राहुल गांधी को 2 साल की सजा मिलने के बाद जिस रफ्तार से उनकी सदस्यता गई थी। दोषसिद्धि पर रोक के बाद उसी रफ्तार से उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई है। क्या राहुल की सजा को राजनीतिक रंग देना BJP को भारी पड़ेगा या कांग्रेस बेवजह उत्साहित हो रही है? राजनीतिक जानकारों की इस पर अलग-अलग राय है…।
राहुल गांधी को मार्च में सूरत की लोअर कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई। गुजरात हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा। इस पर BJP ने कहा- ये फैसला उचित और स्वागत योग्य है। BJP ने यह प्रचारित किया कि उनकी पार्टी के एक नेता ने याचिका दायर की। इससे मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया।
भास्कर एक्सपलेनर के एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के लिए नैतिक तौर पर बड़ी जीत है। BJP ने इस कानूनी मामले को राजनीतिक रंग देकर भूल कर दी। BJP सिर्फ इतना कहती कि यह कानूनी दांवपेच है। BJP ने राजनीतिक श्रेय लेने की कोशिश की। किदवई के मुताबिक जब आप राजनीतिक श्रेय लेते हैं तो दांव उल्टा पड़ने पर इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।
CSDS प्रोफेसर और पॉलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार की राय थोड़ी जुदा है। उनका कहना है, ‘इसे मैं BJP की पॉलिटिकल हार नहीं मानता हूं। BJP कह सकती है कि ये कानूनी प्रक्रिया है और पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। BJP को पता होगा कि ये केस कमजोर है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से इस तरह के फैसले की उम्मीद पहले से रही होगी। ऐसे में कहीं से भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला BJP के लिए पॉलिटिकल हार नहीं है।’
अभी तक BJP के खिलाफ सिर्फ मणिपुहिंसा बड़ा मामला था। अविश्वास प्रस्ताव को भी PM मोदी अपने भाषण से साध सकते थे, लेकिन अब उन्हें राहुल गांधी को सुनना पड़ेगा और पूरा देश भी सुनेगा। राहुल गांधी विपक्ष के पहले नेता थे जो सबसे पहले मणिपुर गए थे। इसके अलावा वो अडाणी जैसे मुद्दे दोबारा उठा सकते हैं। ये बात BJP को परेशान करने वाली साबित होगी।
किदवई कहते हैं कि गांधी जी का एक बड़ा ही मशहूर कथन है कि कभी-कभी हम अपने विरोधियों की वजह से ही आगे बढ़ते हैं। BJP और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी का जिस तरीके से हर स्तर पर विरोध किया और घेरा, इससे राहुल की इमेज मजबूत हुई। भारत जोड़ो यात्रा के बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं। वहीं मणिपुर में बदहाल स्थिति ओर नूंह में हिंसा के बाद राहुल के मोहब्बत की दुकान जैसे नैरेटिव को पुश मिला है। किदवई कहते हैं कि विपक्ष को भी इसी तरह के मुद्दे का इंतजार है
मोदी सरनेम मामले में दोषी पाए जाने के बावजूद राहुल गांधी ने माफी मांगने से इनकार कर दिया। पहले सूरत कोर्ट फिर गुजरात हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में भी राहुल गांधी ने कहा कि वो माफी नहीं मांगेंगे।
किदवई कहते हैं कि माफी नहीं मांगने की रणनीति से राहुल की इमेज को फायदा पहुंचेगा। राहुल अभी आरोप मुक्त नहीं हुए हैं, लेकिन अब इतनी कड़ी सजा नहीं होगी। राहुल की यही दृढ़ता या अड़ियलपन ही उनकी मजबूती है। यानी वो कॉम्प्रोमाइज नहीं करते हैं। वहीं दूसरे दल इस तरह का कॉम्प्रोमाइज करते रहे हैं। चाहे नीतीश कुमार हों, ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी, YSR कांग्रेस या बीजद।
राजनीति में लोग एक ऑल्टरनेटिव की बात करते हैं। नरेंद्र मोदी को भी 2014 में इसी का फायदा मिला। वो UPA सरकार में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के एकदम विपरीत बातें करते रहे और डटकर खड़े रहे। इसी तरह जो भी मोदी का एकदम विपक्षी होगा यानी उनके अंदाज से एकदम उल्टा होगा, वोटर उसके प्रति ही आकर्षित होंगे न कि मोदी के जैसा होने पर।
संजय कुमार कहते हैं कि अगर कोई माफी मांगता है तो इसका साफ मतलब है कि उसने गलती की है। राहुल अगर माफी मांगते तो इससे जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता कम हो जाती। ऐसे में माफी नहीं मांगकर राहुल ने अपनी मजबूत छवि पेश की। उन्होंने ये दिखाया कि वो डर कर पीछे हटने वाले नेताओं में नहीं हैं। चाहे संसद से बाहर कर दिया जाए, या चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए, लेकिन माफी नहीं मांगेंगे। इस तरह जनता के बीच उन्होंने एक स्ट्रॉन्ग लीडर की इमेज पेश करने की कोशिश की है।
संजय कुमार के मुताबिक राहुल की सदस्यता भले बहाल हो गई हो, लेकिन इस बात की संभावना कम है कि INDIA की ओर से उन्हें PM पद का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। या फिर उन्हें INDIA की ओर से चुनाव से पहले साझा नेता घोषित किया जाएगा। ये जरूर है कि जब बात सरकार बनाने की होगी तो उस समय राहुल विपक्षी नेताओं में सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं।
रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल गांधी को पता है कि जब तक कांग्रेस अपने बूते पर लोकसभा की 100-150 सीटें न जीत जाए, तब तक वो INDIA गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार नहीं हो सकते। लोकसभा में जादुई आंकड़ा 272 का होता है।
लोकसभा की 200 सीटें ऐसी हैं जहां BJP और कांग्रेस सीधे मुकाबले में हैं। क्या कांग्रेस ऐसी स्थिति में है कि इन 200 में से आधी सीटें जीत सकें? अगर हां, तो राहुल INDIA की तरफ से प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े उम्मीदवार होंगे। अगर नहीं, ताे राहुल की उम्मीदवारी के कोई मायने नहीं हैं।
राहुल गांधी ने धैर्य के साथ पूरे ज्यूडिशियल प्रोसेस का पालन किया। नोटिस में तय तारीख से पहले शालीनता से अपना सरकारी बंगला खाली कर दिया। लोकसभा सदस्यता जाने पर भी ज्यादा हंगामा नहीं किया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने को उनकी नैतिक जीत के तौर पर देखा ही जा सकता है।
इसके पॉलिटिकल असर पर प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं कि राहुल की सदस्यता बहाली से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा, लेकिन इससे कोई बड़ा चुनावी फायदा होते नहीं दिखता। इस फैसले से 2024 चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ते नहीं दिख रहा।
रशीद किदवई के मुताबिक BJP अब इसे नरेंद्र मोदी वर्सेज राहुल गांधी बनाने की कोशिश करेगी, क्योंकि BJP को उम्मीद है कि मोदी बनाम राहुल होने पर देश के मतदाता मोदी को ज्यादा तवज्जो देंगे। अब देखना यह होगा कि राहुल अपनी बढ़ी हुई आभा को राजनीतिक रूप से कैसे संभालते हैं और BJP के व्यक्तिवाद वाले ट्रैप में फंसते हैं या नहीं?