वा’मपंथी पार्टियाँ, भा’जपा, कांग्रेस ने शि’क्षा संस्थानों को राजनीतिक वर्च’स्व की ल’ड़ाई बना दिया है: किशन शर्मा

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मैं यह समझ पाने में पूरी तरह असमर्थ होता जा रहा हूं कि अंतत: विभिन्न शिक्षा संस्थान किस उद्देश्य से स्थापित किये गये हैं । क्या छात्र-छात्राएं वहां वास्तव में केवल शिक्षा ग्रहण करने के लिये जाते हैं ? मेरे सामने यह एक अनुत्तरित प्रश्न बनता जा रहा है । पढा तो मैं भी था । लेकिन उस समय शिक्षा संस्थाओं में पढाई के साथ साथ नाटक, संगीत, अन्त्याक्षरी, वाद-विवाद और खेल-कूद पर ही सारा ध्यान केन्द्रित रहता था । अध्यापकगण चुन चुन कर प्रतिभाशाली छात्रों को अलग अलग विधा में विविध स्तर की प्रतियोगिता के लिये तैयार करते थे और दिन-रात उनके प्रशिक्षण में जुटे रहते थे । अंतर विद्यालयीन, फ़िर जिला स्तरीय, उसके बाद सम्भागीय स्तर पर, फ़िर प्रदेश स्तर पर और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं में पुरस्कार प्राप्त करने के लिये छात्रों को प्रेरित किया जाता था ।

छात्र संघ के चुनाव तो उस समय भी होते थे, परंतु छात्र संघ की कुछ निर्धारित सीमाएं हुआ करती थीं । शिक्षकों के समक्ष विद्यार्थी कभी अशोभनीय व्यवहार नहीं किया करते थे । खुरजा के एन0 आर0 ई0 सी0 डिग्री कॉलेज में पढाई करते समय और फ़िर जटिया पॉलीटेक्निक में मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई करते समय मैं वहां की क्रिकेट टीम का कैप्टेन भी रहा, गायन-नाटक-लेखन-अन्त्याक्षरी-वाद विवाद आदि का अति लोकप्रिय और पुरस्कृत युवा भी रहा और छात्र संघ का शक्तिशाली नेता भी रहा । परंतु कभी तो’डफ़ो’ड, मा’रपी’ट, और अनुशासनहीन’ता की कोई कार्रवाई नहीं की । राजनीति के बडे बडे नेता विभिन्न समारोहों में भाग लेते थे, परंतु कभी किसी ने छात्रों को उकसाया नहीं ।

वे छात्रों को छात्र जीवन में अनुशासन और अपने से बडों का आदर करने की ही सीख दिया करते थे । आकाशवाणी में भी मैं कलाकारों की यूनियन का पश्चिम क्षेत्रीय सचिव और केन्द्रीय सचिव भी रहा, और सफ़लता पूर्वक कलाकारों के हित में कार्य भी करता रहा । हमारे मुख्य नेता, प्रख्यात समाचार वाचक श्री अशोक बाजपेयी थे । हमने भूख हडताल भी की, आंदोलन भी किये; परंतु आकाशवाणी के प्रसारण पर इसका कोई असर नहीं पडने दिया । विभिन्न राजनीतिक दलों के वरिष्ठतम नेतागण हमसे जुडे रहे, परंतु हम सब लोग अपनी सीमा में रहकर अपना अपना कार्य करते रहे । मुझे यह देख कर दुख होता है कि पिछले कुछ वर्ष में शिक्षा केन्द्रों का अत्यधिक दुरुपयोग केवल राजनीतिक दलों द्वारा ही किया जाने लगा है ।

अब छात्र कौन है, यही निर्धारित करना मुश्किल होता जा रहा है । अलग अलग राजनीतिक दलों के लोग, विद्यार्थी के रूप में अनेक वर्ष नि:शुल्क सारी सुविधाएं लेते रहते हैं और अपने अपने दल के प्रभुत्व को बढाने में लगे रहते हैं । इन्हीं में से कुछ तो देश के प्रधान मंत्री को भी चुनौती देने लग गये । कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस पार्टी, आदि सभी राजनीतिक दल अपना अपना प्रभुत्व दिखाने और बढाने में शिक्षा संस्थाओं का दुरुपयोग करने लगे हैं । मा’र-पी’ट, तो’ड-फ़ोड जैसे कार्य शिक्षा संस्थाओं में खुले आम होने लगे हैं हिन्दू-मुस्लिम, पिछडे वर्ग, क्षेत्रीय भेदभाव और ऐसे कोई भी शिक्षा से सम्बन्ध नहीं रखने वाले विवादों में शिक्षा संस्थाओं को उलझा कर तरह तरह की राजनीति करते रहना इन तथाकथित “छात्रों” का मुख्य उद्देश्य बन गया है ।

अनेक साहित्यकार, फ़िल्म कलाकार तथा अन्य प्रभावशाली व्यक्ति अपने अपने निजी हित और स्वार्थ के तहत ऐसे लोगों का समर्थन करने लग जाते हैं । कभी किसी ने यह पूछने की हिम्मत नहीं की कि जो लोग अपने आप को छात्र कहला कर, अनेक वर्ष तक सारी सुविधाएं नि:शुल्क प्राप्त करते हुए पढाई या शोध के नाम पर राजनीति करते रहते हैं, वे आखिर कभी पढाई करते भी हैं या केवल राजनीति ही करते रहते हैं । जनता के धन का इस प्रकार से दुरुपयोग रोकना अत्यंत आवश्यक हो गया है । मेरा ऐसा मत है कि ऐसे छात्रों को एक समय सीमा के बाद शिक्षा संस्थान से बाहर निकाल दिया जाना चाहिये और केवल एक निश्चित अवधि तक ही सारी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहियें । अगर इसी प्रकार शिक्षा केन्द्रों में अराजकता फ़ैलाने वाले तत्वों को आश्रय दिया जाता रहेगा, तो यह निश्चित रूप से शिक्षा के मूल उद्देश्य के लिये ही घातक साबित होगा । मेरा स्पष्ट मत है कि इस प्रथा पर तुरंत अंकुश लगाना आवश्यक है; क्योंकि देश, जनता, सरकार और राजनीतिक दलों के लिये बहुत विनाशकारी होगा, शिक्षा संस्थाओं का ऐसा राजनीतिक दुरुपयोग ।

(किशन शर्मा, 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर-440015; मोबाइल-8805001042)
#इस लेख में प्रदर्शित विचार लेखक के अपने हैं, नूतन सवेरा का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है.