महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कई बड़ी बातें कहीं। कोर्ट ने कहा कि स्वायत्त निकायों के कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के समान सेवा लाभों का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकते हैं। इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये फैसले सुनाया है और इस कारण भी बताया है। कोर्ट ने कारण बताते हुए कहा कि “स्वायत्त निकायों के कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के साथ समानता का केवल इसलिए दावा नहीं कर सकते क्योंकि ऐसे संगठनों ने सरकारी सेवा नियमों को अपनाया है। बता दें कि इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की एक पीठ कर रही है।
सोमवार को सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि “कर्मचारियों को कुछ लाभ देना है या नहीं यह विशेषज्ञ निकाय और उपक्रमों पर छोड़ दिया जाना चाहिए और अदालत सामान्य तरीके से इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। कुछ लाभ देने के प्रतिकूल वित्तीय परिणाम हो सकते हैं।” गौरतलब हैं कि ये मामला महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका से उठा। जिसके बाद इस पीठ ने सुनवाई की। इस बीच कोर्ट ने कहा कि “उच्च न्यायालय द्वारा पारित वह आदेश, जिसमें राज्य को डब्ल्यूएएलएमआई के कर्मचारियों को पेंशन का लाभ देने का निर्देश दिया गया है, कानून और तथ्यों दोनों पर नहीं टिकता।”
अदालत ने कहा कि “कानून की प्रतिपादित व्यवस्था के अनुसार, अदालत को नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, जिनके व्यापक प्रभाव और वित्तीय प्रभाव हो सकते हैं। स्वायत्त निकायों के कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के समान सेवा लाभों का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकते हैं। सिर्फ इसलिए कि ऐसे स्वायत्त निकायों ने हो सकता है कि सरकारी सेवा नियमों को अपनाया हो और/या हो सकता है कि शासी परिषद में सरकार का एक प्रतिनिधि हो और/या केवल इसलिए कि ऐसी संस्था राज्य या केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है। ऐसे स्वायत्त निकायों के कर्मचारी राज्य या केंद्र सरकार के कर्मचारियों के साथ समानता का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकते।”