जीवन में कभी-कभी अनपेक्षित रूप से कोई संकट ऐसा आ उपस्थित होता है जिसकी कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसे समय में जब संकट से उबरने की कोई रह न सूझ रही हो तो एक मात्र उपाय जगज्जननी पराम्बा माँ भगवती की शरण में जाना ही है।
कहते है कि माँ से बड़ा कोई हितैषी नहीं होता। माँ हमेशा अपनी संतान का कल्याण चाहती है। कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति अर्थात पुत्र कुपुत्र होता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। पुत्र के सम्मुख जब संकट उपस्थित हुआ हो तो माँ अपने बेटे को बचने के लिए कुछ भी कर सकती है। इसलिए संकट के समय मनुष्य को चाहिए कि समस्त संसार की माता देवी भगवती की शरण में जाये। देवी भगवती ममतामयी है, वे सदा भक्तों पर करुणा बरसाने वाली हैं।
क्या करें –
प्रातःकाल जल्दी उठकर नहा धोकर मां दुर्गा की मूर्ति / तस्वीर के सामने उनकी नीचे दी हुई स्तुति का पाठ 108 बार करें। इस स्तोत्र के रचयिता वेदव्यास जी हैं और इस स्तोत्र की महिमा अनंत है। इसका पाठ करनेवाले पर माँ भगवती की सदा कृपा रहती है। यदि दुर्गा स्तुति से आपको जल्दी फल चाहिए तो स्तुति से पहले और बाद में एक माला मूल नवार्ण मन्त्र का जप करें और उसे देवी को समर्पित करें। यह काम आपको निरंतर पूरी तरह भक्ति भाव से समर्पित होकर तब तक जारी रखना है जब तक कि संकट का समय बीत न जाये। यदि निरंतर दुर्गा माँ की स्तुति किया जाये तो सारे दुख नष्ट हो जाते हैं।
|| श्री भगवती स्तोत्रम् ||
जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे ।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ॥१॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे ।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे ॥२॥
जय महिषविमर्दिनि शुलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे ।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोऽवनते ॥३॥
जय षण्मुखसायुध ईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे ॥४॥
जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे ।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे ॥५॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं यः पठेन्नियतः शुचि ।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा ॥६॥