उत्तराखंड के विकास एवं अन्य मुद्दों से जुड़े तमाम प्रस्तावों पर विचार-विमर्श और सहमति देने के मकसद से मंगलवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है।
इसमें मुख्य तौर पर निकायों के एक हजार कर्मचारियों को नियमित करने का प्रस्ताव भी शामिल है। इसके अलावा श्रीनगर में जागर महाविद्यालय को खोलने की सहमति भी बैठक में बनने की पूरी उम्मीद है। इसके अतिरिक्त पर्यटन एवं राज्य कर्मचारी कल्याण नियम की नियमावली से संबंधित प्रस्ताव भी कैबिनेट की बैठक में आएंगे।
मंगलवार को दिन में साढ़े ग्यारह बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है। सूत्रों के मुताबिक इसमें सबसे अहम प्रस्ताव शहरी विकास विभाग की ओर से करीब एक हजार तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नियमित करने संबंधी है। शहरी विकास विभाग से संबंधित विभिन्न नगर निकायों के अध्यक्षों ने मनमाने तरीके से समूह ग और घ के करीब एक हजार कर्मचारियों की नियुक्ति कर ली है।
ऐसे में तमाम दौर की चर्चाओं के बाद इन कर्मचारियों विनियमितीकरण नियमावली-2013 के तहत नियमित करने का प्रस्ताव है। गौरतलब है कि इन एक हजार कर्मचारियों में अकेले चतुर्थ श्रेणी के 856 कर्मचारी हैं।
शहरी विकास विभाग ने इन सभी पदों को नियमित करने संबंधी प्रस्ताव गोपन को भेजा है। वहीं श्रीनगर में जागर महाविद्यालय खोले जाने की मांग पर कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था।
उत्तराखंडी परंपरा के तहत जागर एक तरह के लोकगीत हैं, जिनकी धार्मिक महत्ता होती है। विभिन्न मौकों पर ये लोकगीत गाए जाते हैं।
राज्य की इस परंपरा को बढ़ावा देने के मकसद से इस संबंध में भी एक प्रस्ताव संस्कृति विभाग की ओर से जागर महाविद्यालय खोलने जाने संबंधी प्रस्ताव कैबिनेट में रखा जाएगा। इसके अतिरिक्त कई अन्य विभागों के महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी बैठक में रखे जाएंगे।
निकायों के 1000 कर्मचारियों के नियमितीकरण पर फैसला आज
यूपी में गुंडे, माफिया और अपराधियों का आतंक: मायावती
यूपी की जनता सवा चार साल में त्रस्त हो चुकी है। यहां गुंडे, माफियाओं और आपराधियों का आतंक है। बदमाश पुलिसकर्मियों को मार रहे हैं और सरकार कुछ पैसे देकर अपने आपको जिम्मेदारी से मुक्त मान लेती है। ये बातें बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को लखनऊ में कहीं।
मायावती ने कहा कि यूपी में पुलिस भी अपराधियों से डर रही है। सरकारी कर्मचारी यहां सबसे ज्यादा असुरक्षित है। बसपा सुप्रीमो ने मुख्तार की पार्टी के सपा के विलय की बात भी उठाई। उन्होंने कहा, विलय रद्द करना नाटक है। उन्होंने कहा कि दागियों को मंत्री बनाने से सपा का फायदा नहीं होगा।
मायावती ने आरोप लगाया कि सपा मुखिया की वजह से ही यूपी में गंभीर अपराध होते हैं। उन्होंने कहा कि सपा जातिवादी, क्षेत्रवादी मानसिकता की है, यूपी में विकास रुक गया है। मायावती ने बीजेपी पर निशाना साधा और कहा दादरी, मथुरा और कैरानी सपा-बीजेपी की देन है।
मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि चुनाव देखते ही मोदी जनता से झूठे वादे करने लगे। 2014 में बीजेपी ने जो वादे किए थे उनका क्या हुआ। यूपी के लोगों को आज भी अच्छे दिनों का इंतजार है। उन्होंने सवाल उठाया कि दो साल में बीजेपी ने कितनी गरीबी दूर की?
मायावती ने कहा कि बीजेपी से बहुत ही सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा, दिल्ली में केंद्र के अधीन लॉ एंड ऑर्डर फेल है। मायावती ने ये भी कहा कि यूपी की अपेक्षा दिल्ली की आबादी कम है फिर भी दिल्ली में कानून व्यवस्था फेल है। मायावती ने कहा कि बीएसपी में टिकट के लिए दूसरी पार्टियों में भगदड़ मची है।
भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में 2017 तक शामिल हो जाएगा तेजस
नई दिल्ली: देश में बने पहले लाइट कॉम्बेट एयरकाफ्ट यानी तेजस के इंतजार की घड़ियां समाप्त हो गई हैं। दो विमानों का इसका पहला बेड़ा एक जुलाई को बेंगलुरु में तैयार हो जाएगा। इस बेड़े का नाम रखा गया है फ्लांइग ड्रैगर।
शुरू के दो साल बेंगलुरु में रहने के बाद ये स्क्ावड्रन तमिलनाडु के सलूर चला जाएगा। वायुसेना की योजना अगले साल मार्च तक इसके बेड़े में छह तेजस शामिल करने की है। इसके बाद आठ और तेजस बेड़े में शामिल किये जाएंगे। इसके बाद ही तेजस को किसी फॉरवर्ड एरिया में तैनात किया जाएगा।
एक इंजन वाले इस लड़ाकू विमान की तुलना चीन और पाकिस्तान द्वारा मिलकर तैयार किये गए जेएफ-17 से की जाती है। वायुसेना की मानें तो ये विमान जेएफ-17 से कही ज्यादा बेहतर है । धीरे-धीरे तेजस वायुसेना से पुराने पड़ चुके मिग-21 को रिप्लेस कर देगा। मिग-21 का इस्तेमाल हवा से हवा और जमीनी हमले के लिये किया जाता है।
अपग्रेड तेजस वायुसेना के हर तरह के रोल में फिट होगा जिसकी कीमत करीब 250 से 300 करोड़ होगी। वायुसेना ने तेजस बनाने वाली कंपनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को 120 विमानों का ऑर्डर दिया है।
गो-मूत्र से निकला सोना, गुजरात के वैज्ञानिक ने किया दावा
गुजरात के जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर डॉ. बीए गोलकिया ने गोमूत्र से सोना निकालने का दावा किया है। चार सालों की रिसर्च के बाद डॉ. बीए गोलकिया ने गुजरात में पायी जाने वाली प्रसिद्ध गिर नस्ल की गायों के मूत्र से सोना निकालने का दावा किया है।
टाइम्स आफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलाजी विभाग के अध्यक्ष डाॅ.गोलकिया ने अपने चार सालों की रिसर्च के दौरान गिर नस्ल की 400 से अधिक गायों के मूत्र की लगातार जांच करने के बाद उन्होंने एक लीटर गोमूत्र से 3 मिलीग्राम से 10 मिलीग्राम तक सोना निकालने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि यह धातु आयन के रूप में पाया गया और यह पानी में घुलनशील है।
गोमूत्र परीक्षण के लिए डाॅ.गोलकिया और उनकी टीम ने क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री विधि का इस्तेमाल किया था। डॉ. गोलकिया ने कहा ‘अभी तक हम प्राचीन ग्रंथों में ही गो-मूत्र में स्वर्ण पाए जाने की बात सुनते थे, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं था। हम लोगों ने इस पर शोध करने का फैसला किया। हमने गिर नस्ल की 400 गायों के मूत्र का परीक्षण किया और हमने उसमें सोने को खोज निकाला।’
उन्होंने कहा कि गोमूत्र से सोना सिर्फ रसायनिक प्रक्रिया के जरिए ही निकाला जा सकता है। डाॅ. गोलकिया ने कहा कि शोध के दौरान हमने गाय के अलावा, भैंस, ऊंट, भेड़ों के मूत्र का भी परीक्षण किया था लेकिन किसी में सोना नहीं मिला। इसके अलावा शोध में यह भी पाया गया है कि गो-मूत्र में 388 ऐसे औषधीय गुण होते है जिससे कई बीमारियों को ठीक किया जा सकता है।
डॉ. गोलकिया की टीम अब भारत में पाए जाने वाली अन्य देसी गायों के गो-मूत्र पर शोध करेगी।
भारत की NSG के सदस्यता के खिलाफ पाक ने लिखा था 17 देशों को खत
इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता मिलने से रोकने के लिए गहन कूटनीतिक प्रयास किया था. यहां तक कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसके लिए 17 प्रधानमंत्रियों को निजी तौर पर पत्र भी लिखा था.
पाकिस्तान के विदेशी मामलों के शीर्ष सलाहकार सरताज अजीज ने सोमवार को यह कहा. अजीज ने इस्लामाबाद में विदेश मंत्रालय में मीडिया से कहा, “प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस मामले में विभिन्न देशों के 17 प्रधानमंत्रियों को निजी तौर पर पत्र भी लिखे थे, जो कि रिकॉर्ड में है.”
पिछले सप्ताह भारत एनएसजी की सदस्यता हासिल करने में नाकाम रहा था. चीन के नेतृत्व में कई सदस्य देशों ने एनएसजी में प्रवेश के लिए परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) की शर्त पूरी करने पर जोर दिया था.
अजीज का यह बयान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस जकारिया के बयान के कुछ दिनों बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान अन्य देशों का समर्थन मांग रहा है. उन्होंने साथ ही भारत के खिलाफ पाकिस्तान की गुटबाजी के दावों का खंडन भी किया था.
पाकिस्तान के विपक्ष ने संसद सदस्यता के लिए शरीफ को अयोग्य ठहराने की मांग की
इस्लामाबाद: अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं करने पर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके चार रिश्तेदारों को नेशनल एसेंबली की सदस्यता से अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए विपक्षी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने सोमवार को एक याचिका दायर की।
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सरदार लतीफ खोसा और फैसल करीम कुंडी ने यह मांग करते हुए चुनाव आयोग में याचिका दायर कर मांग की गई कि शरीफ के साथ ही उनके छोटे भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ, वित्त मंत्री इशाक डार, शरीफ के दामाद कैप्टन (सेवानिवृत्त) सफदर और भतीजे हमजा शाहबाज को अयोग्य ठहराया जाए।
याचिका में कहा गया है कि वे संसद की सदस्यता के पात्र नहीं है क्योंकि वे भ्रष्टाचार में शामिल हैं और संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 के तहत ‘ईमानदार नहीं’ है। याचिका में दावा किया गया है कि शरीफ अपने परिवार के सदस्यों की पूर्ण आय का खुलासा नहीं कर पाए हैं।
एनएसजी सदस्यता पाने की भारत की कोशिश पूरी तरह नाकामयाब नहीं हुई है
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता हासिल कर प्रतिष्ठित वैश्विक परमाणु व्यापार का अहम हिस्सा बनने की भारत की कोशिश पूरी तरह से नाकामयाब नहीं हुई है. दक्षिण कोरिया के सियोल में हुई एनएसजी की बैठक में चीन और कम से कम सात दूसरे देशों ने फिर से यह कहकर चिंता जताई थी कि परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत न करने वाले देशों को इस समूह का हिस्सा कैसे बनाया जा सकता है. भारत के वार्ताकारों ने जोर देकर कहा कि ऐसा करना न्यायसंगत है क्योंकि परमाणु अप्रसार के मामले में भारत का रिकॉर्ड बेदाग रहा है. परमाणु कारोबार के नियम-कायदे तय करने वाले एनसजी ने जब 2008 में भारत को विशेष छूट दी थी तो इसका आधार यही बात थी. दुर्भाग्य से इसके बावजूद 48 देशों वाला यह समूह इस मुद्दे पर किसी सहमति पर नहीं पहुंच सका.
लेकिन बैठक के कुछ दिन बाद ही एक अमेरिकी अधिकारी का बयान आया है कि आगे एक ऐसा रास्ता है जिसके जरिये 2016 के आखिर तक भारत एनसजी का पूर्णकालिक सदस्य बन सकता है. इस बीच भारत के लिए एक उत्साहजनक संकेत यह भी है कि इस मुद्दे पर भारत के साथ बातचीत जारी रखने के लिए एक विशेष दूत नियुक्त किया गया है. अतीत भी बताता है कि एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत की कोशिश कामयाब हो सकती है. अगस्त 2008 में हुई एनसजी की बैठक के बाद जब उसी साल सितंबर में भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से कारोबार करने की विशेष छूट दी गई थी तो इसका भी पहले काफी विरोध हुआ था. लेकिन अग्रसक्रिय कूटनीति ने इस विरोध को विफल कर दिया था.
सियोल में नाकामयाब हुआ यह प्रयास एक आत्ममंथन का मौका लेकर भी आया है. भारत को खुद से यह पूछना चाहिए कि इस निरंतर विरोध के बावजूद वह कितनी और राजनीतिक और कूटनीतिक ऊर्जा खर्च करना चाहता है. यह भी कि अपने रणनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उसके पास क्या वैकल्पिक रास्ते हैं. 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मद्देनजर भारत को जो छूट दी गई थी उसने कई तरह से भारत की मदद की. इसके बाद भारत ने रूस और फ्रांस जैसे देशों के साथ परमाणु रियेक्टरों और ऑस्ट्रेलिया के साथ परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए समझौते किए. यह सही है कि 2010 से 2013 के बीच एनएसजी के नियमों में जो सुधार हुआ था उसके मुताबिक परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत न करने वाले किसी भी देश के साथ ‘एनरिचमेंट और रीप्रोसेसिंग’ (ईएनआर) के क्षेत्र में कारोबार नहीं किया जाएगा. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत और किसी दूसरे एनएसजी सदस्य के साथ ईएनआर कारोबार नहीं हो सकता. यह तर्क दिया जाता है कि भविष्य में भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले ऐसे प्रावधान न बनें, इसके लिए बेहतर है कि किसी बाहरी याचक के बजाय एक प्रभावशाली सदस्य बना जाए.
फिर भी ईएनआर प्रतिबंध को देखते हुए भारत को क्या एनएसजी में दूसरे दर्जे का नागरिक बनने की जरूरत है? खासकर जब उसके पास इस मामले में विकल्प अपने घर में ही मौजूद हैं? एक तरह से एनएसजी की यह बहस हमें गुटनिरपेक्षता की बुनियादी दिशा की याद दिलाती है. अगर इस अवधारणा को आज भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के लिहाज से देखा जाए तो अपने विशाल ऊर्जा बााजार को देखते हुए हमें परमाणु कारोबार के वैश्विक मंच पर आर्थिक साझेदार तलाशने की दिशा में असुरक्षित महसूस करने की जरूरत नहीं है.
स्पेक्ट्रम को फिर से व्यवस्थित करके मोदी सरकार ने एक तीर से दो शिकार किए हैं
रक्षा और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले स्पेक्ट्रम को फिर से व्यवस्थित करके सरकार ने लंबे समय से अटका पड़ा एक जरूरी काम किया है. इससे 1800 मेगाहर्ट्ज के बैंड में 200 मेगाहर्ट्ज का अतिरिक्त स्पेक्ट्रम उपलब्ध होगा. अतीत में स्पेक्ट्रम का आवंटन जिस तरह से हुआ उसका नतीजा यह रहा कि रक्षा विभाग और व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए इस्तेमाल होने वाले स्पेक्ट्रम के बैंड या कहें कि पट्टी में कई छोटे-छोटे हिस्से खाली रह गए. इनका इस्तेमाल न तो रक्षा विभाग कर पा रहा था और न ही कारोबारी कंपनियां. इससे एक तरफ देश का एक अहम संसाधन बेकार हो रहा था तो दूसरी ओर स्पेक्ट्रम की कमी से जूझ रहा दूरसंचार क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा था.
स्पेक्ट्रम के इस पुनर्संयोजन के परिणाम दूरगामी होंगे. तरंगों की गतिशीलता के लिहाज से देखें तो 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड की ठीक-ठाक उपयोगिता बनती है. हालांकि इस मामले में कम फ्रीक्वेंसी के बैंड बेहतर साबित होते हैं. ऊंची फ्रीक्वेंसी वाले बैंड्स की तुलना में 700 या 800 मेगाहर्ट्ज बैंड पर भेजे गए सिग्नल दीवारों और दूसरी बाधाओं को ज्यादा अच्छी तरह भेदते हैं और साथ ही कम बिजली भी खाते हैं. डिजिटल इंडिया और उसके साथ होने वाले डेटा के विस्फोट को देखते हुए यह तथ्य बहुत अहम है. दूसरे शब्दों में कहें तो हम कौन सी फ्रीक्वेंसी का बैंड चुनते हैं इसका सीधा असर भारत की ऊर्जा खपत और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उसके द्वारा किए गए वादों पर पड़ेगा.
इसलिए सरकार का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह जितना हो सके कम फ्रीक्वेंसी के बैंड्स को उपलब्ध करवाए. यह काम कई तरीकों से हो सकता है. उदाहरण के लिए क्षेत्रीय प्रसारण के लिए एनॉलॉग सिग्नल की जो व्यवस्था इस्तेमाल होती है वह अब पुरानी पड़ चुकी है. इसे खत्म करके काफी स्पेक्ट्रम हासिल किया जा सकता है. कोशिश यह भी होनी चाहिए कि इस तरह मिले स्पेक्ट्रम को दूरसंचार कंपनियों को ऐसे मूल्य पर उपलब्ध करवाया जाए जिसे देश की जनता वहन कर सके. कम फ्रीक्वेंसी के बैंड्स के लिए सरकार जो ऊंची कीमत वसूलती है उसका जेब दूरसंचार कंपनियों के बजाय आखिर में उपभोक्ता की जेब पर ही पड़ता है.
फुटबॉलर लायनल मेसी का अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से संन्यास
चिली के हाथों कोपा अमेरिका कप हारने के बाद अर्जेंटीना के फॉरवर्ड फुटबॉल खिलाड़ी लायनल मेसी ने अंतरराष्ट्रीय खेल से संन्यास लिया। मेसी अब अर्जेंटीना के लिए नहीं खेलेंगे लेकिन बार्सेलोना फुटबॉल कप के लिए अपना खेल जारी रखेंगे। मेसी को इस वक्त दुनिया का सबसे लाड़ला फुटबॉलर खिलाड़ी कहना शायद गलत नहीं होगा। बता दें कि कोपा अमेरिका फायनल में चिली ने अर्जेंटीना को पेनाल्टी शूट आउट में 4-2 से हराया। अर्जेंटीना फुटबॉल संघ के साथ मेसी की कुछ समस्याएं भी जग जाहिर थीं। कुछ दिन पहले उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर लिखा था – AFA एक मुसीबत है…!!
कोपा में अर्जेन्टीना के लिए खेलते वक्त मेस्सी पर दबाव कुछ ज्यादा ही रहा है, एक बार फिर मेस्सी दबाव में पिचक गए।
चिली के खिलाफ़ फ़ाइनल में शूटआउट के दौरान मेस्सी ने पेनाल्टी मिस कर दी। 2014 का विश्व कप फायनल और कोपा अमेरिका के तीन फायनल हारने के बाद 29 साल के बार्सेलोना खिलाड़ी ने कहा ‘मेरे और राष्ट्रीय टीम का साथ यहीं खत्म होता है। मैं जितना कर सकता था किया, चैंपियन नहीं होना दुख पहुंचाता है।’
जब भावुक मेसी से मीडिया ने पूछा कि क्या वह संन्यास की बात कर रहे हैं तो उन्होंने कहा ‘मैंने पूरी कोशिश की, चार फायनल हो गए हैं और मैं एक भी नहीं जीत पाया। मैंने जितना मुमकिन था किया, मुझे सबसे ज्यादा दुख पहुंचा है लेकिन यह साफ है कि यह सिर्फ मेरे लिए नहीं है।’ जब मेसी से पूछा गया कि क्या अब वह अपने देश की यूनिफॉर्म दोबारा नहीं पहनेंगे तो जवाब था – मुझे नहीं लगता, मैंने इसके बारे में सोचा, जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि मैंने जीतने की बहुत कोशिश की लेकिन अब बस। हमने चार फायनल हारे हैं।’
बता दें कि मेसी 5 बार के बैलन डि ओर विजेता हैं और उन्होंने अर्जेंटीना के लिए पहला मैच 2005 में खेला था। चिली के खिलाफ़ कोपा 2016 फ़ाइनल उनका 113वां अंतर्राष्ट्रीय मैच था। यही नहीं मेसी अर्जेंटीना के लिए सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी हैं, उन्होंने 55 गोल किए हैं। 2008 में मेसी ने ओलिंपिक में अर्जेंटीना को स्वर्ण पदक दिलवाया।
वसु का कुटुम : निर्भया कांड की थीम पर बुनी गई लचर कहानी जिसमें महान संभावना थी
एक मंझा हुआ निर्देशक हमेशा शानदार और सफल फिल्म नहीं बना पाता. ठीक उसी तरह एक अच्छा लेखक हमेशा अच्छा ही लिखे यह कतई जरूरी नहीं. और फिर अच्छे निर्देशक की एक बुरी फिल्म जिस तरह की खीज पैदा कर सकती है कुछ-कुछ यही बात अच्छे लेखक की बुरी रचना पर भी लागू होती है.
मृदुला गर्ग की यह लंबी कहानी ‘वसु का कुटुम’ एक अच्छी लेखिका की लचर कहानी है. यह एक ऐसी रचना है जो भरपूर संभावना पैदा करती है लेकिन, फिर उस पर खरा नहीं उतरती. ‘कठगुलाब’ और ‘मिलजुल मन’ जैसी सशक्त रचना देनेवाली लेखिका, वसु का कुटुम में वैसा जादू नहीं जगा पातीं.
यह कहानी बहुचर्चित निर्भया कांड को बुनियाद बनाकर लिखी गई है और इसकी केंद्रीय पात्र ‘दामिनी’ नाम की लड़की है. लेखिका दामिनी के बहाने समाजसेवा के नाम पर सिर्फ कमाई करने वाले एनजीओ, महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण मुद्दों पर ज्यादातर खोखली बहस करने वाले न्यूज चैनलों और मकान बनाते समय सरकारी नियमों को ताक पर रखने वाले बिल्डरों की पोल खोलती है.
इस पूरी कहानी में कई सारे झोल हैं. दामिनी जब बहुत बीमार हो जाती है तो राघवन नाम का दुकानदार, दामिनी के यहां काम करने वाली की एक महिला की मदद से उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाता है. डॉक्टर एकदम से उसे पहचान लेते हैं कि यह वही दामिनी है जिसका केस काफी प्रसिद्ध हुआ था. किताब में आगे का घटनाक्रम कुछ यूं दिया गया है – ‘राघवन घबराकर उसके साथ हो लिया और रास्ते में सड़क पर झाडू़ लगा रही नजमा को भी आवाज लगा दी. तीनों ने मिलकर उसे एक टैक्सी में ठूंसा और अस्पताल ले गए. काफी देर बाद दो डॉक्टर नमूदार हुए. उनमें से एक ने उसे देखा नहीं कि घबराकर दो कदम पीछे हटकर बोला, ‘ये तो वही है.’ ‘कौन?’ रत्नाबाई ने कहा. ‘दामिनी!’ उसने डरकर ऐसे कहा, जैसे भूत देख लिया हो! ‘हां ये दामिनी है. मरने को पड़ी है. इसको लेकर चलो अन्दर. इलाज करो’ वह खड़ा देखता ही रहा. लगा, बेहोश होकर गिर जाएगा.
इस जगह यह बात साफ हो जाती है कि यह लड़की वही दामिनी है, जिसका मामला सुर्खियों में आया था. लेकिन इसके बावजूद राघवन एक जगह फिर से शंका करता है कि वह लड़की सच में दामिनी है या नहीं. – ‘फिर वही पुराना चक्कर तो था ही जो चक्रवात की तरह उसे घुमा रहा था, पटकनी दे-देकर. यह कि वह औरत वाकई दामिनी थी, जिसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था, जिसे मरा हुआ घोषित कर दिया गया था और जिसका दाहकर्म बड़ी शानो-शौकत से हुआ था? या कोई और लड़की थी जिसका नाम दामिनी था? जिसके साथ वैसा ही हादसा हुआ था मगर मरने की नौबत नहीं आई थी? यह वह दामिनी नहीं थी जिसे सब मरा हुआ मान रहे थे, मगर जो मरी न होकर जिन्दा थी? कतई नहीं थी, इसका सबूत कोई उसे ला देता तो वह निजात पा जाता चक्रवात से.
राघवन दामिनी का सच जानने के लिए उसकी कामवाली को पूरी बात पता लगाने को कहता है – ‘एक काम करो मेरा रत्नाबाई.’ वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, ‘मैं तुम्हारे पांव पड़ता हूं. तुम एक काम कर दो मेरा.‘ ‘क्या?’ तुम बहुत नाक घुसेड़ू किस्म की औरत हो. हर के फटे में पांव डालती हो. हर चीज सूंघ लेती हो. सब जगह बात से बात निकालती हो. किसी तरह भी पता लगाओ, सबूत लाओ कि ये दामिनी है कि नहीं है.’
वह लड़की दामिनी है या नहीं यह जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा तो समझ में आती है लेकिन यह जानने के लिए किसी के हाथ जोड़ना और पैर पड़ना बेहद अव्यावहारिक और अटपटा है. यह बात कहानी में आपको बुरी तरह खटकती है.
यह पूरी कहानी कहीं खुद को यथार्थ के करीब लाने के कोशिश करती है तो कहीं बिल्कुल कपोल-कल्पना लगती है. यह कहना सही होगा लेखिका ‘वसु का कुटुम’ में यथार्थ और कल्पना के बीच सही संतुलन नहीं बिठा सकीं. यह बात हैरान करती है कि एक इतनी सधी हुई लेखिका ऐसी कल्पना का सहारा लेती हैं जो थोड़ी भी सहज-स्वाभाविक नहीं लगती. वसु का कुटुम के एक पात्र राघवन को लेखिका अंत तक कन्फ्यूज ही दिखाती हैं सो इसके चलते पाठक भी कन्फ्यूज हो जाते हैं कि लड़की सच में वही दामिनी है जिसका मामला सुर्खियों में आया था या कोई और.
कहानी बहुत जगह अनचाहे झिलाऊ विवरणों से भरी पड़ी है. जो बात सिर्फ पात्रों के माध्यम से कहलवाई जा सकती थी वह लेखिका बार-बार खुद कहती हैं. ‘अब इसको बार-बार क्या दोहराना. आप तो जानते ही हैं अपने दफ्तरों को, सरकारी हों या गैर-सरकारी, उनका यही दस्तूर है. कोई भी काम हो, कह देते हैं, हो जाएगा. यह नहीं कहते कि नहीं होगा, कि आप निराश होकर घर बैठें. यह भी नहीं बतलाते कि कब होगा. जिससे आप एक मुकरर्र दिन, वहां पहुंचकर काम होने की पक्की तस्दीक कर सकें. बस कहते रहते हैं कि हो जाएगा.’ ऐसे ढेरों जबरदस्ती के विवरण इस कहानी में हैं जिनके कारण कहानी को पूरा पढ़ना और भी ज्यादा भारी लगता है.
कहानी में एक जगह राघवन रत्नाबाई से कहता है कि जिस स्त्री के साथ इतना अत्याचार हुआ हो, वह इतनी बेखौफ और जीवट होकर कैसे जी सकती है? इसके जवाब में रत्नाबाई कहती है ‘भइया, जिसे मार-मूरकर गेर दिया जावे, उसे किसी का डर नहीं रहता और वो बहुत जीवट हो जाती है.’ यह एक पंक्ति इस कहानी के लिए महान संभावना पैदा करती है. पूरी कहानी को पढ़कर ऐसा लगता है कि इस विचार के इर्द-गिर्द यदि यह पूरी कहानी रची जाती तो बहुत ही अलग और सशक्त बन पड़ती. तब इस कहानी में यह दिखाया जा सकता था कि वह दामिनी जब बिना अपनी पहचान छिपाए जीती है, तब उसे समाज कैसे-कैसे प्रताड़ित करता है? मोमबत्ती लेकर जुलूस निकालने वाला समाज व्यवहार में ऐसी ब्लात्कृत पीड़िताओं के प्रति कितना विनम्र और सहयोगी होता है, इसकी भी पोल खोली जाती. साथ ही मीडिया और एनजीओ कैसे ऐसी खबरों को अपने लिए कैश करते हैं यह बात उस कहानी में भी आसानी से दिखाई जा सकती थी. हालांकि यह लेखक का ही निर्णय होता कि वह अपनी कहानी में किस विचार को तवज्जो दे किसे नहीं.
कुल मिलाकर वसु का कुटुम एक ऐसी कहानी है जिसकी नायिका के बारे में लेखिका खुद बहुत स्पष्ट नहीं है. ऐसा होता तो इतनी अच्छी थीम से शुरू हुई कहानी कहीं ज्यादा सशक्त तरीके से बुनी जा सकती थी.
किताब : वसु का कुटुम
लेखिका : मृदुला गर्ग
प्रकाशक : राजकमल
मूल्य : 125 रुपये