हार के लिए मतदान

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चौंकाने वाली जीत और हार आमतौर पर सीधे चुनावों में देखी जाती है. अप्रत्यक्ष रूप से होने वाले राज्य सभा चुनावों में ऐसा कम होता है और जब होता है तो यह अक्सर आपसी कलह और संदिग्ध किस्म के बाहरी प्रभाव की कहानी कहता है. हालिया राज्य सभा चुनावों के आखिरी दौर में हरियाणा में कांग्रेस और कर्नाटक में जनता दल (सेकुलर) को उनके ही विधायकों ने झटका दे दिया. इन दलों के नेतृत्व ने जो रणनीति बनाई थी वह धरी की धरी रह गई. नेतृत्व के फैसलों से असंतुष्ट विधायकों ने पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार सुनिश्चित कर दी.

हरियाणा में चेतावनी के संकेत पहले ही मिल गए थे. लेकिन भाजपा द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार और मीडिया क्षेत्र के दिग्गज सुभाष चंद्रा को किसी भी कीमत पर हराने को आतुर कांग्रेस हाईकमान ने इनकी उपेक्षा की. वरिष्ठ अधिवक्ता आरके आनंद को जिताने के लिए पार्टी नेतृत्व का इंडियन नेशनल दल से हाथ मिलाना कांग्रेस की हरियाणा इकाई के लिए झटका था. दोनों पार्टियां राज्य में एक-दूसरे की धुर विरोधी रही हैं. कांग्रेस हाईकमान और राज्य इकाई के हित आपस में टकरा रहे थे. हाईकमान इस पर अड़ा था कि राज्य सभा में भाजपा की सीटों में एक की ही सही पर कमी आए. लेकिन पार्टी के विधायक हरियाणा के सियासी रण के समीकरणों को लेकर ज्यादा फिक्रमंद थे.

कांग्रेस के लिए स्थिति इसलिए और खराब हो जाती है कि यह बागी विधायकों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है. जिन 15 विधायकों ने जानबूझकर अपने वोट अवैध करवाए उन्हें पार्टी की राज्य इकाई के एक बड़े धड़े का समर्थन हासिल है जिसकी अगुवाई पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुडा कर रहे हैं. अब सुनने की बारी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की है.
कर्नाटक में कांग्रेस के लिए हालात उलट रहे जहां उसे दूसरी पार्टी में पड़ी फूट का फायदा मिला. जनता दल (सेकुलर) में बगावत का इतिहास पुराना है. यहां क्रॉस वोटिंग का लेना-देना उम्मीदवार के चयन से ज्यादा पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली से था. बागी विधायकों में से कुछ मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के करीबी माने जाते हैं जो पहले खुद भी जनता दल (सेकुलर) में थे. फिर भी उनकी बगावत का मतलब कांग्रेस से लगाव नहीं बल्कि अपनी पार्टी के नेतृत्व को संदेश देना है. उत्तर प्रदेश में भी गुजराती मूल की कारोबारी प्रीति महापात्रा के पक्ष में कुछ क्रॉस वोटिंग हुई जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी समझा जाता है. हालांकि कांग्रेस के आधिकारिक प्रत्याशी कपिल सिब्बल यहां से जीतने में सफल रहे. अतीत में राज्य सभा चुनाव के कुछ उदाहरणों की तरह इस बार भी अमीर उम्मीदवारों को हर पार्टी से वोट मिलने की खबरें हैं. इससे यह धारणा और मजबूत होती है कि संसद के उच्च सदन के चुनाव में पैसे का असर जारी है.