सुप्रीम कोर्ट के फै’सले से ब’ढ़ सकती हैं इन नेताओं की मुश्कि’लें…

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सुप्रीम कोर्ट में दा’खिल की गई याचि’का पर फै’सला आ गया है। कोर्ट ने निर्ण’य लिया है कि सारे राजनीतिक दलों से उम्मीदवारों को चुनाव का टिकट दिए जाने के कार’ण भी देने होंगे। जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एस रविंद्र भट की बेंच ने लिया है यह फै’सला।

सुप्रीम कोर्ट में दा’यर की गई याचि’काओं में आपरा’धिक छवि के नेताओं को चुनाव ल’ड़ने से रो’कने की मांग की गई थी। आजकल सभी राजनीतिक पार्टियां जिताऊ उम्मीदवार के चक्कर में आपरा’धिक छवि के नेताओं को टिकट देने से गुरे’ज नहीं करती हैं।

इस पर बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह राजनीतिक दलों पर दबा’व डाले कि राजनीतिक दल आपरा’धिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट न दें। ऐसा होने पर आयोग राजनीतिक दलों के खि’लाफ कार्रवाई करे।

इन याचिकाओं पर अदालत ने फै’सला सुनाते हुए सवाल किया कि आखिर पार्टियों की ऐसी क्या मजबू’री है कि वह आपरा’धिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी को टिकट देती हैं और कहा है कि चुनाव ल’ड़ने से पहले प्र’त्येक उम्मीदवार को अपना आपरा’धिक रिकॉर्ड आयोग को बताना होगा।

साथ ही सभी राजनीतिक दलों को ऐसे उम्मीदवारों की सूची और विस्तृत जानकारी फेसबुक और ट्विटर हैंडल पर प्रकाशित करनी होगी। और यह भी चेता’वनी दी कि अगर इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो अव’मानना की कार्रवाई की जा सकती है।

कोर्ट ने कहा, “अगर राजनीतिक पार्टियां क्रिमि’नल बैकग्राउंड वाले शख्स को चुनावी टिकट देती है, तो पार्टियां इसकी वजह भी बताएगी। राजनीतिक दलों को ये बताना होगा कि आखिर वह क्यों किसी बेदा’ग प्रत्याशी को चुनाव का टिकट न दे पाई?”

इससे पहले, जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने आयोग से कहा था, “राजनीति में अपरा’ध के वर्चस्व को ख’त्म करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए।” अदालत ने पार्टियों को ये भी आदेश दिया कि पार्टी अगर किसी दागी को टिकट देती है, तो उसकी योग्यता, उपलब्धियों और मेरिट की जानकारी 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को देनी होगी।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धा’रा आठ के मुताबिक दो’षी राजनेताओं को चुनाव ल’ड़ने से रो’कती है, लेकिन ऐसे नेता जिन पर सिर्फ मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरो’प कितना भी गं’भीर है।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपरा’धों के अलावा किसी भी अन्य अपरा’ध के लिये दो’षी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की स’जा सुनाई जाती है, तो उसे दो’षी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किये जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।