कश्मीर घाटी के उड़ी में भारतीय सेना के शिविर पर आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। पाकिस्तान की किसी भी तरह के हमले की तैयारियों के बीच भारत भी सीमा पर अपनी तैयारी मजबूत करने लगा है। करीब 778 किलोमीटर लंबी एलओसी पर जवानों की नए सिरे से और ज्यादा संख्या में तैनाती की जा रही है। साथ ही हथियार और फ्यूल भी जमा किये जा रहे हैं। निश्चित रूप से ये तैयारियां जंग जैसे हालात की तरफ इशारा करती है।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक ट्वीट में लिखा- हमारे रक्षक आसमान में देश की सुरक्षा के लिए तैयार हैं। हमारे लड़ाकू विमान पिछले दो दिन से हाई प्रोफाइल लैंडिंग और उड़ान का अभ्यास कर रहे हैं। जियो टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की तरफ से सर्जिकल स्ट्राइक होने की स्थिति में पाकिस्तान इन टारगेट को तुरंत निशाना बना सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान ने एक ऑपरेशन की प्लानिंग भी की है। भारतीय सेना की तरफ से अगर चुनौती दी जाती है तो इसे अंजाम दिया जाएगा। ‘पाक डिफेंस सोर्सेज का यह भी कहना है कि भारत ने अगर हमला किया तो पाकिस्तान भी चुप नहीं बैठेगा। अगर कोल्ड वॉर, हॉट वॉर में बदलती है तो हम इसके लिए तैयार हैं।’
यह बात सच है कि किसी भी युद्ध ने आज तक इंसानियत का झंडा नहीं लहराया है। युद्ध किसी भी समस्या का ना तो हल है और ना ही विकल्प। भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की जड़ में चाहे मुद्दा कश्मीर का हो या फिर पाकिस्तान से भारत में आतंकियों की आमद, इसे सुलटाने के लिए युद्ध कोई विकल्प नहीं हो सकता है। कश्मीर को हथियाने की कोशिश में भारत और पाकिस्तान के बीच अभी तक तीन युद्ध हो चुके हैं लेकिन समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुईं हैं। युद्ध अगर विकल्प नहीं है तो अगला कदम क्या होना चाहिए?
संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के कुछ शक्तिशाली देश मसलन अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन आदि हमेशा से इस बात पर जोर देती रही है कि कश्मीर के मुद्दे को भारत और पाकिस्तान आपसी बातचीत से हल करें। लेकिन सवाल यह उठता है कि आपसी बातचीत का सिलसिला आखिर कब तक चलता रहेगा। छह दशक से ज्यादा समय से शांति की खातिर द्विपक्षीय वार्ता का दौर चला आ रहा है। अब जबकि इसमें आतंकवाद का जिन्न पूरी तरह से पाकिस्तान की सेना, पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई में प्रवेश कर चुका है तो कोई यह कहे कि द्विपक्षीय वार्ता से नतीजा निकाला जाए, यह खुद को दिग्भ्रमित करने जैसा होगा। कहने का तात्पर्य यह कि आज के हालात में बातचीत के जरिये भारत-पाक में शांति बहाल करने संभव नहीं है।
युद्ध विकल्प नहीं और शांति संभव नहीं तो फिर पाकिस्तान का क्या करे भारत? इस सवाल का जवाब हालांकि आसान नहीं है। लेकिन यह भी कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत के सामने कूटनीतिक घेराबंदी के अलावा और कोई रास्ता बचता नहीं है। भारत यह कूटनीतिक घेराबंदी करता भी रहा है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसको समर्थन भी मिलता रहा है, लेकिन यह घेराबंदी तब कहीं ज्यादा कारगर होगी जब भारत की ताकत और हैसियत को लेकर दुनिया अपनी राय बदले। सीधा मतलब यह है कि भारत जितना मजबूत होगा, दुनिया उसकी बात भी उतनी ही ज्यादा सुनेगी। इस मजबूती का वास्ता सैन्य मजबूती भर से नहीं है, उस आर्थिक हैसियत से भी है जिससे हम दुनिया को प्रभावित कर सकें। इस आर्थिक हैसियत के साथ वह सामाजिक समरसता भी जरूरी है जिससे भारत को अंदरूनी ताकत मिलती है।
दरअसल उड़ी में भारतीय सेना पर हमले के बाद देशभर में दो तरह की प्रतिक्रिया सामने आई है। पहली प्रतिक्रिया में पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने पर जोर है ताकि दुनिया (खासतौर पर अमेरिका) इसके साथ बदमाश राष्ट्र या आतंकवाद पोषित राष्ट्र जैसा व्यवहार करे। और दूसरी प्रतिक्रिया में ईंट का जवाब पत्थर से देने की युद्धोन्मादी बात की जा रही है। हालांकि दोनों ही रास्तों से हम वहां नहीं पहुंच सकते जो भारत जैसे राष्ट्र को चाहिए। पाकिस्तान को अलग-थलग करना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे पाकिस्तान सरकार कमजोर होगी और आतंकी गुटों को अधिक ताकत व समर्थन मिलेगा। हमारे लिए पड़ोस में सीरिया या इराक (आईएसआईएस के साथ) पैदा होने का जोखिम रहेगा। ईंट का जवाब पत्थर से देने में परमाणु युद्ध का खतरा है, जिससे भारत की आर्थिक वृद्धि को गंभीर नुकसान होगा।
इसके लिए स्पष्ट रणनीति की जरूरत है। कोई यह सोचता है कि पाकिस्तान की सरकार आतंकवाद को रोक सकता है तो यह नादान सोच होगी। इसलिए भारत के पास एक ही विकल्प बचता है और वह है सटीक आर्थिक रणनीति को अंजाम देना। इस रणनीति में पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ को भी ध्यान में रखना होगा। सामरिक दृष्टि से भारत के मुकाबले चीन बेहद ताकतवर राष्ट्र है और चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंध कायम हो। ऐसे में भारत के खिलाफ चीन हमेशा पाकिस्तान को आर्थिक व सामरिक मदद देता रहेगा। ऐसे कई मौके आए हैं जब चीन ने भारत के बजाए पाकिस्तान की बात को गंभीरता से लिया है। अक्साई चीन के 37, 240 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर अवैध तरीके से ड्रैगन ने कब्जा किया हुआ है। कश्मीर मुद्दे का एक अहम हिस्सा चीन भी है। जिस अंदाज में चीन ने अजहर मसूद जैसे आतंक के आकाओं को बचाने की कोशिश की यह चीन की पाकिस्तान के साथ घनिष्ठता दिखाता है।
दरअसल, पाकिस्तान के साथ चीनी आत्मीयता की कहानी के पीछे सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा असल वजह है। ये कॉरीडोर बलोचिस्तान के ग्वादर और चीन के जिंजियांग को समुद्र मार्ग से जोड़ेगा। जाहिर है चीन खुद को एशिया में इकोनॉमिक लीडर के तौर पर पेश करने की ख्वाहिश रखता है और सीपीईसी इसी का नतीजा है। वैसे चीन द्वारा इस अतिसंवेदनशील इलाके में करीब 46 बिलियन डॉलर का निवेश यह बताने के लिए काफी है कि चीन चाहता क्या है। चीन को लग रहा है कि पैसों के बल पर वह बलोचिस्तान के बुग्ती, खैबर-पख्तून इलाके के पठानों और जिंजियांग प्रांत के उइगर समुदाय को अपना गुलाम बना लेगा और अपने मंसूबों को यानी आर्थिक विस्तारवाद की नीति को मूर्त रूप दे पाएगा।
इस परियोजना की अनुमानित अवधि 15 साल है और इसके अन्तर्गत बलोचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग प्रान्त तक एक आर्थिक क्षेत्र विकसित करने की योजना है। सीपीईसी की शुरुआत बलोचिस्तान में ग्वादर पोर्ट से होती है। सीपीईसी का बड़ा हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित और बल्तिस्तान से होकर गुजरेगा जो विवादित इलाका है। भारत इसे अपना हिस्सा मानता है। इतने जोखिम भरे प्रोजेक्ट में अगर चीन ने निवेश किया है तो उसकी कोशिश यह भी होनी चाहिए थी कि जिस रास्ते से गलियारा बने उसमें आतंकवाद का साया ना हो। आदर्श स्थिति तो ये थी कि वो भारत में सीमा-पार आतंकवाद की पाकिस्तानी कार्रवाई का विरोध करता, लेकिन हालात इसके उलट हैं। वह पाकिस्तान की नापाक हरकतों को प्रश्रय दे रहा है, जिससे दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच तकरार बढ़ गई है।
हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों को आश्रय देने की नीति को चीन देखना ही नहीं चाहता। वह जानबूझ कर पाकिस्तान द्वारा हिजबुल मुजाहिदीन, अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों को बढ़ावा देने की नीति पर खामोश है। संबंधित भारतीय तकनीकी दल ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को इस संबंध में साक्ष्य मुहैया कराये, जिसके आधार पर इन देशों ने इस आतंकी समूह पर पाबंदी की सहमति जताई, लेकिन ‘यूनाइटेड नेशंस सेंक्शंस कमेटी’ द्वारा मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने की मुहिम को चीन ने यह कहते हुए समर्थन नहीं दिया कि यह मसला सुरक्षा परिषद द्वारा ‘तय मानदंडों’ के अनुरूप नहीं है।
चीन पाकिस्तान पर शायद इसलिए भी खामोश है क्योंकि वह उइगर समुदाय में बढ़ते असंतोष को कुचलने में पाकिस्तान की मदद चाहता है। उइगर को दबाकर रखने के एवज में जो लाभ वह पाकिस्तान को पहुंचा रहा है उससे अन्य आतंकी संगठन मजबूत हो रहे हैं। यही वजह है कि चीन ने भारत द्वारा जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर और लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद को आतंकी करार देने वाले प्रस्ताव को हर मंच पर नजरअंदाज किया।
दरअसल, चीन आर्थिक और सामरिक सहयोग सहित अलग-अलग तरीकों से पाकिस्तान को उपकृत कर उसे भारत के साथ उलझाये रखना चाहता है, ताकि भारत दक्षिण एशिया में सामरिक या आर्थिक दृष्टि से चीन की समानांतर शक्ति बनकर न उभर सके। ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत ऐसा क्या करे कि चीन को पाकिस्तान के आतंकी कैम्पों को लेकर अपनी राय बदलनी पड़े? विशेषज्ञों की राय है कि जिस तरह सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भारत चीन के प्रति सजग दिखता है वही सजगता उसे आर्थिक क्षेत्र में भी दिखानी होगी। तेजी से बढ़ते व्यापार में 40 बिलियन डॉलर के घाटे की अहमियत ड्रैगन को समझानी होगी।
इस व्यापार व्यवस्था में भारत को उन चीनी कम्पनियों को निशाने पर लेना होगा जो पाकिस्तान के साथ भी व्यापार करती हैं। उन्हें हमें ‘ना’ कहना होगा। इसका कहीं ना कहीं चीन पर असर जरूर पड़ेगा। हो सकता है एक अवधि के लिए भारत को व्यावसायिक तौर पर नुकसान झेलना पड़े, लेकिन देश की सुरक्षा और पाकिस्तान की गीदड़ भभकी को आईना दिखाने के लिए ये सटीक कदम होगा। संभव है चीन का रूख पाकिस्तान को लेकर थोड़ा बदल जाए।
पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सीमा में लगातार आतंकी हमले को अंजाम दिए जाने के बीच भारत को एक और कठोर फैसला लेना चाहिए। वह यह कि पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा तत्काल प्रभाव से वापस ले लेना चाहिए। इससे पाकिस्तान को कई मसलों पर भारत का समर्थन नहीं मिल सकेगा और पाकिस्तान को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन और इंटरनेशनल ट्रेड नियमों को लेकर एमएफएन स्टेटस दिया जाता है। एमएफएन स्टेटस दिए जाने पर वह देश इस बात को लेकर आश्वस्त रहता है कि उसे व्यापार में किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। मालूम हो कि भारत ने पाकिस्तान को 1996 में एमएफएन का दर्जा दिया था। इससे पाकिस्तान को अधिक आयात कोटा और कम ट्रेड टैरिफ मिलता है। खास बात यह है कि बदले में पाकिस्तान ने आश्वासन देने के बावजूद दो दशक बीतने को हैं, भारत को अब तक पाकिस्तान ने एमएफएन का दर्जा नहीं दिया है।