JNU हिं’सा माम’ले में विरो’ध प्रद’र्शन अब भी जारी हैं यहाँ कई बड़े-बड़े नाम जुड़ते जा रहे हैं। हाल ही में नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने इस माम’ले में सरकार को घे’रते हुए कहा कि सरकार विद्यार्थियों और विश्वविद्यालयों को अपने प्रतिद्वं’द्वी के तौ’र पर देख रही है जो सही नहीं है। पहले भी ऐसा होता आया है लेकिन अब जो हो रहा है वो अल’ग है।
नोबेल पुरस्कार विजेता मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने इस घ’टना की निं’दा करते हुए कहा कि “वर्तमान समय में छात्रों को सरकार के प्रतिद्वं’दी के तौर पर देखा जा रहा है। ज्यादातर यूनिवर्सिटीज़ के छात्र आज प्रद’र्शन कर रहे हैं। मैं 1951 से 1953 तक प्रेसीडेंसी कॉलेज का छात्र था। उस समय भी छात्रों पर सरकार विरो’धी होने का आरो’प लगा था लेकिन आज जैसा नहीं था। आज विश्वविद्यालयों को सरकार के प्रतिद्वं’दी के तौर पर देखा जाने लगा है। कुछ बाहरी लोगों ने छात्रों से मा’रपी ट की और कानून का राज ख’त्म करने की कोशिश की। विश्वविद्यालय प्रशा’सन इसे रोक नहीं सका। पुलि’स भी वहां सही समय पर नहीं पहुंची”
आगे CAA को ग़ै’र संवैधानिक क़ा’नून बताते हुए उन्होंने कहा कि “इस का’नून के तह’त चाहे नागरि’कता दी जा रही हो या नहीं ये बाद में शख्स के ध’र्म के आधा’र पर तय होगा। ये संविधान की भावना के खिला’फ है। मुझे लगता है कि इस का’नून को ख’त्म कर देना चाहिए क्योंकि इस तरह के कानून को पहली बार में पा’रित नहीं किया जाना चाहिए था। मेरे पास तो बर्थ सर्टिफिकेट भी नहीं है। मैं भीरभूम जिले बोलपुर स्थित शांतिनिकेतन में पैदा हुआ था”