क्या एस्सार के रुइया बंधु भी विजय माल्या की राह पर हैं?

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विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस पर बैंकों के नौ हजार करोड़ रु के बकाया का आंकड़ा इसके आगे कहीं छोटा दिखता है. द इकॉनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्टेट बैंक (एसबीआई) की अगुवाई में 30 बैंक एस्सार स्टील से अपना 40 हजार करोड़ रु वसूलने के लिए जूझ रहे हैं. खबर के मुताबिक इन बैंकों ने कंपनी को अल्टीमेटम दे दिया है वह उधार चुकता करना शुरू करे वरना मैनेजमेंट में जबरन बदलाव के लिए तैयार रहे.

बताया जाता है कि एस्सार स्टील को यह चेतावनी बैंक अधिकारियों और कंपनी मैनेजमेंट के लोगों के बीच एसबीआई के मुंबई स्थित मुख्यालय में हुई एक बैठक में दी गई. कंपनी को उधार देने वाले 30 बैंकों ने एक संयुक्त कर्जदाता मंच (जेएलएफ) बनाया हुआ है. इन बैंकों का एस्सार स्टील पर 40 हजार करोड़ रु का कर्ज है. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा एसबीआई (5400 करोड़) का है.

एस्सार स्टील के दिन कुछ समय से अच्छे नहीं चल रहे. कंपनी पर स्टील के दामों में आई कमी और चीन से हो रही जरूरत से ज्यादा सप्लाई की मार पड़ रही है. यही वजह है कि मुंबई में हुई बैठक में उसने बैंकों से अपने कर्ज को रीकास्ट यानी इसे चुकाने के लिए एक नई व्यवस्था बनाने का अनुरोध किया. इसमें कर्ज चुकाने के लिए दी गई मोहलत बढ़ाना शामिल है. उसका यह भी कहना है कि बीते कुछ समय के दौरान गैस के घटते दामों, खर्च कम करने के उपायों और स्टील के दामों में आ रही तेजी के चलते उसकी हालत अब सुधर रही है.

हालांकि बैंक एस्सार स्टील के प्रबंधन को कोई रियायत देने के मूड में नहीं हैं. उन्होंने प्रबंधन से कहा है कि वह जल्द से जल्द अपने पल्ले से कंपनी में कम से कम तीन हजार करोड़ की पूंजी डाले. एस्सार ग्रुप के प्रमोटर रवि और शशि रुइया भारत के धनकुबेरों में शामिल हैं. फोर्ब्स के मुताबिक दोनों भाइयों की कुल संपत्ति 38 हजार करोड़ रु के करीब है.

बीते कुछ समय से रिजर्व बैंक का बैंकों पर कड़ा दबाव है कि वे बकाया न देने वालों पर कड़ी कार्रवाई करें और मार्च 2017 से पहले अपने खाते ठीक कर लें. बैंकों की बैलेंस शीट अर्थव्यवस्था का मिजाज भी बताती है. यही वजह है कि रिजर्व बैंक के मुखिया रघुराम राजन बार-बार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गिरती सेहत पर चिंता जता चुके हैं. बीते कुछ समय से बैकिंग क्षेत्र में सुधारों की सुगबुगाहट चल रही है. इनमें एसेट रीकंस्ट्रक्शन एजेंसी (एआरए) का गठन और छोटे बैंकों का बड़े बैंकों में विलय शामिल है.

बीते दिनों खबर आई थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के 29 बैंकों ने पिछले तीन साल के दौरान 1.14 लाख करोड़ रु की रकम बट्टे खाते में डाल दी. यानी इस कर्ज के बारे में उन्होंने मान लिया कि अब इसकी वसूली नहीं हो सकती. जब तक ऐसे कर्ज की वसूली की उम्मीद होती है तब तक उसे बैड लोन कहा जाता है. आरबीआई के मुताबिक मार्च 2012 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में बैड लोन का आंकड़ा 15, 551 करोड़ रु था. लेकिन अगले तीन साल के दौरान यानी मार्च 2015 तक यह तीन गुना से भी ज्यादा होकर 52, 542 करोड़ हो गया.