कुछ समय से चल रहे ‘बीफ’ विरोधी अभियान का असर उस खेल पर भी पड़ रहा है जिसे भारत में दूसरा धर्म कहा जाता है. द हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ समय से स्वयंभू गौ रक्षा दलों द्वारा व्यापारियों पर किए जा रहे हमलों में बढ़ोतरी के चलते क्रिकेट की गेंदों की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं.
उत्तर प्रदेश में क्रिकेट की गेंदों बड़ा कारोबार है. गाय की खाल की आपूर्ति में पहले की अपेक्षा काफी गिरावट आ गई है. यही वजह है कि राज्य में चल रही फैक्ट्रियों ने गेंदों की कीमतों में 100 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी है.
अखबार से बात करते हुए मेरठ स्थित एक ऐसी ही फैक्ट्री के निदेशक का कहना है, ‘हमें अब ब्रिटेन से चमड़ा आयात करना पड़ रहा है. यह महंगा है क्योंकि इस पर इंपोर्ट ड्यूटी और दूसरे कई टैक्स लगते हैं. आखिर में इसका नुकसान खरीदने वाले को हो रहा है. साल भर पहले तक जो बॉल 400 रु की मिलती थी आज 800 की मिल रही है.’
बड़ी कंपनियों के पास तो गाय का आयातित चमड़ा इस्तेमाल करने का विकल्प है लेकिन, छोटे उत्पादकों को भैंस के चमड़े से काम चलाना पड़ रहा है जो गुणवत्ता के मामले में उतना अच्छा नहीं होता. जानकारों के मुताबिक यह मोटा होता है जिससे न सिर्फ रंगाई में दिक्कत आती है बल्कि गेंद बनने में लगने वाला समय भी बढ़ जाता है.
गाय के चमड़े के लिए उद्योग जगत अब उन राज्यों पर निर्भर है जहां गोवध पर प्रतिबंध नहीं है. इनमें केरल, पश्चिमी बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल है. लेकिन यहां से होने वाली आपूर्ति मांग के हिसाब से बहुत कम है.