क्या इस वजह से देवेन्द्र फडनवीस ने किया था अजीत पवार पर भरोसा?

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शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के साथ हाथ मिलाकर, कुछ घंटों की सरकार बनाने वाली बीजेपी ने शायद सपने में भी सोचा नहीं होगा कि, चाचा-भतीजे की ये जोड़ी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी। और सत्ता का सपना दिखाकर आसमान पर बैठाने की वजह धड़ाम से औंधे मुंह ज़मीन पर पटक देगी। आज तक सभी के दिमाग में यह सवाल कुलबुलाता रहता है कि, आखिर वह कौन से कारण थे, जिनकी वजह से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अजीत पवार पर भरोसा कर बैठे।

क्या वह सत्ता पाने के लिए तिनके का सहारा या आशा की पतली सी किरण बनकर आए थे। या फिर अजित पवार के साथ एनसीपी का साथ मिल जाएगा ऐसी बीहड़ मरुस्थल की मृगतृष्णा भर थी। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि, अजित पवार अपने साथ 54 विधायकों की सूची लाए थे। और दावा किया था कि ज़्यादातर विधायक शिवसेना के बजाय बीजेपी के पक्ष में हैं। लेकिन शरद पवार की अनुभवी आंखों ने महाराष्ट्र में एक नये राजनीतिक समीकरण को बनते देख लिया था। शरद पवार ने समझ लिया था कि, शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने से पार्टी और शरद पवार दोनों का रुतबा बढ़ेगा और राज्य सरकार पर उनका नियंत्रण भी रहेगा। जबकि अजित पवार और उनके साथ ज़्यादातर विधायक शिवसेना के बीजेपी के साथ जाना चाहते थे।

एनसीपी के एक नेता की मानें तो लगभग 20 चुने हुए नेताओं की एक मीटिंग बुलाई गई थी। जिसमें उन नेताओं को शरद पवार के शिवसेना के पक्ष में जाने की इच्छा बता दी गई,और इसके बाद वही हुआ जो शरद पवार चाहते थे। सब ने अपनी पार्टी प्रमुख की बात को वरीयता दी, और अपनी पार्टी को अपनी बात समझा लेने के बाद, शरद पवार ने कांग्रेस के साथ बैठकों और उन्हें शिवसेना के पक्ष में आने के लिए तैयार करने की कवायद शुरू की, जहां विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर बाद फंसती दिखाई दी, जब अहमद पटेल ने शरद पवार से कहा कि, आपने विधानसभा अध्यक्ष पद देने पर हामी भरी थी, इस पर शरद पवार को लगा कि उन्हें झूठा क़रार दिया जा रहा है, तो वह मीटिंग छोड़ कर बाहर आ गए।

लेकिन शरद पवार के बार-बार मीटिंग करने और उनके मीटिंग को छोड़कर उठ जाने से पहले से ही बीजेपी की तरफ जाने का मन बना चुके अजीत पवार को लगा कि वह अपने चाचा को बीजेपी का साथ देने के लिए मना लेंगे, और अजीत पवार ने 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाले पत्र की 2 कॉपियां मंगवाईं और देवेंद्र फडणवीस के पास पहुंच गए, और कहा कि अगर सुबह ही शपथ ग्रहण होता है, तो वह बीजेपी के साथ आने को तैयार हैं। एक तो अजीत पवार के पास 54 विधायकों के हस्ताक्षर के कागज थे, दूसरा वह ख़ुद भी एनसीपी के विधानमंडल दल के नेता थे, इसलिए बीजेपी ने चारा निगल लिया, और 23 नवंबर की सुबह अजीत पवार को देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ लेते देख शरद पवार हैरान रह गए।

राजनीति के असली चाणक्य शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को भरोसा दिलाया कि, वह सब कुछ ठीक कर लेंगे। और उन्होंने किया भी ऐसा ही। सारी परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के लिए, अजीत पवार के साथ गए सभी विधायकों को वापस अपने साथ ले आए। और जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के खुला मतदान और वीडियो रिकॉर्डिंग के फ़ैसले ने अजित पवार के पास बस एक ही रास्ता छोड़ा था।और वह था, सम्मान सहित घर वापसी का। अजित पवार की तो घर वापसी हो गई। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उनकी पार्टी बीजेपी शायद कभी इस चोट से उबर नहीं पाएंगे, जो उन्हें उनके 30 साल पुराने गठबंधन के साथी शिवसेना और नए साथी बनाने की कवायद में अजीत पवार ने दी। और शायद अब फुर्सत के पलों में देवेंद्र फडणवीस यह शेर गुनगुना रहे हो ‘न ख़ुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम’