वाशिंगटन। एक पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक का कहना है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे जटिल क्षेत्र है और इस अशांत प्रांत के कई हिस्से ऐसे हैं जिन पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने ‘द अटलांटा’ पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे जटिल क्षेत्र है और दुर्भाग्यवश लोग वहां समस्याओं को सरल करने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तानी सेना की गलतियों या सत्ता में मौजूद लोगों के भ्रष्टाचार या राष्ट्रवादियों या तालिबान की मौजूदगी के बारे में ही नहीं है। यह इन सभी चीजों के बारे में है। हक्कानी ने कहा कि बलूचिस्तान के कई हिस्सों पर पाकिस्तान की केंद्र सरकार का नियंत्रण नहीं है।
उन्होंने कहा कि मूल निवासी बहुल बलूच हिस्सों में उन राष्ट्रवादियों के लिए बहुत सहानुभूति है जो एक स्वतंत्र या स्वायत्त बलूचिस्तान देखना चाहते हैं। हक्कानी ने कहा कि सेना उन्हें दबाने की कोशिश करती है और वह कई बार धार्मिक अतिवादियों की मदद से ऐसा करती है।
हक्कानी ने कहा कि इसके अलावा प्रांत में चयनित सरकार को सार्थक जनादेश नहीं मिला क्योंकि बलूच पार्टियों ने पिछले चुनाव का बहिष्कार कर दिया था और कई लोगों को 10, 12 प्रतिशत और कुछ स्थानों में 15 प्रतिशत मतदान के साथ चुना गया इसलिए अधिकतर बलूच इन राजनीतिक दलों को इस्लामाबाद की कठपुतलियों की तरह देखते हैं। उन्होंने बलूचिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि यह देश के निर्माण के समय की बात है जब भारत का मुस्लिम बहुल हिस्सा उससे अलग होकर पाकिस्तान बना था।
हक्कानी ने कहा कि कुछ बलूच नेताओं का कहना है कि बलूचिस्तान को पाकिस्तान में जबरन शामिल किया गया था लेकिन इससे जरूरी बात, इसे नजरअंदाज किया जाना है। वह संसाधन समृद्ध प्रांत है लेकिन वहां के लोगों को इन संसाधनों का कोई लाभ नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना के पास इस बात की स्पष्ट परिषाभा होनी चाहिए कि वह किसे शत्रु समझती है।
उन्होंने कहा कि जिहादियों के किसी एक समूह को मदद देने और अन्यों के खिलाफ लड़ने के बजाए, उसे सभी जिहादियों और अतिवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
हक्कानी ने कहा कि उसे बलूच राष्ट्रवादियों के साथ सुलह प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता है। वे पाकिस्तान के ऐसे नागरिक हैं जिन्हें लगता है कि उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है और इसलिए वे अशांत और नाखुश हैं। अधिक बलों की तैनाती से हिंसा केवल और बढ़ेगी। इससे यह खत्म नहीं होगी।
बलूचिस्तान के कई हिस्सों पर पाकिस्तान का ही नियंत्रण नहीं: पू्र्व पाक राजनयिक
आतंकी हाफिज ने PAK आर्मी चीफ से कहा, कश्मीर में भेजो पाक सेना
इस्लामाबाद। आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद से ही पाकिस्तान और वहां के आतंकी संगठन लगातार कश्मीर को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। इस बीच एक बार फिर जमात-उद-दावा के प्रमुख आतंकी हाफिज सईद ने कश्मीर को लेकर जहर उगला है।
हाफिज सईद ने पाकिस्तानी सेना से उसके सैनिकों को कश्मीर भेजकर भारत को सबक सिखाने के लिए कहा है। बुरहान वानी की मौत के बाद से शुरू हुआ उपद्रव का सिलसिला जारी है और कश्मीर में 60 से ज्यादा मौते हो चुकी हैं। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड सईद ने आर्मी चीफ जनरल रशीद से सैनिकों को भारत भेजने के लिए कहा है।
इससे पहले पिछले महीने आतंकी सईद ने धमकी दी थी कि कश्मीर में चल रहे प्रदर्शन और ज्यादा तेज होंगे और वहां मरने वालों की कुर्बानी जाया नहीं जाएगी। इसी तरह गुरुवार को लाहौर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सईद ने कहा, ‘इस बार कश्मीर के लोग सड़कों पर हैं। यह प्रदर्शन एक जन आंदोलन बन चुका है। कश्मीर के सभी ग्रुप साथ आ गए हैं और हुर्रियत के सभी अंग मिल गए हैं।
मुत्ताहिदा जिहाद काउंसिल के साथ दूसरे ग्रुप भी हाथ मिला चुके हैं। जो लोग कश्मीर में मारे गए हैं उनकी कुर्बानी जाया नहीं होगी।’ बता दें कि बुरहान वानी की मौत के बाद हाफिज ने एक श्रद्धांजलि सभी भी रखी थी जिसमें उसने कहा था कि बुरहान उससे बात करने के बाद मरने के लिए तैयार था। हाफिज ने यह भी कहा था कि उसे आसिया अंद्राबी ने फोन कर रोते हुए पूछा था कि वो कहां हैं। इसके अलावा उसने रैली भी की थी।
ईरान से रूसी विमानों ने सीरिया में बरसाए बम
मॉस्को। ईरान से उड़ान भरकर मंगलवार को रूसी लड़ाकू विमानों ने सीरिया में बम बरसाए। पिछले साल सितंबर में रूस ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के समर्थन में हवाई अभियान शुरू किया था।
इसके बाद से यह पहला मौका है जब रूस ने किसी दूसरे देश की जमीन का इस्तेमाल इस अभियान में किया है। साथ ही 1979 की क्रांति के बाद यह पहला मौका है जब ईरान ने किसी देश को सैन्य अभियान के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल करने की इजाजत दी है।
यह मध्य-पूर्व में रूस के बढ़ते दखल और ईरान से उसकी नजदीकियों का सुबूत है। इससे रूसी वायुसेना की हमला करने की क्षमताओं में भी इजाफा होगा। रूसी सुरक्षा मंत्रालय के अनुसार उसके तुपोलेव-22एमबी और सुखोई-34 विमानों ने ईरान के हमदान सैन्य अड्डे से सीरिया के लिए उड़ान भरी।
इन विमानों ने इस्लामिक स्टेट (आइएस) और अल-नुसरा के ठिकानों पर अलेप्पो, इदलिब और दीर अल जोर प्रांत में हमले किए। ईरान की सरकारी न्यूज एजेंसी इरना ने कहा है कि दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक-दूसरे के संसाधनों का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। साथ ही दोनों देश असद सरकार का समर्थन करते हैं।
दूसरी ओर, सीरियन ऑब्जरवेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने बताया है कि मंगलवार को अलेप्पो में विद्रोहियों के प्रभाव वाले दो जिलों में हवाई हमलों में 19 नागरिकों की मौत हो गई। इनमें तीन बच्चे हैं। रूस के हवाई हमलों में 12 विद्रोहियों के मरने की भी संगठन ने पुष्टि की है।
गौरतलब है कि असद सरकार के खिलाफ मार्च 2011 में शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन कुछ ही दिनों में हिंसक हो गया था। इसके बाद से सीरिया में दो लाख 90 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार : एक गंभीर चुनौती
भारत में भ्रष्टाचार मूर्त्त और अमूर्त्त दोनों ही रूपों में नज़र आता है। यहाँ भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं
कि शायद ही कोई क्षेत्र इससे बचा हो। सबसे पवित्र माना जानेवाला शिक्षा का क्षेत्र भी भ्रष्टाचार का
प्रमुख केंद्र बन गया है।
पिछले १५ वर्षों से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में जबरदस्त घोटाले और भ्रष्टाचार हुए हैं। हज़ारों करोड़ के ये
घोटाले शिक्षा विभाग की कारगुजारियों के साथ-साथ नीति नियंताओं की मानसिकता को भी उजागर करते
हैं। गांव से लेकर महानगरों तक और नर्सरी से लेकर विश्वविद्यालयों तक लूट मची है। इस बात को
सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि शिक्षा विभाग में जबरदस्त भ्रष्टाचार है।
देश का हर आम आदमी भी इस बात को जानता है कि प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा
के नाम पर उसे लूटा जा रहा है फिर भी वह लुटे जाने के लिए विवश है क्योंकि उसकी संतति के सुनहरे
भविष्य का सवाल जो होता है। शिक्षा के नाम पर जारी इस लूट में केवल शिक्षण संस्थान ही नहीं बल्कि
शिक्षा विभाग का हर छोटा बड़ा कर्मचारी / अधिकारी शामिल है।
आज लगभग हर बड़े नेता की यूनिवर्सिटी है। उसी तरह जैसे पहले हर बड़े नेता की चीनी मिलें हुआ
करती थीं। सिर्फ नेता ही नहीं बड़े आईएएस अधिकारी और माफिया सरगनाओं ने उच्च शिक्षण संस्थान
को कम रिस्क और अधिक मुनाफे वाला लाभकारी धंधा बना लिया है। यूनिवर्सिटी खोलने के लिए इन्होंने
बड़े-बड़े फर्जीवाड़े भी किये हैं। सरकारी जमीनें कब्ज़ा की गयी हैं। यदि इसकी सीबीआई जाँच करायी जाए
तो सारा फर्जीवाड़ा सामने आ जायेगा।
सरकारी शिक्षण संस्थानों में मुफ्त शिक्षा के नाम पर क्या पढ़ाया जाता है? सरकारी स्कूलों में बच्चे हैं भी
या नहीं, बच्चे हैं तो अध्यापक हैं या नहीं, हैं तो वह क्या और कैसे पढ़ा रहे हैं इसे देखने और इसकी जाँच
करने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास समय नहीं है।
मैं माननीय प्रधान मंत्रीजी का ध्यान उनके एक वक्तव्य की ओर दिलाना चाहूंगा जो कि उन्होंने अपने
एक चुनावी भाषण के दौरान कही थी। उन्होंने कहा था कि अकेले गुजरात में ४५ विश्वविद्यालय हैं। मेरा
प्रधान मंत्रीजी से अनुरोध है कि हर राज्य में वहां की जनसँख्या के हिसाब से विश्वविद्यालय खोले जाने
चाहिए। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो, इसके लिए कठोर और कारगर नियम बनाये जाने चाहिए। इतना
ही नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को अंजाम देनेवाले को कठोर सजा देने के प्रावधान की भी
आवश्यकता है।
देश में कुल 542 संसदीय क्षेत्र हैं हर संसदीय क्षेत्र में कम से कम 2 विश्वविद्यालय खोले जाने की
आवश्यकता है ताकि प्राइवेट यूनिवर्सिटियों द्वारा लूट, रिश्वतखोरी और उनके द्वारा किये जा रहे
भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जा सके। साथ ही प्राइवेट यूनिवर्सिटियां जिन जमीनों पर बनायीं गयी हैं उन
जमीनों की भी जांच करायी जाय।
रियो ओलंपिक: दुनिया के 5वें नंबर के खिलाड़ी को हराकर श्रीकांत ने बनाई क्वार्टर फाइनल में जगह
भारत के स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी किदाम्बी श्रीकांत रियो ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में पहुंच गए हैं. मैन्स सिंग्लस के प्री-क्वार्टर मुकाबले में श्रीकांत ने डेनमार्क के पांचवीं वरीयता प्राप्त खिलाड़ी जैन ओ जोर्गेनसेन को सीधे गेमों में 21-19,21-19 से शिकस्त दी.
अब तक खेले गए मुकाबलों में श्रीकांत का प्रदर्शन जबरदस्त रहा है. इस मुकाबले में जोर्गेनसेन ने श्रीकांत को जबरदस्त चुनौती दी, लेकिन वो जीत दर्ज नहीं कर पाए. श्रीकांत ने पहला गेम 20 मिनट में 21-19 से अपने नाम किया. दूसरे गेम में भी श्रीकांत को काफी मेहनत करनी पड़ी और शानदार खेल दिखाते हुए दूसरा गेम 22 मिनट में 21-19 से जीता. भारत के पारुपल्ली कश्यप के बाद श्रीकांत दूसरे ऐेसे बैडमिंटन खिलाड़ी हैं जो ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने में कामयाब रहे हैं.
जोर्गेनसेन के खिलाफ जीत के साथ ही श्रीकांत ने अपनी जीत-हार का आंकड़ा 2-2 से बराबर कर लिया. क्वार्टर फाइनल में श्रीकांत के सामने चीन के लिन डैन की कड़ी चुनौती होगी. जिससे पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा. श्रीकांत चीन के लिन डैन को अपसेट करने में कामयाब हो जाते हैं, तो उन्हें पोडियम तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता, और श्रीकांत बड़े उलफेर के लिए जाने जाते हैं. वो दुनिया के नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी मलेशिया के ली चोंग वेई को हरा चुके हैं. ऐसे में चीनी खिलाड़ी को श्रीकांत के सामने संभलकर खेलना होगा.
दीपा का अगला लक्ष्य, 2020 टोक्यो ओलंपिक में 'गोल्ड' जीतना
भारतीय जिम्नास्ट दीपा करमाकर रियो ओलंपिक में वॉल्ट फाइनल में ब्रोन्ज मेडल से चूकने से निराश नहीं हैं और इसके बजाय उन्होंने टोक्यो में 2020 में होने वाले खेलों में गोल्ड मेडल जीतने को अपना लक्ष्य बनाया है।
दीपा रविवार के अपने शानदार प्रयास से उत्साहित थीं। उन्होंने बाद में कहा, मैंने इस ओलंपिक से कभी पदक की उम्मीद नहीं की थी लेकिन चौथे स्थान पर आना शानदार है। मुक्केबाजी, कुश्ती में चौथे स्थान पर आने से ही आपको कांस्य पदक मिल जाता है लेकिन मुझे नहीं मिलेगा। मैं पदक के काफी करीब पहुंच गयी थी। चार साल बाद मेरा लक्ष्य गोल्ड मेडल होगा।
उन्होंने कहा कि ये मेरा पहला ओलंपिक था लेकिन मुझे निराश होने की जरूरत नहीं है। मैं टोक्यो 2020 में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी।
दीपा ने कहा कि मैं अपने प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट हूं। ये मेरा बेस्ट स्कोर है लेकिन पदक विजेताओं का प्रदर्शन मुझसे अच्छा था। यह मेरा दिन नहीं था। भाग्य मेरे साथ नहीं था जो मैं कुछ अंकों से पदक से चूक गयी। लेकिन कोई दिक्कत नहीं। मैंने अपने पहले ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहने के बारे में कभी नहीं सोचा था।
उन्होंने कहा कि ईमानदारी से कहूं तो मैंने कभी पदक की उम्मीद नहीं की थी। मेरा पहला लक्ष्य दो वॉल्ट में अपना स्कोर बेहतर करना था और मैं इसमें सफल रही। मैंने जो कुछ सीखा था मैंने वह किया। जिन दो वॉल्ट में मैं प्रदर्शन करती हूं उनमें इससे बेहतर स्कोर नहीं बनाया जा सकता है।
दीपा को प्रोडुनोवा वॉल्ट के लिये दुनियाभर में जाना जाता है। यदि इसमें वह नीचे अच्छी तरह से उतरती तो उनके पदक जीतने की संभावना बढ़ जाती। दीपा पहले पांवों पर खड़ी हुई लेकिन इसके बाद संतुलन खो बैठी और उसने कुछ अंक गंवा दिये। उन्होंने प्रोडुनोवा में 15.266 अंक बनाये।
उन्होंने कहा कि यह प्रोडुनोवा में मेरा सर्वोच्च स्कोर है। इससे पहले मैंने 15.1 का स्कोर बनाया था। मैं अपनी वॉल्ट से काफी खुश हूं। मैंने अपने देश के लिये पदक जीतने के लिये अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास किया था।
दीपा ने कहा कि अपने निजी कोच बिश्वेश्वर नंदी की देखरेख में विदेशों में खास अनुभव हासिल नहीं करने के बावजूद यह बड़ी उपलब्धि है।
इस चार फीट 11 इंच लंबी जिम्नास्ट ने कहा, जिम्नास्टिक आसान नहीं होता है। हमारे पास विदेशी कोच नहीं है। मैं अपने कोच और साई के प्रयासों से यह हासिल कर पायी। हमने विदेशों में अभ्यास नहीं किया। हमें तैयारियों के लिये केवल तीन महीने का समय मिला। पूर्व ओलंपिक चैंपियन के साथ मुकाबला करना और चौथे स्थान पर रहना अच्छा प्रदर्शन है।
दीपा के कोच नंदी ने कहा कि इस जिम्नास्ट की लैंडिंग बेहतर हो सकती थी। उन्होंने कहा कि यदि वह अच्छी तरह से नीचे उतरकर खड़ी हो जाती तो फिर गोल्ड मेडल मिल जाता। पहला वॉल्ट हालांकि शानदार था।
कृति सैनन करेंगी अपनी आंखों को दान
मुंबई। बॉलीवुड बादशाह शाहरुख खान की फिल्म दिलवाले से बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री कृति सैनन ने अभिनेत्री ऐश्वर्य राय के नक्शेकदम पर चलते हुए अपनी आंखें दान करने का फैसला किया है।
कृति का कहना है कि इस खूबसूरत दुनिया को देखना एक वरदान है, इसलिए उन्होंने मरने के बाद अपनी आंखें दान करने का फैसला किया है।ऐश्वर्य राय भी मृत्यु के बाद अपनी आंखें किसी जरूरतमंद को दान करने का ऐलान कर चुकी हैं। ऐश्वर्य के बाद अब कृति ने भी ऐसी ही इच्छा जताई है। कृति और लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित भी करती रहती हैं।
इस पर कृति ने कहा कि मैं पिछले कई वर्षो से ऐसा करने की इच्छा रख रही थी। मुझे लगता है कि इस खूबसूत दुनिया को देखना एक वरदान है। मुझे खुशी होगी यदि मेरी आंखें मेरे मरने के बाद किसी के जीवन में उजाला कर सकें। मुझे लगता है कि अधिक से अधिक लोगों को अपनी आंखें दान करनी चाहिए। कृति आजकल अपनी अपकमिंग फिल्म रब्ता की शूटिंग में व्यस्त हैं। फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत भी होंगे।
रितिक ने फिर ठुकराई करण की फिल्म
बॉलीवुड एक्टर रितिक रौशन ने करण जौहर की फिल्म फिर ठुकरा दी है। करण ने हाल ही में रितिक को फिल्म ‘कलंक’ का ऑफर दिया था। इस फिल्म को अभिषेक वर्मन निर्देशित करने वाले हैं, लेकिन रितिक ने इस फिल्म को नहीं कह कर करण को हैरान कर दिया।
बताया जाता है कि ‘कलंक’ एक पीरियड ड्रामा है। रितिक ने करण को ‘कलंक’ यह कह कर करने से मना किया कि वे इस समय पीरियड ड्रामा करने के मूड में नहीं हैं।
रितिक की अगली प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘मोहनजोदाडो’ भी पीरियड ड्रामा है। पीरियड ड्रामा करने में बहुत मेहनत करनी होती है और रितिक लगातार इस तरह की फिल्म नहीं करना चाहते। वे हल्की-फुल्की फिल्म करना चाहते हैं।
करण ने रितिक को लेकर सुपरहिट फिल्म ‘अग्निपथ’ बनाई थी। इसके बाद करण रितिक को लेकर फिल्म ‘शुद्धि’ बनाने वाले थे लेकिन बात नही बन सकी। रितिक ने यह फिल्म साइन कर ली, लेकिन बाद में स्वास्थ्य संबंधी समस्या के चलते फिल्म छोड़ दी।
रितिक ने कहा कि ‘शुद्धि’ को सौ प्रतिशत नहीं दे पाएंगे लिहाजा फिल्म से अलग हो रहे हैं। तब से अब तक ‘शुद्धि’शुरू नहीं हो पाई है। सलमान खान से लेकर तो वरुण धवन तक को इस फिल्म में लेने की खबर आई, लेकिन बात नहीं बन पाई।
राधिका आप्टे का न्यूड सीन हुआ लीक
लीना यादव की डायरेक्ट की हुई फिल्म ‘पार्च्ड’ आजकल चौतरफा सुर्खियों में है जो गुजरात के दूर-दराज के गांव में रहने वाली 3 ऐसी महिलाओं पर आधारित है जो शताब्दी पुराने रीति रिवाज तोड़कर खुद को आजाद करती हैं.
यह न सिर्फ मजबूत रिव्यू बटोर रही है बल्कि इंटरनेशनल फेस्टिवल सर्किट में अवॉर्ड्स भी जीत रही है. लेकिन बीते रविवार इस फिल्म का एक सीन सोशल मीडिया और इंटरनेट पर आग की तरह फैलने लगा. यह एक न्यूड सीन है जिससे फिल्म की एक्ट्रेस राधिका आप्टे एक बार फिर कंट्रोवर्सी के घेरे में आ गई हैं.
बेयर बैक और लिप लॉक्स दर्शाता यह न्यूड सीन इंटरनेट पर काफी वायरल हो रहा है. फिल्म के निर्माता असीम बजाज का कहना है, ‘यह फिल्म अभी यूएस और फ्रांस में रिलीज हुई है, तो संभव है कि वहां से किसी ने इस सीन की यह क्लिप काट कर इंटररनेट पर लीक कर दी. लेकिन हम लोगों ने यह सोचा हुआ था कि इंडिया में फिल्म रिलीज करते समय इस सीन में एक्ट्रेस के बॉडी पार्ट्स को ब्लर कर दिया जाएगा. देखा जाए तो इस सीन में ऐसा कुछ नहीं है जिसका बवाल बनाया जाए, लेकिन हमारे देश में से एक टैबू है. फिल्म में राधिका एक ऐसी महिला है जिसे हमेशा पीटा गया, और वो प्यार के एक टच के लिए तरस रही है. इसलिए यह सीन कहानी की मांग था.’
ऐसा पहली बार नहीं है जब राधिका का कोई न्यूड सीन सामने आया हो. पिछले साल डायरेक्टर अनुराग कश्यप की 20 मिनट की एक शॉर्ट फिल्म में भी राधिका ने एक न्यूड सीन किया था. उससे पहले भी राधिका अपनी न्यूड तस्वीरों की वजह से कंट्रोवर्सी में रह चुकी हैं.
उना का दलित आंदोलन क्या हिंदू समाज को बदल पाएगा?
गुजरात के उना और आसपास के इलाकों से जो ख़बरें आ रही हैं, वे आने वाले कुछ और दिन बनी रहीं तो जिसे हम हिंदू समाज कहते हैं, उसकी सबसे बड़ी विडंबना से एक वास्तविक मुठभेड़ की चुनौती हमारे सामने होगी. बताया जा रहा है कि इन इलाकों में सड़कों पर जानवरों के शव पड़े हुए हैं क्योंकि दलितों ने उन्हें उठाने से इनकार कर दिया है. यह युक्ति बरसों पहले अंबेडकर ने दलितों को सुझाई थी, लेकिन उस पर अमल अब हो रहा है.
इस घटना के राजनीतिक निहितार्थों को फिलहाल छोड़ दें – हालांकि वे भी लोगों को महत्वपूर्ण लग रहे हैं, क्योंकि दलितों के इस नए गुस्से में मुसलमानों का पुराना दर्द भी शामिल है और आरक्षण मांग रहे पाटीदारों का आहत दर्प भी इससे जुड़ सकता है, जो मिलकर गुजरात सरकार के लिए मुसीबत बन सकते हैं – लेकिन इसके सामाजिक पहलू बेहद महत्वपूर्ण हैं.
हम यह सोचें कि अगर दलितों ने वाकई वे सारे काम छोड़ दिए जो वे करते रहे हैं, तो बाकी समाज क्या करेगा? अपनी शिक्षा, अपनी सेहत और अपनी नौकरी का निजी प्रबंधन कर चुका यह तबका क्या अपनी गंदगी का भी कोई इंतज़ाम कर पाएगा? हो सकता है, वह अपनी ताकत के दम पर कुछ ज़ोर-जबरदस्ती करे, पैसे का भी प्रलोभन दे, यह सब न चले तो मारपीट भी करे, लेकिन अगर यह अहिंसक प्रतिरोध जारी रहा तो क्या होगा? देर-सबेर शेष हिंदू समाज को अपने इन अछूत और हेय भाइयों की अहमियत समझनी होगी, उनके काम का मोल समझना होगा, उसकी कहीं ज़्यादा बेहतर क़ीमत चुकानी होगी.
लेकिन अगर इसके बाद भी दलित न मानें तो? क्या बाकी समाज के कुछ गरीब हिस्से इस काम के लिए तैयार होंगे? हो सकता है हो जाएं, और अगर हुआ तो यह भी शुभ होगा, क्योंकि अंततः इससे उन कामों को हिकारत से देखने की प्रवृत्ति कमज़ोर पड़ेगी जो कई लिहाज से हमारे सबसे ज़रूरी काम हैं. कह सकते हैं कि पेशागत जाति-व्यवस्था पर इससे कुछ चोट प़डेगी.
लेकिन यह भी बहुत दूर का और बहुत सुहाना सपना है. सच यह है कि हिंदुओं की उच्च जातियों में श्रेष्ठता का दर्प इतना ज़्यादा है कि वे सारा गंदा काम करने के बाद भी अछूतों को अछूत ही रहने देंगे. इसी श्रेष्ठता और जातिगत अपरिहार्यता को समझते हुए अंबेडकर ने अस्सी बरस पहले कहा था कि हिंदू तभी एक होते हैं, जब उन्हें मुसलमानों से लड़ना होता है, वरना हिंदू समाज एक मिथ है. उसका कोई वजूद नहीं है. यह बस जातियों का समुच्चय है. उसका बाकी सारा जीवन सामाजिक भेदभाव में बीत जाता है. साझा जीवन अभ्यासों के बावजूद वह एक समाज नहीं है क्योंकि वह कुछ भी साझा नहीं करता. जाति वह सामाजिक व्यवस्था है जो हिंदुओं के एक विकृत हिस्से के अहंकार और स्वार्थ को अंगीकार करती है जो सामाजिक क्रम में इतने प्रबल रहे कि उन्होंने इसे फैशन बना दिया और अपने से नीचे वालों पर थोप दिया.
बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने यह बात जात-पांत तोड़क मंडल के न्योते पर लाहौर में उनके कार्यक्रम की सदारत के परचे के तौर पर लिखी थी. यह पूरा परचा मंडल को इतना नागवार गुजरा कि उसने अपनी उन दिनों की तथाकथित उदारता के बावजूद अंबेडकर का न्योता रद्द कर दिया. 1936 में लिखा गया – मगर पढ़ा न जा सका – यह परचा बाद में ‘जाति का उन्मूलन’ नाम के लेख के तौर पर चर्चित हुआ जिस पर कुछ बरस पहले अरुंधती रॉय ने एक किताब बराबर टिप्पणी लिख डाली.
बहरहाल, अंबेडकर ने हिंदू समाज और उसमें निहित घृणा के छोटे-छोटे घरों के बारे में जो कुछ कहा था, वह जैसे कुछ और वजनी होकर आज हमारे सामने मौजूद है. इस समाज के वर्चस्ववादी तबके अब भी समाज को चलाए रखना अपनी ठेकेदारी मानते हैं और इसीलिए कभी गोरक्षा के नाम पर दलितों को पीटते हैं, कभी संस्कृति रक्षा के नाम पर लड़कियों पर हमले करते हैं और कभी राष्ट्र रक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों को डराते हैं. इनको चुपचाप दी जाने वाली स्वीकृति इतनी प्रबल है कि प्रधानमंत्री एक लंबी चुप्पी के बाद एक सांस में दलितों की जगह ख़ुद को गोली मार देने की भावुक अपील करते हैं और दूसरी सांस में राज्य को सही और गलत गोरक्षकों में फर्क करने की नसीहत देते हैं. इसके बाद हरियाणा सरकार इन गोरक्षकों को लाइसेंस देने में जुट जाती है.
समाज के भीतर दबदबे वाले समूहों की व्यवस्था इसी समानांतर सोच की वजह से संभव बनी हुई है. इस व्यवस्था से जुड़ी राजनीति अस्मितावादी संघर्षों के असुविधाजनक और ठोस सवालों से मुंह मोड़कर कुछ सतही और भावनात्मक मुद्दों के आधार पर सबको गोलंबद करने की कोशिश करती है. ऐसा करते समय वह बड़ी चालाकी से यह देखती है कि कहां उसे बोलना है, कहां चुप हो जाना है. इसलिए जब गोमांस के नकली मुद्दे पर दादरी में अख़लाक को घर से निकाल कर मार डालने का मामला सामने आता है तो यह राजनीति का नहीं, समाज का मामला हो जाता है. राजनीति चुपचाप इसे पीछे से शह और समर्थन देती है.
इस शह और समर्थन के बल पर तथाकथित हिंदू समाज और भी जोर-शोर से गोरक्षा दल बनाता है और ट्रक ड्राइवरों, खलासियों और उन कमज़ोर लोगों को सबक सिखाता है जो किसी मजबूरी में गोमांस या उसके चमड़े के कारोबार से जुडे हुए हैं. वह उना में चार दलित लड़कों को बिल्कुल गाड़ी से बांध कर पीटता है और फिर उसके वीडियो बनाकर दूसरों को धमकाता है कि गाय की चमड़ी उतारने वालों का क्या हश्र होता है. वैसे यह सिर्फ अंधा गोप्रेम ही नहीं है जो उसे इस हिंसा के लिए उकसाता है, वह किसी भी मुद्दे पर अपने सामाजिक वर्चस्व और दबदबे को कायम रखने का प्रयास भी है. उना से पहले और बाद में लगभग रोज़ ऐसे हादसे और हमले मिल सकते हैं जिसमें किसी दबंग हिंदू की लाठी, गोली, या उसका चाबुक किसी दलित, आदिवासी या अल्संख्यक की छाती या पीठ एक जैसे बहाने बनाकर लाल कर रहे हों.
यह भी विडंबना ही है कि वर्चस्ववादी सोच और व्यवस्था का राजनीतिक प्रतिरोध करने के नाम पर मायावती के समर्थक भी कुछ ऐसा ही करते हैं जो अंततः अपने नतीजों में दलित और स्त्री विरोधी ही दिखता है. यह बात मायावती समझ पातीं तो दलितों की वास्तविक नेता हो पातीं. अभी वे इस देश में दलित असंतोष की नुमाइंदगी करती हैं – क्योंकि यह काम और कोई नहीं करता.
ऐसे में भारतीय लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा यह भी है कि वह दलित को मनुष्य जैसा मान दिला सके और किसी दलित नेता को यह समझ कि देर-सबेर उसे सबका नेता होना होगा – जातिगत घृणा या गोलबंदी की एक य़थास्थिति को तोड़कर दूसरी यथास्थिति बनाने की जो भूल मंडल समर्थक जातियों ने अपनी राजनीतिक हड़बड़ी में की उसे दुहराने से बचना होगा. तभी मौजूदा गैररचनात्मक, बल्कि विध्वंसात्मक राजनीति को बदलने का रास्ता निकाल सकेगा.
उना की ताज़ा घटनाएं यह रास्ता निकाल सकती हैं. वे हिंदूवादी राजनीति को पीछे हटने पर मजबूर कर सकती हैं और वृहत्तर भारतीय समाज में यह संदेश दे सकती हैं कि जातियों की नहीं, पेशों की अहमियत है और इस आधार पर किसी को ऊंचा-नीचा आंकना अमानवीय है. बेशक, यह सबक सवर्ण जातियां आसानी से अपने हलक में उतारने को तैयार नहीं होंगी, लेकिन पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का एक बड़ा तबका, जो इस तरह के कारोबार से जुड़ा है, उनके करीब आ सकता है. इस तरह सोचें तो पिछले 20 बरस से हिंदुत्व की प्रयोगशाला बना रहा गुजरात अब दलित आंदोलन की प्रयोगशाला भी बन सकता है. हां, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि इसके लक्ष्य अंततः व्यापक सामाजिक बदलाव से जुड़ें न कि तात्कालिक राजनीतिक हितों से. बेशक, यह बहुत टेढ़ा और उलझाऊ काम है जिसका कोई सपना भी बहुत उलझा हुआ हो सकता है, इस लेख की ही तरह.