तीसरी आंख यानी आज्ञा चक्र की दिव्य दृष्टि बढ़ाने वाली साधनाओं में ‘त्राटक’ मुख्य है। इसे बिंदु योग भी कहते हैं। अस्त-व्यस्त इधर-उधर भटकने वाली बाह्य और अन्तः दृष्टि को किसी बिंदु विशेष या लक्ष्य विशेष पर एकाग्र करने को बिंदु साधना कह सकते हैं। त्राटक का उद्देश्य यही है। त्राटक में बिंदु और दीपक जैसे साधनों का उपयोग किया जाता है। ध्यान के शुरुआती अभ्यास की दृष्टि से त्राटक को जरूरी और प्रमुख माना गया है
त्राटक के स्वरूप का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है-
निरीक्षे त्रिश्चलदृश्या सूक्ष्म लक्ष्यं समाहितः।
अश्रु संपात पर्यन्तं आचार्ये स्त्राटय स्मृतम्॥
यानी एकाग्र चित्त होकर निश्चल दृष्टि से सूक्ष्म लक्ष्य को तब तक देखते रहे जब तक आंखों में से आंसू न आ जाए। इस साधना को त्राटक कहते हैं।
योग रसायन में कहा गया है –
यथा धन्वी स्वकं लक्ष्यं वेधयत्यं चलेक्षणः।
तथैव त्राटकाभ्यासं कुर्मादेकाग्रमानसः।।
जैसे धनुष चलाने वाला मात्र अपने लक्ष्य को ही लक्ष्यबेध के क्षण में देखता है, वैसे ही त्राटक का अभ्यास एकाग्र मन से करना चाहिए। त्राटक के माध्यम से किया गया एकाग्रता का अभ्यास बढ़ते-बढ़ते समाधि की स्थिति तक जा पहुंचता है। समाधि के साथ दिव्य दृष्टि का-अतीद्रिंय चेतना भी जागृत हो जाती है। त्राटक का प्रतिफल समयानुसार समाधि के रूप में सामने आता है। कहा गया है-
त्राटकाभ्यासतश्चापि कालेन क्रमयोगतः।
त्राटक का अभ्यास –
वैसे तो त्राटक का अभ्यास बिंदु, तारा, सूर्य, चंद्र आदि पर किया जाता है, लेकिन फिर भी इसके अभ्यास में दीपक सबसे उपयुक्त है। मिलावटी या नकली घी की अपेक्षा शुद्ध तेल ज्यादा अच्छा है। मोमबत्ती का उपयोग भी किया जा सकता है। कम पावर के रंगीन बल्ब भी इस प्रयोजन की पूर्ति कर सकते हैं। इनमें से जो भी उपकरण काम में लाना हो, उसे छाती की सीध में चार से दस फुट तक की दूरी पर रखना चाहिए। पीछे काला, नीला या हरा पर्दा टंगा हो या इन रंगों से दीवार रंगी हो। त्राटक के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा है। रात्रि के समय भी किया जा सकता है। दिन में सूर्य का प्रकाश फैला रहने से यह साधना ठीक तरह नहीं बन पड़ती हैं। यदि दिन में ही करनी हो तो अंधेरे कमरे में करना चाहिए। साधना के लिए कमर सीधी, हाथ गोदी में, पालथी सही रखकर बैठना चाहिए। वातावरण में घुटन पैदा करने वाली बाधाएं नहीं होना चाहिए। यह अभ्यास दस मिनट में आरम्भ करके उसे एक-एक मिनट बढ़ाते हुए एक दो महीने में अधिक से अधिक आधे घंटे तक पहुंचाया जा सकता है। इससे अधिक नहीं किया जाना चाहिए। खुले नेत्र से प्रकाश ज्योति को दो से पांच सेकंड तक देखना चाहिए और आंखें बंद कर लेनी चाहिए। जिस स्थान पर दीपक जल रहा है उसी स्थान पर उस ज्योति को ध्यान नेत्रों से देखने की कोशिश करना चाहिए। एक मिनट बाद फिर आंखे खोल लेना चाहिए और पूर्ववत् कुछ खुले नेत्रों से ज्योति को देखकर फिर आंखें बंद कर लेना चाहिए। इस तरह हर एक-एक मिनट के अंतर से नेत्र खोलने और कुछ सेकंड देखकर फिर आंखे बंद करने और ध्यान द्वारा उसी स्थान पर ज्योति दर्शन बार-बार करते रहना चाहिए। योग रसायन में कहा गया है –
राजयोगसमाधिः स्यात् तत्प्रकारोऽधुनोच्यते।
त्राटक के अभ्यास से भी समयानुसार राजयोग की समाधि का लाभ संभव है। त्राटक विधियां अनेक प्रकार की हैं। मैस्मरेजम के अभ्यासी सफेद कागज पर काला गोला बनाते हैं। उसके मध्य में सफेद बिंदु रहने देते हैं। इस पर नेत्र दृष्टि और मानसिक एकाग्रता को केंद्रित किया जाता है। अष्टधातु के बने तश्तरीनुमा पतरे के मध्य में तांबे की कील लगा कर उस मध्य बिंदु को एकाग्र भाव से देखते रहने का भी वैसा ही लाभ बताया जाता है। कहते हैं कि धातु के माध्यम से बेधकदृष्टि की शक्ति और भी अधिक बढ़ती है।
क्या होगा अभ्यास के बाद
‘योग रसायन’ में त्राटक के विधान और प्रगति क्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
दृश्यते प्रथमाभ्यासे तेजो बिदु समीपगम्।
चक्षषो रश्मिजातानि प्रसंरति समंततः॥
त्राटक के अभ्यास से प्रथम तेजोमय बिंदु पास आता दिखेगा। नेत्र से रश्मियां निकलती दिखेंगी।
तेजसा संवृतं लक्ष्यं क्षणं लुप्तं भवेत्ततः।
क्षणं दृष्टिगतं भूत्वा पुनलुप्तं भवेत्क्षणात्॥
फिर वह तेजपूर्ण बिंदु कभी लुप्त दीखेगा, कभी प्रकट हुआ दिखेगा । ऐसा ही क्रम बार-बार चलेगा।
त्राटक के लाभ –
1.एकाग्रता बढ़ने लगेगी।
2. आकर्षण व तेज बढ़ेगा और सम्मोहन शक्ति पैदा होगी।
3. दुसरों के मन के विचार समझ आने लगेंगे।
4. अधिक अभ्यास से भविष्य में होने वाली घटनाएं भी पहले से ही दिख सकती हैं।