आगरा कोर्ट के सिविल जज (सिनियर डिविजन) को लिखित जवाब देते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कहा है कि ताजमहल सिर्फ एक मकबरा है। एएसआई ने इस वर्ल्ड हेरिटेज साइट को पूर्व में भगवान शिव का मंदिर होने से साफ इंकार कर दिया। गौरतलब है कि एएसआई को देश में पुरातात्विक अनुसंधान और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण के साथ-साथ इनके शोध की भी जिम्मेदारी दी गई है।
कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई की तारीख 11 सितंबर दी है। कोर्ट ने अपने जवाब से पहले केंद्र सरकार और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के साथ गृह सचिव व एएसआई को नोटिस जारी किया था। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय 2015 में ही लोकसभा में यह कह चुका है कि ताजमहल के शिव मंदिर होने का कोई सबूत नहीं मिलता है।
दरअसल ताजमहल को पूर्व में भगवन शिव का मंदिर होने और उसका नाम तेजो महल होने का दावा करते हुए आगरा के छह वकीलों ने मिलकर साल 2015 में मुकदमा दायर किया था। अपने दावे में उन्होंने हिंदू धर्म के मानने वालों को ताजमहल परिसर के दर्शन और आरती की अनुमति दी जाने की माँग करते हुए स्मारक के उन कमरों को खोलने की भी मांग की थी जिन्हें बंद कर दिया गया है।
कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की सुनवाई से पहले एएसआई और केंद्र के वकील ने कहा कि उनकी याचिका में कोई दम नहीं है। यह एक मुस्लिम स्मारक है इसलिए याचिकार्ताओं को ताजमहल परिसर में पूजा करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता और ना ही किसी धार्मिक क्रियाकलाप की अनुमति दी जा सकती है। कोर्ट ने याचिकार्ताओं को जवाब में ये बातें कहीं हैं। इस दौरान कोर्ट ने कहा एएसआई भी ताजमहल के हिंदू धर्म से जुड़े होने की बात को नकार चुका है। ये बात वर्तमान तथ्यों से भी साबित होती है कि ताजमहल का निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में शाहजहां ने एक समाधि के रूप में करवाया था। शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण अपनी रानी मुमताज की याद में करवाया था।
गौरतलब है कि वर्ममान में केवल मुस्लिम समुदाय के ही लोग ताजमहल परिसर के पास नमाज पढ़ सकते हैं। यहां ताजमहल परिसर में स्थित मस्जिद में हर शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अता करने आते हैं।