धीरे धीरे पूरे देश में अनुशासनहीनता बढती जा रही है। नियम कानून, पुलिस, प्रशासन; किसी की कोई परवाह नहीं रह गई है । नियम कानून तोडने वाले लोगों के मन से डर ही गायब हो गया है । ऐसा नहीं है कि कोई आयु विशेष, या वर्ग विशेष, या क्षेत्र विशेष के लोग ही नियम कानून तोडते रहते हैं । आजकल हर आयु के बच्चे, युवा, वयस्क, प्रौढ, बुज़ुर्ग महिला एवं पुरुष निडर होकर सारे नियम कानून को तोडते हुए दिन रात कोई भी काम करने लगे हैं । मेरा ऐसा मानना है कि अब प्रशासन और पुलिस के बस की बात नहीं रह गई है, लोगों को अनुशासित करने की । राजनेताओं, धनवानों, असामाजिक तत्वों, और नशे के शौकीन लोगों ने नियम कानून की धज्जियां उडाने की शिक्षा अपने अपने परिवार के लोगों और मित्रों को दे रखी है।
मैं पहले यह मानता रहता था कि उजड्ड, अशिक्षित, गुंडा प्रवृत्ति के कुछ युवा ही अनुशासनहीनता दिखाते रहते हैं। मैं यह भी मानता रहता था कि महिलाएं बहुत सावधानी से स्वयं भी रहती हैं और अपने परिवार के लोगों को भी सावधानी से रहने की नसीहत देती रहती हैं, परंतु देश भर में मैंने यह स्वयं देखा है कि सबसे अधिक यातायात नियम महिलाएं ही तोडने लगी हैं। यातायात सिग्नल पर एक सेकेंड के लिये भी रुकना उनको अपमानजनक लगता है। कपडों के तरह तरह के फ़ैशन के कारण शरीर के अंगों के अधिक से अधिक दर्शन करवाने में आजकल की अधिकांश महिलाओं को गौरव प्रतीत होने लगा है। ऊपर से उनका यह कथन और भी अजीब लगता रहता है कि हमारे पास कुछ है तो हम दिखा रहे हैं, इसमें दूसरों को क्या परेशानी है? इसको नए ज़माने की गौरवपूर्ण बात माना जाये या बेशर्मी कहा जाये, यह स्वयं महिलाएं ही निश्चित करें।
हाई स्कूल तक विद्यार्थियों की हर स्कूल के अनुसार निश्चित पोशाक आवश्यक रहती है, परंतु कौलेज में जाते ही फ़ैशन परेड शुरू हो जाती है । कुछ तकनीकी और वैद्यकीय विद्यालयों में “ड्रैस कोड” होता है, लेकिन अन्य विद्यालयों में तो वास्तव में फ़ैशन परेड ही देखने को मिलती है। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ था जब एक कौलेज के प्रिंसिपल ने अपने विद्यालय के सभी छात्रों को निर्धारित वेशभूषा धारण करने के आदेश दिये और अनगिनत लडकियों के माता-पिता ही इसका विरोध करने और आदेश वापस लेने के लिये आंदोलन करने लगे। उनका कथन था कि यह कौलेज है, स्कूल नहीं है । छात्र-छात्राओं को इस तरह के बंधन में अब नहीं रखा जाना चाहिये। वो कुछ भी और कैसा भी पहनें, उन्हें रोकने वाले प्रिंसिपल कौन होते हैं। माता-पिता के आंदोलन के बाद अंतत: प्रिंसिपल साहब को अपना आदेश वापस लेना पडा ।
आजकल ट्यूशन क्लासेज़ का महत्व बहुत ही अधिक बढ गया है। अब छात्र-छात्राओं को स्कूल या कौलेज जाने की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। ट्यूशन क्लासेज़ की उपस्थिति को ही स्कूल या कौलेज की उपस्थिति मान लिया जाता है। शिक्षकगण भी खुश रहते हैं,क्योंकि स्कूल या कौलेज जाने के झंझट से मुक्ति मिल जाती है और बिना कुछ किये पूरा वेतन भी मिलता रहता है; ऊपर से वे ही ट्यूशन क्लासेज़ में पढाने लगते हैं, जिससे अतिरिक्त कमाई होने लगती है। मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा है कि कुछ समय बाद परीक्षाओं की भी कोई आवश्यकता नहीं रह जायेगी।
ट्यूशन क्लासेज़ चलाने वाले अपने स्तर पर ही परिणामों की घोषणा कर दिया करेंगे। अधिकांश बडे बडे शिक्षा संस्थान, राजनेताओं के ही हैं । वे भले ही स्वयं अनपढ या कम पढे-लिखे हों, परंतु बडे बडे पदवीधारी विद्वानों के “मालिक” बन जाते हैं और बेचारे विद्वान उनके सामने हाथ जोडकर खडे रहकर “यस सर” कहते रहते हैं। पशुओं की अनियंत्रित भीड सडकों पर हर जगह दिखाई देने लगी है। कोई कार्रवाई होती ही नहीं। अगर ऐसे लावारिस पशुओं को प्रशासन पकडकर बूचडखाने में भेजना शुरू करदे, तो तुरंत ऐसे पशुओं के मालिक उन्हें सडकों पर छोडने की बजाय, अपने अपने स्थानों पर बांध कर रखने लगेंगे।
सडकों के गड्ढे तभी भरे जा सकेंगे जब राजनेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों पर अंकुश लगने लगेंगे । अगर सारे नागरिक सडक टैक्स देना तब तक बंद कर दें जब तक सडकें समतल और गड्ढाविहीन न हो जाएं, तो तुरंत सडकों की हालत सुधरने लगेगी । यातायात नियमों की अवहेलना करने वालों के विरुद्ध यदि बहुत कठोरता के साथ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी जाए तो शायद यातायात सम्बन्धी शिकायतें भी कम हो जायें । सुधार तो हर क्षेत्र में हो सकता है, परंतु पहले आवश्यकता है पूरी ईमानदारी से कठोरतम अनुशासनात्मक कार्रवाई की ।
*किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर – 440015; मोबाइल – 8805001042*