सवाल “पापी पेट” का, या “चटोरी जीभ” का? – किशन शर्मा

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हमेशा सभी तरह के लोग “पापी पेट” को ही दोषी बताते रहते हैं । कुछ भी करना पडे या सहना पडे तो लोग आमतौर पर यही कहते रहते हैं कि “पापी पेट का सवाल है” । लेकिन मैं यह देख कर और समझकर हैरान रह जाता हूं कि बेचारा पेट तो बिना कारण बदनाम होता रहता है । अगर पेट की भूख ही मिटाने का सवाल होता तो हम लोग पेट भरने के लिये कुछ भी और कैसा भी खा सकते थे । परंतु सच्चाई यह है कि हम अपनी चटोरी जीभ के स्वाद के लिये चीज़ें खाते हैं । किसी भी दावत में यह दृष्य दिखाई देता ही रहता है कि लोग एक चक्कर लगा कर पहले खाने में रखी सब वस्तुओं को देख लेते हैं, फ़िर जो अच्छी और आकर्षक दिखाई दे, उसे चखने लगते हैं; और स्वाद भी पसंद आ जाये तो फ़िर उसे खाने लगते हैं । अर्थात दिखाई देने में आकर्षक और चखने में स्वादिष्ट वस्तुओं को ही अधिकांश लोग खाते रहते हैं ।

अगर केवल पापी पेट का ही सवाल है तो जो भी वस्तु पहले दिखाई दे जाये, उससे ही पेट भरा जा सकता है । मेरी एक मित्र बहुत ही लोकप्रिय अभिनेत्री हैं, उनका विशेष अंदाज़ देखकर मैं वास्तव में चकित रह गया था । वो होटलों में पानी पूरी, चाट, समोसे, कचौरी आदि अलग अलग दिन खाती ही रहती थीं, और कुछ ही मिनट के बाद वहीं के बाथरूम में जाकर उल्टी कर देती थीं । पहले मुझे ऐसा लगा कि उनकी तबीयत खराब हो गई होगी, लेकिन जब बार बार यह क्रम देखा तो मैंने उनसे इस बारे में पूछ ही लिया । वो थोडा मुस्कुराईं और फ़िर बोलीं, “क्या है किशन जी, मुझे चटपटा खाना बहुत पसंद है; खासतौर पर पानी पूरी, दही पूरी, सेव पूरी, समोसे ।

ऐसी चीज़ों को देखकर मुंह में पानी भर आता है । तो जीभ के स्वाद के लिये मैं यह सब खा लेती हूं; मगर मुझे अपने पेट और स्वास्थ का ध्यान भी रखना होता है और कहीं मोटी न हो जाऊं यह भी डर लगा रहता है; इसलिये मुंह का स्वाद ले लेती हूं लेकिन इन चीज़ों को पेट में नहीं जाने देती । इसलिये तुरंत उल्टी कर देती हूं” । यह सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया । ऐसा भी कुछ लोग करते हैं, यह एक नई जानकारी मुझे मिल गई थी । गरीब लोग और भिखारी तो जो मिल जाता है, उसी से अपना पेट भर लेते हैं । उनके लिये स्वाद का कोई महत्व नहीं होता । मैंने अनेक किसानों को प्याज़ और नमक के साथ रोटी खाते हुए देखा है । वे वास्तव में “पापी पेट” को भरने के लिये जो उपलब्ध होता है वही खा लेते हैं ।

भिखारी लोग और उनके बच्चे भी जहां, जो कुछ मिल जाये, वही खाकर अपना पेट भर लेते हैं । परेशानी होती है अमीर, नये ज़माने के, फ़ैशनेबल परिवारों के लोगों की । वे पेट भरने के लिये नहीं बल्कि जीभ के स्वाद के लिये अलग अलग प्रकार के व्यंजन खाते रहते हैं । अगर कभी घर के खाने में स्वाद नहीं आया तो उसे छोड देते हैं और बाहर किसी होटल में अपनी पसंद की चीज़ें खा लेते हैं । कुछ लोग अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए ऐसी चटपटी चीज़ों की मात्रा कम कर देते हैं, परंतु अपनी जीभ के चटोरेपन पर नियंत्रण नहीं रख पाते । दो या तीन पानी पूरी, या आधा समोसा, या कचौरी का एक टुकडा खाकर जीभ को संतुष्टि प्रदान करने के बाद वो लोग अपने पेट को भरने के लिये सादा भोजन खाने लगते हैं ।

मिठाई के बारे में भी ऐसा ही करते हैं अनेक लोग । एक जलेबी, आधा लड्डू, रस पूरी तरह निचोडकर रसगुल्ला खाते हुए मैंने अनेक लोगों को देखा है । एक चम्मच आइस्क्रीम को धीरे धीरे खाकर अपनी जीभ को प्रसन्न करने वाले अनगिनत लोग दिखाई देते रहते हैं । एक से बढकर एक अच्छे, स्वादिष्ट और महंगे पकवान खाने वाले अति अमीर लोग भी जब “पापी पेट का सवाल है” कहकर बेचारे पेट को दोष देने लगते हैं तब वास्तव में मुझे तो उनपर हंसी आने लगती है । आज तक मैंने किसी भी पुरुष, महिला, युवा या बच्चे को अपनी जीभ के चटोरेपन को दोष देते हुए नहीं सुना है । एक बहुत ही अमीर व्यक्ति से मैंने एक बार पूछ लिया कि वे ढेर सारा काम स्वयं ही बहुत देर देर तक क्यों करते रहते हैं, तो उनका छोटा सा उत्तर था, “भाई साहब, पापीपेट का सवाल है । उसके लिये ही इतनी मेहनत करनी पडती है” । मैं आज तक यह समझ नहीं पाया हूं कि आखिरकार सवाल किसका होता है – पापी पेट का, या चटोरी जीभ का, या असीमित धन-वैभव प्राप्त करने की लालसा का ?

किशन शर्मा
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