक्षेप के खुद को कैसे सेंसर करता है। जो हॉलीवुड में होता है, वह बॉलीवुड में भी हो सकता है।
ग्लेशियर सिकुड़ने से नहीं सूखेंगी नदियां
ग्लेशियरों के सिकुड़ने या पिघलने से नदियों में पानी खत्म नहीं होगा। उच्च हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों से गंगा व ब्रह्मपुत्र बेसिन में आने वाले पानी का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि ग्लेशियरों के सिकुड़ने से नदियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
अध्ययन के मुताबिक हिमालय की मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए कम से कम इस शताब्दी में तो नदियों में पानी की मात्रा पर कोई अंतर नहीं आने वाला। पर्यावरण से जुड़े कुछ संगठन अक्सर यह आशंका जताते रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से सिकुड़ रहे ग्लेशियरों के कारण नदियों में पानी खत्म हो जाएगा।
स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक डब्ल्यूडब्ल्यू इमरजील, एफ पिकोटी और एमएफपी ब्रिकेंस ने हिमालय क्षेत्र में इस बाबत अध्ययन किया। उच्च हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों से ब्रह्मपुत्र और गंगा में आने वाले पानी की मात्रा जांची गई। पाया गया गया कि नदियों में ग्लेशियर का सिर्फ 10 फीसदी पानी ही होता है। नदियों में बाकी पानी बारिश और भूगर्भ जलस्रोतों से आता है।
वैज्ञानिकों की मानें तो जलवायु परिवर्तन से बारिश के समय में तो बदलाव आया है लेकिन वर्षा जल की मात्रा में कोई कमी नहीं आई है। उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग से पहले रिमझिम बारिश कई दिनों तक चलती थी, लेकिन अब एक ही समय में इकट्ठी बारिश हो जा रही है।
हिमालय क्षेत्र में अब बर्फबारी के बाद बर्फ जल्द पिघल जाती है, जिससे ग्लेशियरों को नुकसान हो रहा है। अगर ग्लेशियर से पिघल कर आने वाला पानी बहुत कम हो जाएगा तो भी बारिश से नदियों को पर्याप्त जल मिलता रहेगा। देश के वैज्ञानिक भी यही बात कहते आए हैं।
CM हरीश रावत सोशल मीडिया पर कर रहे शिकायतों का समाधान
अब मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सोशल मीडिया को लोगों की समस्याओं के समाधान के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
पहली बार रविवार को मुख्यमंत्री हरीश रावत का सोशल मीडिया संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ। वह अपने फेसबुक व ट्वीटर अकाउंट के माध्यम से आनलाइन लोगों से रूबरू हुए। उनके लाइव आते ही बड़ी संख्या में लोगों ने कमेंट करने शुरू कर दिए। यही कारण रहा की रविवार को फेसबुक पर अपने फालोअर्स की संख्या दो लाख को पार कर गई।
ऊधम सिंह नगर के नील भंडारी ने अपने क्षेत्र में स्वीकृत मार्ग पर निर्माण कार्य शुरू करवाने का मुख्यमंत्री से अनुरोध किया, उन्होंने तत्काल वहां के डीएम से फोन पर वार्ता कर निर्माण कार्य शुरू कराने के निर्देश दिए। सुनील दत्त सहित कई लोगों ने बेरोजगारों की समस्या पर मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित किया, जिस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार इस वर्ष अंत तक 30 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध करा देगी।
थराली के अभिषेक राणा ने मुख्यमंत्री को बताया कि वहा दिव्यांग बच्चों का आवासीय विद्यालय है जो बजट के अभाव में समस्या से जूझ रहा है, जिस पर सीएम ने तुरंत ही दो लाख रुपये की धनराशि विद्यालय के लिए स्वीकृत कर दी। इसके अलावा और भी सैकड़ों लोगों के सुझाव, शिकायतें आई जिनमें बहुतों को मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत रूप से जवाब दिए। मुख्यमंत्री ने सभी सुझावों को रिकार्ड रखने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए।