नये यातायात नियम प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य: किशन शर्मा

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अंतत: केन्द्रीय सडक यातायात मंत्री नितिन गडकरी जी ने यातायात विभाग को कुछ बहुप्रतीक्षित अधिकार प्रदान करने का निर्णय ले लिया है । सरकार ने घोषणा कर दी, और तुरंत ही अपेक्षित विरोध शुरू हो गया । पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान जैसे राज्यों की भा0ज0पा0 विरोधी दलों की सरकारों से तो यह अपेक्षित था, परंतु महाराष्ट्र में इसका विरोध होना, अचरजकारी है । चुनाव का समय निकट होने के कारण यह विरोध किया जा रहा होगा, अन्यथा भा0ज0पा0 शासित प्रदेश में अन्य कोई कारण नज़र नहीं आता ।

निजी स्तर पर मैं स्वयं नये कानून और जुर्माने की बढाई गई राशि तथा सज़ा का समर्थन करता हूं । वास्तव में यह अति आवश्यक था इस देश में । 50 या 100 रुपये का दंड कोई महत्व नहीं रखता आज के समय में । कानून और नियम तोडने वाले अधिकांश लोग 50 या 100 रुपये का नोट जेब में तैयार ही रखते रहते थे, कि चाहे दंड भरना पडे या पुलिसकर्मी को देना पडे, वह रकम तुरंत दी जा सके । लोगों के मन से डर ही गायब हो गया था और नियम कानून की धज्जियां उडाने वाले बच्चे, युवा, वयस्क, और वृद्ध महिला-पुरुष निडर होकर अपनी शान दिखाते रहते थे ।

जब भी पुलिस के उच्च अधिकारियों से मैंने इस विषय पर चर्चा की, वे हमेशा यही कहते रहे कि जुर्माना और सज़ा बढाये बिना लोगों को नियंत्रण में नहीं लाया जा सकता । मैंने अनेक लेख यातायात की दुर्दशा पर लिखे परंतु किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया । देश भर में राजमार्गों पर, महामार्गों पर, महानगरों में, नगरों में, कस्बों में और छोटे छोटे गावों में जिस लापरवाही से वाहन गलत दिशा में चलाये जाते रहे हैं, इसकी जानकारी सभी को है, और फ़िर भी किसी को नहीं है । असीमित संख्या में तेज़ रफ़्तार से उल्टी दिशा में चलाये जाने वाले वाहनों को देखकर मैं अनेक बार आश्चर्य से यह सोचने पर मजबूर होता रहा हूं कि कहीं मैं ही तो गलत दिशा में वाहन नहीं चला रहा ।

दोपहिया वाहनों पर कम से कम तीन व्यक्ति तो बैठे दिखाई देते ही रहे हैं । तीन सवारी बैठाने वाले औटोरिक्षा में मैंने अनेक बार 9 या 10 व्यक्ति भी बैठे देखे हैं । बसों में भरे हुए लोगों के अलावा, बस की छत पर बैठे हुए लोग और पीछे लटके हुए लोग कहीं भी दिखाई दे जाते हैं । तेज़ रफ़्तार से वाहन चलाना और बाएं-दाएं कैसे भी वाहन चलाना आजकल के लोगों का अलग अन्दाज़ हो गया है । भारी सामान दोपहिया वाहन पर ले जाना, और मोबाइल फ़ोन का प्रयोग वाहन चलाते समय करना शायद अटलनीय क्रम होता जा रहा था । अपने वाहन को कहीं भी, कैसे भी और कभी भी खडा कर देना या मोड देना भी नियमित कृत्य बनता जा रहा था ।

लाल बत्ती होने पर भी सिग्नल पर नहीं रुकना एक ऐसा नियमित काम हो गया है कि अब किसी को भी तब आश्चर्य होने लगता है, जब कोई मुझ जैसा व्यक्ति रुक कर हरी बत्ती की प्रतीक्षा करने लगता है । लोग हंसते हैं, चिल्लाते हैं और गालियां भी देते हैं । “पुलिस वाला नहीं है, फ़िर क्यों रुका है, और हमारा रास्ता क्यों रोक रखा है” जैसे वाक्य सुनता रहा हूं । पुलिस वाले हों, तब भी अनेक लोग कहां डरते हैं ? अनेक पुलिसकर्मी डरे हुए रहते हैं आजकल के वाहन चालकों से । तेज़ रफ़्तार से वाहन चलाते हुए अनेक लोग कभी भी रोके जाने पर रुकने की बजाय, पुलिसकर्मी पर ही वाहन चढा देते हैं और अनेक पुलिसकर्मी इस तरह घायल होते रहे हैं ।

दोपहिया वाहन चालकों द्वारा हेलमेट सिर पर नहीं पहनना बल्कि या तो हाथ में लटका लेना, या वाहन के हैंडल में लटका लेना, या पीछे लटका लेना, या पैरों के पास रख लेना; आम बात है । कार में सीट बैल्ट का उपयोग नहीं करना भी आम बात ही है । फ़ैंसी नम्बर लिखवाना शान दिखाने की बात होती है । कार के कांच पर रंगीन फ़िल्म लगाना तो बडे लोगों की निशानी माना जाता है । अनेक बडे राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों, उद्योगपतियों और फ़िल्मी कलाकारों के वाहनों पर ऐसी फ़िल्में लगी रहती हैं । वाहनों पर अनधिकृत रूप से “पुलिस”, “ऑन गवर्नमेंट ड्यूटी”, या “वी0आई0पी0” लिखकर भी कुछ लोग घूमते रहते हैं ।

“प्रैस” लिखकर अनेक लोग क्या दर्शाना चाहते हैं, यह मैं तो नहीं जानता । कुछ वाहनों पर बडे बडे अक्षरों में “चेयरमैन”, “प्रधान मंत्री”, “मंत्री”, “अध्यक्ष” लिखा होता है और उसके नीचे छोटे छोटे अक्षरों में, “मोहल्ला कमेटी”, “शिक्षा समिति”, आदि लिख देते हैं कुछ लोग । ऐसे लोगों को बडी रकम का जुर्माना या सख्त सज़ा ही ठीक करने का प्रयास कर सकती है, और उसके लिये नये यातायात नियम घोषित करके नितिन गडकरी जी ने एक प्रशंसनीय कार्य किया है । मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि जिस दिन दोपहिया और तीनपहिया वाहनों को नियंत्रित कर लिया जायेगा, उस दिन से सडक दुर्घटनाओं की संख्या में कमी और यातायात नियमों की अवहेलना में कमी निश्चित रूप से दिखाई देने लगेगी । वास्तव में, यातायात के नये नियम, एक बहुप्रतीक्षित निर्णय है, जो प्रशंसनीय भी है और स्वागत योग्य भी है ।

( किशन शर्मा: 901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर – 440015; मोबाइल – 8805001042 )

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  1. If public wants not to do anything, forceful act is like political suicide. Public is ultimate owner and decision maker.

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