अमरीका में डैलस के अधिकारियों के मुताबिक एक विरोध प्रदर्शन के दौरान बंदूकधारियों ने चार पुलिस वालों की गोली मारकर हत्या कर दी. पुलिस के दो काले आदमियों को गोली मारने के विरोध में ये प्रदर्शन चल रहा था. इस विरोध प्रदर्शन के दौरान अचानक गोलीबारी होने से वहां भगदड़ मच गई. एक संदिग्ध को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है जबकि दूसरे ने आत्मसमर्पण कर दिया. डैलस के पुलिस प्रमुख डेविड ब्रॉउन ने बताया कि बंदूकधारियों ने 11 अधिकरियों को घात लगाकर निशाना बनाया. इससे चार अधिकारियों की मौत हो गई. उन्होंने बताया कि गोलीबारी में कई अन्य पुलिस अधिकारी घायल हैं और उनमें से कुछ की हालत काफी गंभीर है. डेविड ने बताया हम मानते है कि "ये संदिग्ध इन अधिकारियों को तीनों तरफ से घेरने के लिए अपनी पोज़ीशन ले रहे थे. उनकी योजना अधिक से अधिक अधिकारियों को मारने की थी." पुलिस ने बताया कि ऐसा लगता है कि दोनों बंदूकधारियों ने प्रदर्शन रैली के दौरान किसी 'ऊंची जगह' से गोलियां दागीं थीं. मार्च आयोजित करने वालों में से एक रेवरेंड जेफ हुड ने डैलस मॉर्निंग न्यूज को बताया कि गोलीबारी होते ही उन्होंने लोगों को बचाव के लिए धक्का-मुक्की करते देखा. उन्होंने कहा, "मैं लोगों को सड़क से हटाने की कोशिश करते हुए वहां से से भागा और मैं अपने आपको चेक कर रहा था कि कहीं मुझे गोली तो नहीं लग गई." बम टीम गोलीबारी की जगह पर संदिग्ध के छोड़े गए गए संदेहास्पद उपकरण की जांच कर रही हैं. पुलिस ने कंधे पर राइफल लटकाए एक संदिग्ध की फोटो जारी की. हालांकि ये साफ नहीं है कि वह गोलाबारी में शामिल था, बाद में पुलिस ने ट्वीट किया कि उसने खुद ही आत्मसमर्पण कर दिया था. डैलस के मेयर माईक रॉलिंग्स ने कहा ये शहर के लिए "दिल तोड़ने वाली घटना थी". मिनेसोटा में फिलांडो कैस्टिल और लुइज़ियाना के बैटन रूज़ में आल्टन स्टर्लिंग की मौत पुलिस की गोली लगने से हुई थी. ये मौतें इस प्रदर्शन का कारण बनी. इन दोनों घटनाओं के वीडियो वायरल होने से पूरे अमरीका में राष्ट्रीय बहस छिड़ गई. अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पुलिस के काले लोगों को गोली मारने की इ घटनाओं पर चिंता ज़ाहिर की और कहा, "सभी निष्पक्ष विचारधारा वाले लोगों को चिंतित होना चाहिए." उन्होंने कहा "जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो हमारे साथी नागरिकों के एक बड़े हिस्सा को लगता है जैसे यह उनकी त्वचा के रंग की वजह से है, उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जा रहा और ये दुख देता है." डैलस में हो रहा विरोध भी पूरे अमरीका में पुलिस के अफ्रीकी अमरीकियों के खिलाफ जानलेवा हमलों को लेकर था.
अमरीका: प्रदर्शन के दौरान 4 पुलिसवालों की हत्या
इराक युद्ध : रिपोर्ट आ चुकी है, सबक बाकी हैं
सर जॉन चिलकॉट की अगुवाई वाले पैनल ने बुधवार को जो ‘इराक वार इंक्वायरी रिपोर्ट’ जारी की, वह ब्रिटेन में कइयों के लिए एक तरह से उसकी पुष्टि ही है जो वे पहले से मानते थे. फिर भी इस रिपोर्ट के निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इराक पर हमले के कारणों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया. रिपोर्ट यह भी कहती है कि इस मसले को शांति से सुलझाने के लिए जो विकल्प हो सकते थे, उन्हें पूरी तरह से आजमाए बिना ही ब्रिटेन को युद्ध में उतार दिया गया. इन निष्कर्षों में समकालीन राजनीति और भविष्य की नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता है. जांच में यह भी पता चला है कि ब्लेयर सरकार इस युद्ध के परिणामों को झेलने के लिए भी पूरी तरह से तैयार नहीं थी.अमेरिका और ब्रिटेन के इराक पर हमला करने और सद्दाम हुसैन की सरकार को गिराने के 13 साल बाद भी इस युद्ध का औचित्य साबित नहीं किया जा सका है. ब्लेयर और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसके लिए जो कारण दिए थे वे हवा-हवाई साबित हो चुके हैं. न तो इराक में कोई व्यापक जनसंहार के हथियार मिले, न ही हमला करने वाले अल कायदा और सद्दाम बीच कोई संबंध साबित कर पाए. यानी उस युद्ध का कोई औचित्य नहीं था जिसके नतीजे में अब तक लाखों इराकी मारे जा चुके हैं और उनकी एक बड़ी आबादी अपनी जड़ों से उखड़ चुकी है. इस युद्ध के चलते इराक में जो बर्बादी हुई और अराजकता फैली उसने कई अतिवादी संगठनों के लिए उर्वर जमीन तैयार कर दी. आज दुनिया में सबसे बर्बर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) की जड़ें ऐसे ही एक संगठन 'अल कायदा इन इराक' तक जाती हैं. इससे भी बुरा यह है कि इन बड़ी शक्तियों ने इराक की त्रासदी से कोई सबक नहीं सीखा. इराक पर हमला विनाशकारी साबित हुआ है, यह साफ दिखने पर भी पश्चिमी जगत ने 2011 में लीबिया में एक और सरकार गिरवा दी. इराक वाली गलती फिर दोहराई गई जिसने आतंकियों के लिए एक और स्वर्ग तैयार कर दिया. ब्रिटेन के मौजूदा प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भी 2003 में इराक युद्ध के पक्ष में वोट दिया था. कैमरन सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ भी सैन्य कार्रवाई चाहते थे लेकिन उनका यह प्रस्ताव 2013 में ब्रिटिश संसद ने खारिज कर दिया. अमेरिका और ब्रिटेन ने भले ही सीरिया पर सीधे हमले की अपनी योजना टाल दी हो लेकिन, वे वहां पर सरकार विरोधी गुटों को मदद देना जारी रखे हुए हैं. इससे वहां हालात खराब होते जा रहे हैं जिसका फायदा आईएस और जबात अल नुसरा जैसे आतंकी संगठनों को हो रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि तानाशाहों का राज भी बर्बरता का होता है. लेकिन लड़ाई या फिर गृहयुद्ध के जरिये उन्हें सत्ता से बेदखल करना कहीं ज्यादा खतरनाक होता है जैसा कि संकट में घिरे ये देश साबित कर रहे हैं. आज पश्चिमी एशिया और पूर्वी अफ्रीका में जो अराजकता फैली हुई है उसकी जड़ में इराक युद्ध ही है. यह अस्थिरता कब खत्म होगी कोई नहीं जानता. टोनी ब्लेयर की मुद्रा अब भी ऐसी नहीं लगती कि उन्हें कोई पछतावा है लेकिन, उनके उत्तराधिकारी अगर भविष्य में ऐसी गलतियां रोकने के प्रति गंभीर हैं तो वे चिलकॉट समिति के निष्कर्षों से आंखें मूंदे नहीं रह सकते. जैसा कि लेबर पार्टी के मुखिया जेरमी कॉर्बिन का कहना था, ‘चिलकॉट रिपोर्ट ने जिन फैसलों की कलई खोली है उन्हें लेने वालों को अपने फैसलों के नतीजे भुगतने चाहिए. चाहे वे जो भी हों.’
विंबलडन में भारत को दोहरा झटका, सानिया-बोपन्ना मिक्स्ड डबल्स में हारे
भारतीय स्टार सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना को विंबलडन टेनिस टूर्नामेंट के मिश्रित युगल में मंगलवार को अपने-अपने जोड़ीदारों के साथ हार का सामना करना पड़ा. सानिया और क्रोएशिया के उनके जोड़ीदार इवान डोडिग की शीर्ष वरीयता प्राप्त जोड़ी पहला सेट जीतने के बावजूद नील स्कुपस्की और अन्ना स्मिथ की गैरवरीय ब्रिटिश जोड़ी के हाथों दो घंटे सात मिनट तक चले मैच में 6-4, 3-6, 5-7 से हार गई.
सानिया और डोडिग को पहले दौर में बाई मिली थी. सानिया अब केवल महिला युगल में चुनौती पेश करेगी, जिसमें उन्होंने अपनी स्विस जोड़ीदार मार्टिना हिंगिस के साथ क्वार्टर फाइनल में जगह बना ली है. वहीं बोपन्ना और ऑस्ट्रेलिया की उनकी जोड़ीदार एनस्तेसिया रोडियानोवा की जोड़ी तीसरे दौर में पहुंचने में सफल रही लेकिन उससे आगे नहीं बढ़ पाई. जुआन सेबेस्टियन काबेल और मारियन डुक मारिन की गैरवरीयता प्राप्त कोलंबियाई जोड़ी ने बोपन्ना और रोडियानोवा की 13वीं वरीय जोड़ी को 7-6, 6-3 से हराया.
इस हार से बोपन्ना का विंबलडन का सफर भी समाप्त हो गया. बोपन्ना और रोमानिया के फ्लोरिन मर्जिया पुरूष युगल में पहले ही बाहर हो चुके थे. मिश्रित युगल में अब भारत की चुनौती लिएंडर पेस के हाथों में है. उनकी और हिंगिस की 16वीं वरीय जोड़ी ने कल रात न्यूजीलैंड के आर्टम सिताक और जर्मनी की लौरा सीगमंड को आसानी से 6-4, 6-4 से पराजित करके तीसरे दौर में प्रवेश किया था. उधर लड़कियों के वर्ग में भारत की करमन कौर थांडी भी शुरूआती सेट में जीत का फायदा नहीं उठा पाई और दूसरे दौर के मैच में जार्जिया की मरियम वोल्कवाद्जे से 6-4, 2-6, 2-6 से हार गईं.
मीका सिंह पर मॉडल ने दर्ज करवाया बदसलूकी और छेड़छाड़ का केस
बॉलीवुड सिंगर मीका सिंह पर मुंबई की एक मॉडल और फैशन डिजाइनर ने बदसलूकी और छेड़छाड़ का केस दर्ज करवाया है. जवाबी शिकायत मीका ने भी दी है जिसमें जबरन 5 करोड़ रुपए वसूलने के लिए धमकी देने के आरोप लगाए गए हैं. पुलिस मामले की जांच कर रही है.
मीका सिंह के स्टाफ के साथ बहस के बाद अचानक इस महिला का बाल महिला कांस्टेबल ने पकड़ा और उसे बाहर ले गई. काफी देर चले ड्रामे के बाद महिला महिला वर्सोवा पुलिस स्टेशन पहुंची जहां उसने बकाया पैसा मांगने पर बदसलूकी और फिर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए शिकायत दी.
बाद में मीका की ओर से दी गई जवाबी शिकायत में भी महिला पर जबरन 5 करोड़ रुपए मांगने के लिए धमकाने की बात कही गई है. मीका पर आरोप लगाने वाली महिला एक मॉडल और फैशन डिजायनर है.मुंबई पुलिस मामले की जांच में जुट गई है.
मीका पहले भी विवादों में रहे हैं. कुछ समय पहले दिल्ली में एक कार्यक्रम में एक डॉक्टर को स्टेज पर थप्पड़ मारने का वीडियो भी सामने आया था जिसके बाद उन पर केस दर्ज हुआ था. करीब 10 साल पहले अपनी बर्थ डे पार्टी में अभिनेत्री राखी सावंत को जबरन किस करने के बाद राखी ने काफी हंगामा किया था और मामला पुलिस तक पहुंच गया था.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि शिकायत के आधार पर वरसोवा थाने में आईपीसी की धाराओं 354 (महिला की शील भंग करना), 323 (चोट पहुंचाना) और 504 (जानबूझकर अपमान करना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई.
उन्होंने कहा कि माडल अक्सर मीका के घर जाया करती थी. हालांकि आरोप खारिज करते हुए मीका ने शाम को जवाबी शिकायत दर्ज कराई और कहा कि माडल उससे जबरन धन वसूलने का प्रयास कर रही थी.
मिस तिब्बत तेनजिंग सांज्ञी को सातवें आसमान पर होना चाहिए था, पर इसका उल्टा क्यों हो रहा है?
तेनजिंग सांज्ञी तकरीबन एक महीने पहले मिस तिब्बत चुनी गई हैं. उनके लिए बीते 27 दिन अबतक के सबसे हंसी-खुशी वाले दिन होने चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 21 साल की यह लड़की तिब्बती महिलाओं के लिए एक आदर्श बननी चाहिए थी लेकिन सांज्ञी सोशल मीडिया पर अपने ही समुदाय के लोगों के निशाने पर हैं.
इसका कारण यह है कि वे तिब्बती भाषा – यू त्सांग, नहीं जानतीं. उनके बारे में सोशल मीडिया पर आई एक टिप्पणी कहती है, ‘यदि किसी को तिब्बती भाषा का बुनियादी ज्ञान भी नहीं है तो उसे तिब्बती महिलाओं के सौंदर्य का प्रतिनिधि बनने की अनुमति कैसे दी जा सकती है. यह मजाक है और पूरी तरह गलत है…’ फेसबुक पर डोल्मा सचु मे-लुंग लिखती हैं , ‘टूटी-फूटी और मिलावट वाली भाषा तुम को कहीं नहीं ले जाएगी… यदि तुम तिब्बत के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकतीं तो तुम मिस तिब्बत नहीं हो…’
इस तरह की आलोचनाओं की बाढ़ आने के बाद संज्ञी को अपील करके बताना पड़ा कि वे एक तिब्बती शरणार्थी की बेटी हैं और उस माहौल में पली-बढ़ी हैं जहां उनका वास्ता तिब्बती बोलने वालों से नहीं पड़ा. फिलहाल उनकी अपील से सभी लोग सहमत हो गए हों ऐसा नहीं है लेकिन इस बार की मिस तिब्बत प्रतियोगिता से जुड़ा एक विवाद जरूर खत्म हो गया है, और शायद तबतक के लिए जबतक यह प्रतियोगिता दूसरी बार फिर आयोजित नहीं की जाती.
तिब्बती मूल की लड़कियों के लिए मैक्लॉयडगंज में हर साल मिस तिब्बत प्रतियोगिता का आयोजन होता है. हिमाचल प्रदेश का यह शहर तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय है. यहां 2002 से सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित हो रही है और बिना विवाद के आज तक एक भी आयोजन नहीं हुआ है.
यह सौंदर्य प्रतियोगिता लॉब्सेंग वांग्याल ने शुरू करवाई थी. धर्मशाला में रहने वाले इस फोटो जर्नलिस्ट ने जब अपने समुदाय के बीच मिस तिब्बत प्रतियोगिता के आयोजन का विचार रखा तो बड़े-बुजुर्गों ने उन्हें बुरी तरह झिड़का. इनका कहना था कि इससे मैक्लियॉडगंज की बदनामी होगी, जबकि उसे समुदाय के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा की उपस्थिति की वजह से बेहद पवित्र माना जाता है.
तिब्बती समुदाय के वरिष्ठ लोगों की चिंताएं अपनी जगह जायज थीं कि क्यों इस प्रतियोगिता में लड़कियों को बिकिनी भी पहननी थी. तिब्बती महिलाएं परंपरागत रूप से घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट – चुबा और पूरी बांहों का ब्लाउज पहनती हैं. इस समुदाय में पश्चिमी देशों के तंग परिधानों को अच्छा नहीं समझा जाता. हालांकि इसके बाद भी वांग्याल अपनी योजना पर कायम रहे.
इस आयोजन के पीछे वांग्याल का तर्क है कि यह सौंदर्य प्रतियोगिता खूबसूरत लड़कियों का रैंप पर ठुमकते हुए चलनाभर नहीं है. उनके मुताबिक, ‘यह एक राजनीतिक आयोजन है जहां हम अपनी पहचान, संस्कृति और हमारी गौरवशाली परंपराओं का उत्सव मनाते हैं और इस आयोजन के जरिए बताते हैं कि हम एक देश हैं.’
इस आयोजन को अब तक 14 साल हो गए हैं लेकिन तिब्बती समुदाय के बीच अभी-भी इसे पूरी तरह मान्यता नहीं मिली है. तिब्बती समुदाय के एक स्त्रीवादी संगठन – तिब्बतन फेमिनिस्ट कलेक्टिव की सह-संस्थापक के सेंग सवाल उठाती हैं, ‘यह अपने आप में हास्यास्यपद नहीं है कि जिस आयोजन में मडजांग्समा – यानी बुद्धिमान, बहादुर और सही सीरत वाली महिला का चुनाव होना है उसकी टैग लाइन कहती है – ब्यूटी विद ब्रेन, लेकिन यहां आखिरी दिन तक ब्रेन की तरफ तो किसी का ध्यान ही नहीं जाता?’ यह तिब्बती समुदाय के सिर्फ एक व्यक्ति की राय नहीं है और इसी के चलते इस आयोजन को शुरुआत में काफी बुरी नजर से देखा जाता था. इन सालों में चार बार ऐसे भी मौके आए जब सौंदर्य प्रतियोगिता के लिए सिर्फ एक लड़की ने दावेदारी की और आखिरकार उसे ही मिस तिब्बत के ताज से नवाजा गया.
मिस तिब्बत को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भाग लेने भेजा जाता है और चीन की आपत्ति के चलते बीते सालों में कुछ विवाद भी हुए हैं. 2004 और 2007 में मिस तिब्बत को अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं से आखिरी समय में नाम वापस लेना पड़ा क्योंकि उनकी उपस्थिति पर चीन ने एतराज जताया था. चीन का कहना था कि ये लड़कियां प्रतियोगिता के दौरान अपने नाम वाली कपड़े की जो पट्टी पहनती हैं उसमें मिस तिब्बत के बजाय मिस तिब्बत-चीन लिखा होना चाहिए. जब इन लड़कियों ने ऐसा करने से इनकार किया तो उन्हें प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेने दिया गया.
इस साल यांज्ञी के मिस तिब्बत चुने जाने पर उनको तिब्बती भाषा न आने से जुड़ा विवादभर चर्चा में नहीं है. तिब्बत के ‘डोनाल्ड ट्रंप’ कहे जाने वाले वांग्याल पर आरोप है कि उन्होंने अपनी पसंद की प्रतियोगी को जिताने के लिए नतीजों में हेरफेर की है.
इन विवादों के बावजूद इसबार की मिस तिब्बत सौंदर्य प्रतियोगिता एक मायने में अपेक्षाकृत ज्यादा सफल साबित कही जा सकती है. प्रतियोगिता के फाइनल में चार लड़कियां पहुंची थीं – मसूरी की डेंचिन वांग्मो, न्यूयॉर्क की तेनजिन डावा, कर्नाटक के बायलाकुप्पे की तेनजिन डिकी और मनाली की तेनजिन संज्ञी. इन प्रतियोगियों के साथ वांग्याल दलाई लामा का आशीर्वाद लेने भी पहुंचे थे और दलाई लामा के साथ उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर कई लोगों ने शेयर की थी. इसके चलते तिब्बती समुदाय में इसबार की सौंदर्य प्रतियोगिता का कुछ खास विरोध नहीं हुआ.
पांच जून को तिब्बतन इन्स्टिट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में मिस तिब्बत प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था और इसे देखने के लिए तकरीबन 2000 हजार लोग जुटे थे. प्राकृतिक चिकित्सक-काउंसलर ऊषा डोभाल और एक योग शिक्षक सुनीता सिंह चारों राउंड की जज थीं. स्थानीय ज्वेलर ने मिस तिब्बत के लिए चांदी के ताज की व्यवस्था की थी साथ ही एक लाख रुपये का नकद ईनाम दिल्ली के एक तिब्बती व्यापारी की तरफ से प्रायोजित था.
संज्ञी के प्रतियोगिता जीतने के साथ ही उन्हें तिब्बती भाषा न आने का विवाद शुरू हो गया था. अपनी आलोचना के बाद संज्ञी की जिस अपील का जिक्र हमने ऊपर किया वह उन्होंने मिस तिब्बत वेबसाइट और अपने फेसबुक पेज पर की थी. इसमें तिब्बती भाषा न जानने की वजह बताते हुए वे लिखती हैं, ‘… मेरी भाषा से जुड़ी कमजोरियां मुझे कहीं से भी कम तिब्बती नहीं बनातीं.’
संज्ञी की इस पोस्ट के बाद समुदाय के कई लोग उनके बचाव में भी आए. इन लोगों का कहना था कि 20 साल से कम उम्र के ज्यादातर तिब्बती अलग-अलग स्थानों और मुश्किल परिस्थितियों में पलेबढ़े हैं. और इसलिए अपनी भाषा पर पकड़ न होने के लिए इन्हें जिम्मेदार ठहराना जायज नहीं है. ‘विश्व में हर कहीं, पलायन के साथ मातृभाषाओं पर खतरा बढ़ जाता है क्योंकि तब पलायन करने वाले लोग अन्य भाषाओं के प्रभाव में आते हैं.’ तिब्बत की निर्वासित सरकार की संसद के सदस्य ल्हाग्यारी नामग्याल डोलकर कहते हैं, ‘यही बात तिब्बती भाषा के ऊपर भी लागू होती है.’
'बीफ' विरोधी अभियान ने क्रिकेट की गेंद के दाम आसमान पर पहुंचा दिए हैं
कुछ समय से चल रहे ‘बीफ’ विरोधी अभियान का असर उस खेल पर भी पड़ रहा है जिसे भारत में दूसरा धर्म कहा जाता है. द हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ समय से स्वयंभू गौ रक्षा दलों द्वारा व्यापारियों पर किए जा रहे हमलों में बढ़ोतरी के चलते क्रिकेट की गेंदों की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं.
उत्तर प्रदेश में क्रिकेट की गेंदों बड़ा कारोबार है. गाय की खाल की आपूर्ति में पहले की अपेक्षा काफी गिरावट आ गई है. यही वजह है कि राज्य में चल रही फैक्ट्रियों ने गेंदों की कीमतों में 100 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी है.
अखबार से बात करते हुए मेरठ स्थित एक ऐसी ही फैक्ट्री के निदेशक का कहना है, ‘हमें अब ब्रिटेन से चमड़ा आयात करना पड़ रहा है. यह महंगा है क्योंकि इस पर इंपोर्ट ड्यूटी और दूसरे कई टैक्स लगते हैं. आखिर में इसका नुकसान खरीदने वाले को हो रहा है. साल भर पहले तक जो बॉल 400 रु की मिलती थी आज 800 की मिल रही है.’
बड़ी कंपनियों के पास तो गाय का आयातित चमड़ा इस्तेमाल करने का विकल्प है लेकिन, छोटे उत्पादकों को भैंस के चमड़े से काम चलाना पड़ रहा है जो गुणवत्ता के मामले में उतना अच्छा नहीं होता. जानकारों के मुताबिक यह मोटा होता है जिससे न सिर्फ रंगाई में दिक्कत आती है बल्कि गेंद बनने में लगने वाला समय भी बढ़ जाता है.
गाय के चमड़े के लिए उद्योग जगत अब उन राज्यों पर निर्भर है जहां गोवध पर प्रतिबंध नहीं है. इनमें केरल, पश्चिमी बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल है. लेकिन यहां से होने वाली आपूर्ति मांग के हिसाब से बहुत कम है.
मुंबई में बिल्डरों की मनमानी पर लगेगी लगाम, टाइम पर घर नहीं दिया तो होगा मुकदमा
मुंबई। मुंबई या महाराष्ट्र में अपने घर का सपना अब साकार हो सकता है। अब अगर बिल्डर तय वक्त पर फ्लैट खरीदारों को उनका घर नहीं सौंपते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा। महाराष्ट्र सरकार के आदेश के बाद पुलिस ने सर्कुलर जारी कर दिया है। सरकार की पहल से जहां खरीदार खुश हैं वहीं बिल्डरों में निराशा है।
महाराष्ट्र पुलिस की ओर से जारी इस सर्कुलर को फ्लैट खरीदारों के लिए अच्छे दिनों की आहट के रूप में देखा जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार के आदेश के बाद जारी यह सर्कुलर राज्य के लोगों के लिए राहत लेकर आया है। इस सर्कुलर के मुताबिक तय वक्त पर घर नहीं देने वाले बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई होगी, खरीदार थाने में बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा सकते हैं।
इस सर्कुलर के आते ही प्रशांत बालाकृष्णन की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। प्रशांत ने 2009 में मुंबई के दहिसर में मशहूर बिल्डर डीबी रियलिटी के प्रोजेक्ट में 1 BHK का फ्लैट बुक कराया था। बिल्डर ने तीन साल में यानी 2012 तक घर देने का वादा किया, लेकिन तय वक्त आते ही बिल्डर ने फ्लैट सौंपने का नया वक्त 2015 मुकर्रर कर दिया। करीब 90 फीसदी भुगतान और ऊपर से ईएमआई का भार इसके बावजूद बिल्डर की मार देखिए 2016 में भी प्रशांत का अपने घर में रहने का सपना सपना ही है।
महाराष्ट्र चैंबर हाउसिंग के चेयरमैन धर्मेश जैन का कहना है कि इस फैसले से बिल्डरों के कामों पर असर पड़ेगा, अगर ऐसा है तो हमे सरकार सारी कानूनी इजाजत जल्द से जल्द दे दें, हम अपना प्रोजेक्ट समय पर कर देगें, पर हमें सरकार से ही इजाजत देरी से मिलती है तो हम क्या करें। इस मामले में हम सरकार से जरूर बात करेगें।
महाराष्ट्र सरकार का फैसला बिल्डरों के अलावा सोसायटी पर भी लागू होगा। बिल्डर असोसिएशन की दलील आम लोगों को हजम नहीं हो रही। जानकार तो इस तरह की सख्ती देश के हर हिस्से में चाहते हैं ताकि जिंदगी भर की कमाई से अपने घर का सपना साकार हो सके।
पश्चिम रेलवे ने यात्रियों को लौटाई एक करोड़ से ज्यादा की रकम
मुंबई: पश्चिम रेलवे ने दो दिन में एक करोड़ रूपये से भी ज्यादा की राशि रिफंड के रूप में वापस की है। मुंबई के पास डहाणू में मालगाड़ी के 11 डिब्बे पटरी से उतरने की वजह से पश्चिम रेलवे का मुंबई से दिल्ली का रूट बुरी तरह प्रभावित हुआ। अप और डाउन दोनों तरफ की लंबी दूरी की रेलगाड़ियां रद्द करनी पड़ीं।
लोग महीनों पहले रेल टिकट बुक करा लेते हैं इसलिए रेलवे को टिकट के पैसे वापस देने पड़े। रेलवे ने यात्रियों की सुविधा के लिए मुंबई सेन्ट्रल, बांद्रा टर्मिनस, बोरीवली, सूरत, वलसाड और डहाणू रोड स्टेशन पर स्पेशल रिफंड काउंटर खोला था।
हादसा 4 जुलाई 2016 को रात 2 बजकर 50 मिनट पर हुआ था। जेएनपीटी से मुरादाबाद जाने वाली मालगाड़ी के 11 डिब्बे पटरी से उतर गए। दुर्घटनाग्रस्त सभी डिब्बे हटाने, पटरी और ओवरहेड वायर की मरम्मत कर फिर से यातायात शुरू करने में तकरीबन 30 घंटे का समय लगा। इस कारण पश्चिम रेलवे की ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की करीब 500 बीटेक सीटें घटी
उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय में 11 जुलाई से शुरू होने जा रही बीटेक काउंसिलिंग में इस बार सीटों की संख्या कम हो गई है। गत वर्ष के मुकाबले इस साल करीब 500 सीटें कम होंगी। जबकि, काउंसिलिंग के लिए जेईई मेंस में 17 हजार छात्र शामिल हुए थे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस साल बीटेक में दाखिलों की स्थिति कैसी रहने वाली है।
गत वर्ष प्रदेश के बीटेक कॉलेजों की 11548 सीटों के लिए तकनीकी विवि ने काउंसिलिंग कराई थी। इस साल इनकी संख्या घटकर 11064 पर आ गई है। 31 कॉलेजों की इन सीटों पर दाखिले के लिए ऑनलाइन काउंसिलिंग 11 जुलाई से शुरू होने जा रही है। अभ्यर्थी ऑनलाइन काउंसिलिंग में घर बैठे भी अपनी च्वाइस भर सकते हैं।
प्रथम चरण का शुल्क जमा करने की तिथि : 11 से 14 जुलाई, प्रथम चरण के लिए च्वाइस फिलिंग : 13 से 18 जुलाई, प्रथम चरण की बीटेक सीट अलॉटमेंट : 18 जुलाई, आवंटित सीटों पर दाखिलों की तिथि : 19 से 22 जुलाई, दूसरे चरण का शुल्क जमा करने की तिथि : 25 से 27 जुलाई, दूसरे चरण के लिए च्वाइस फिलिंग : 27 से 29 जुलाई, दूसरे चरण की बीटेक सीट अलॉटमेंट : 31 जुलाई आवंटित सीटों पर दाखिले की तिथि : 1 से 5 अगस्त.
अब सेना में होगी एक सम्पूर्ण महिला बटालियन: पर्रिकर
नई दिल्ली. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के युद्धपोतों में एक महिला बटालियन बनाने का विचार किया है। सोमवार को इस मुद्दे पर बातचीत करते हुए पर्रिकर ने इंडियन आर्मी में सम्पूर्ण महिला बटालियन होने का विचार रखा। उन्होंने कहा कि तीन महिला पायलट ने आइएएफ में शामिल होकर महिला विरोधी धारणाओं को तोड़ कर रख दिया है।
टाइम ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, फिक्की महिला संगठन के साथ बात करते हुए पर्रिकर ने बताया कि लोग ऐसा मानते हैं कि कोई सैनिक महिला अधिकारी के कमांड को नहीं सुनेगा। लेकिन मैं इस बात से असहमत हूं। शुरुआती दौर में अगर इस तरह की परेशानी आती है तो महिला बटालियन खुद इसका ख्याल रखेगीं।
गौरतलब है कि रक्षा मंत्री ने बताया कि सेना में महिलाओं की भर्ती को आसान बनाया जाएगा। हम देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द ही तीनों सेना प्रमुखों से इस बारे में बात होगी। बुनियादी सुविधाओं में कमी ही महिलाओं के प्रशिक्षण में एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
आपको बता दें कि यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा बीते समय में जब अमेरिका ने अपनी सेना पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था जबकि सेना में किन्नर भी शामिल होने पर लगे थे।
जानकारी के मुताबिक पर्रिकर के सम्पूर्ण महिला बटालियन के विचार से भर्ती और नियमों में बड़े बदलाव की जरुरत होगी, क्योंकि 1990 के दशक से सशस्त्र सेना बल महिलाओं को सिर्फ अधिकारी पद पर ही शामिल करता रहा है। इससे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में अन्य रैंकों के साथ महिला बटालियन का होना आसान हो जाएगा।
रक्षा मंत्री का कहना है कि महिलाओं का वॉरशिप में होना एक प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि मुझे समझ नहीं आता कि क्यों हम महिलाओं को वॉरशिप में नहीं देख सकते हैं। मैं महिलाओं को पनडुब्बियों को चलाने का समर्थन नहीं करूंगा। अब तो सैनिक स्कूलों में भी महिला स्टूडेंट की मांग है। लेकिन बारहवीं के बाद एनडीए में शामिल हुए बिना इसकी अनुमति नहीं दी जाती है।
बता दें कि इस समय 13 लाख सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों की कुल संख्या 60,000 है। जिसमे 1,436 महिला अधिकारी आर्मी में, 1,331 भारतीय वायुसेना में और 532 नौसेना में हैं।