बच्चों की तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दिया ये कड़ा आदेश

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बच्चों की तस्करी के मामलों को लेकर यूपी सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर कड़ा रुख अपनाया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने बाल तस्करी से निपटने में लापरवाही बरतने के लिए दोनों को फटकार लगाई और इस अपराध को रोकने के लिए राज्य सरकारों के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि सभी राज्य सरकारें भारतीय संस्थान द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अध्ययन करें और इसे तत्काल लागू करें।

अदालत ने निर्देश दिया कि बाल तस्करी के मामलों में सभी आरोपियों को आत्मसमर्पण करना होगा और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा जाएगा। साथ ही, आरोप तय होने के एक सप्ताह के भीतर मुकदमे की सुनवाई शुरू होनी चाहिए। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की जमानत प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए, जिसमें आरोपियों को बिना कड़ी शर्तों के जमानत दी गई, जिसके चलते कई आरोपी फरार हो गए। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को कम से कम यह शर्त लगानी चाहिए थी कि आरोपियों को स्थानीय पुलिस स्टेशन में नियमित रूप से हाजिरी देनी पड़े।

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की निष्क्रियता पर भी नाराजगी जताई और सवाल किया कि सरकार ने इस मामले में कोई अपील क्यों नहीं की। कोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार ने इस गंभीर मुद्दे को पूरी तरह से लापरवाही से लिया, जिससे वह बेहद निराश है। बाल तस्करी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि किसी अस्पताल में नवजात शिशु की चोरी होती है, तो उसका लाइसेंस तुरंत निलंबित किया जाए। पीठ ने चेतावनी दी कि ऐसी किसी भी लापरवाही को अदालत की अवमानना माना जाएगा।

कोर्ट ने देशभर के हाईकोर्ट्स को बाल तस्करी से जुड़े लंबित मामलों की स्थिति का जायजा लेने और छह महीने के भीतर मुकदमों को पूरा करने का आदेश दिया। इन मामलों की दिन-प्रतिदिन सुनवाई सुनिश्चित करने को भी कहा गया। यह आदेश एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें उत्तर प्रदेश के एक दंपत्ति ने चार लाख रुपये में तस्करी के जरिए लाया गया बच्चा खरीदा था। दंपत्ति को बेटा चाहिए था और वे बच्चे की अवैध उत्पत्ति से अवगत थे। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने जमानत आवेदनों पर संवेदनहीनता दिखाई, जिसके चलते आरोपी फरार हो गए। पीठ ने चेतावनी दी कि ऐसे अपराधी समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को समाज के लिए एक बड़ी चुनौती करार देते हुए सभी राज्य सरकारों से बाल तस्करी के खिलाफ ठोस और त्वरित कार्रवाई करने की अपील की। कोर्ट के इन निर्देशों से उम्मीद जताई जा रही है कि बाल तस्करी जैसे जघन्य अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

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