सरकार भले न माने लेकिन ‘दो निशान, दो विधान और दो प्रधान’ नगालैंड में खुला रहस्य है

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पिछले साल तीन अगस्त को भारत सरकार और नगालैंड के सबसे प्रभावशाली विद्रोही गुट नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आईएम) के बीच एक समझौता हुआ था. पहले इसे शांति समझौता (पीस एकॉर्ड) कहा जा रहा था लेकिन बाद में ‘फ्रेमवर्क एग्रीमेंट’ नाम दिया गया. इसका मोटा-मोटा मतलब था कि दोनों पक्षों ने बातचीत और संभावित शांति समझौते की एक रूपरेखा पर सहमति जता दी है.
इस समझौते से जुड़ी शर्तें अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई हैं लेकिन एक मुद्दे पर यह समझौता भारी विवादों में है. पिछले दिनों कुछ समाचार वेबसाइटों और सोशल मीडिया साइटों पर खबर आई थी कि भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम की नगा लोगों के लिए अलग झंडे और पासपोर्ट की मांग मान ली है. नरेंद्र मोदी सरकार ने नगालैंड में शांति स्थापित करने की दिशा में इसे ऐतिहासिक समझौता करार दिया था लेकिन इन खबरों के बाद सरकार लगातार निशाने पर है.
भाजपा के लिए यह दोहरी मुसीबत है. वह खुद और उसका पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्याम प्रसाद मुखर्जी को आदर्श मानते हैं जिन्होंने कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के लिए ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे’ का नारा दिया था. जबकि इसबार खुद उसकी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि उसने नगालैंड के लिए यह मांग मंजूर कर ली है.
फिलहाल भारत सरकार ने इस खबर का खंडन किया है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू का कहना है कि अभी नगा संगठन से बातचीत चल रही है और अलग झंडे व पासपोर्ट की खबर सही नहीं है. अलग झंडे और पासपोर्ट का सीधा अर्थ है कि संबंधित भूभाग पर दूसरी सरकार है. केंद्र में किसी अन्य पार्टी की सरकार के लिए भी यह काफी मुश्किल होता और भाजपा के लिए तो यह मांग मानना तकरीबन असंभव ही है. लेकिन इस पूरे विवाद का एक अलग लेकिन सबसे दिलचस्प पहलू है कि नगालैंड में आज भी दो सरकारें चलती हैं. यहां दो झंडे हैं और नियम-कानून भी अलग-अलग हैं.
दीमापुर नगालैंड की व्यवसायिक राजधानी है. इससे तकरीबन 40 किमी दूर जंगल के बीच पहाड़ी पर एक विशाल परिसर में कई आवासीय इकाइयां बनी हुई हैं और यही कैंप हेब्रॉन कहलाता है. यह एनएससीएन-आईएम का केंद्रीय मुख्यालय (सीएचक्यू) और गवर्नमेंट ऑफ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ नगालिम (जीपीआरएन) का भी मुख्यालय है. जीपीआरएम नगालैंड की स्वघोषित सरकार है. एनएससीएन-आईएम की स्थापना इसाक चिसी स्वू और थ्युंगालेंग मुइवा ने की थी. इसाक संगठन के चेयरमैन और सरकार में राष्ट्रपति हैं और संगठन के महासचिव मुइवा प्रधानमंत्री.
1995 में जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तब केंद्र सरकार सभी विद्रोही नगा गुटों को बातचीत की टेबल पर लाने पर सफल हुई थी. फिर 1997 में एनएससीएन-आईएम ने भारत सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौता कर लिया. इस गुट ने मांग की थी कि जब तक संघर्ष विराम लागू है केंद्र सरकार विद्रोहियों को रहने के लिए सुरक्षित जगह उपलब्ध कराए. इसी प्रक्रिया के तहत हेब्रॉन में विद्रोहियों के लिए शिविर या कैंप बनाए गए. लेकिन इन दो दशकों में दोनों पक्षों के बीच स्थायी संधि नहीं हो पाई और संघर्ष विराम लंबा खिंचता रहा. इस बीच कैंप हेब्रॉन के परिसर का विस्तार होता गया.
आज की तारीख में कैंप हेब्रॉन आकार या भव्यता में न सही लेकिन संरचना में एक संप्रभु राष्ट्र के मुख्यालय से कम नहीं लगता. स्क्रोल डॉट इन की एक रिपोर्ट के मुताबिक परिसर के भीतर जीपीआरएन के तमाम सरकारी विभागों के कार्यालय हैं. यहां कृषि मंत्रालय से लेकर पर्यावरण और वित्त मंत्रालय भी हैं. इस वित्त मंत्रालय के पास नगालैंड में कर वसूलने के लिए एक व्यवस्थित ढांचा भी मौजूद है और सिर्फ नगालैंड ही नहीं है पड़ोसी राज्यों के नगाबहुल इलाकों के नागरिकों से भी कर वसूला जाता है. यहां भी वित्त मंत्री सालाना बजट पेश करते हैं. फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट जीपीआरएन के एक अधिकारी के हवाले से जानकारी देती है कि इस सरकार का बजट भी करोड़ों रुपये का होता है. हर मंत्रालय के लिए एनएससीएन ने एक-एक मंत्री नियुक्त किया है. जीपीआरएन के संचालन की गंभीरता इससे भी समझी जा सकती है कि भारत सरकार से बातचीत की जिम्मेदारी इसके गृमंत्रालय को सौंपी गई है.
कैंप हेब्रॉन के सबसे भीतरी हिस्से में नगा सेना का मुख्यालय (जीएचक्यू) है. यहां हर दिन नए रंगरूटों के प्रशिक्षण का काम चलता है. एक अंग्रेजी मैंगजीन की रिपोर्ट बताती है कि जीएचक्यू की तुलना भारतीय सेना की किसी भी छावनी से की जा सकती है. यहां 30 से ज्यादा रसोईघर हैं इसके साथ ही दर्जनों डाइनिंग हॉल हैं.
पिछले दिनों नगा सरकार के ‘लोकनिर्माण विभाग’ ने यहां एक बड़ी इमारत भी बनाई है. यह तातार होहो यानी जीपीआरएन की ‘संसद’ है. इस ‘संसद’ में नगाओं की अलग-अलग जनजातियों की तरफ से नामित और कुछ चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं. इन्हें तातार कहा जाता है. मंत्रियों और उपमंत्रियों की परिषद – ‘किलोनसेर्स’, विभिन्न विभागों के सचिव और प्रमुख और इनके साथ सेना के कमांडर संसद के सदस्य होते हैं.
एनएससीएन-आईएम गुट हर साल 14 अगस्त को ‘वृहत्तर नगालैंड’ या जिसे वह नगालिम कहता है, का स्वतंत्रता दिवस मनाता है. नगालैंड के पहले और मूल विद्रोही गुट नगा नेशनल काउंसिल (एनएससी) ने 14 अगस्त, 1947 को नगालैंड की आजादी की घोषणा की थी. भारत सरकार ने इसे खारिज कर दिया था लेकिन तब से हर साल 14 अगस्त को हेब्रॉन में ‘स्वतंत्रता’ दिवस कार्यक्रम मनाया जाता है. पिछले साल तक यहां नगालिम का एक अलग झंडा फहराया जाता रहा है. हेब्रॉन में मुख्य कार्यक्रम होता है इसके अलावा नगालैंड की राजधानी कोहिमा सहित सभी शहरों कस्बों में इस दिन नगालिम का झंडा फहराया जाता है.
जीपीआरएन ने इन सालों में अपनी एक औपचारिक न्याय प्रणाली भी बना ली है जिसमें परंपरागत कानूनों के हिसाब से फैसले सुनाए जाते हैं. फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके सबसे निचले पायदान पर ग्राम अदालतें हैं. अलग-अलग जनजातीय क्षेत्रों में क्षेत्रीय अदालतें मौजूद हैं. इसी रिपोर्ट में जीपीआरएन के कर्मचारी दावा करते हैं कि ज्यादातर नगा आबादी भारतीय अदालतों के बजाय इन अदालतों पर भरोसा करती है.
नगालैंड की इन परिस्थितियों के बीच सवाल उठता है कि वहां चुनी हुई सरकार राज्य में एक समानांतर सत्ता क्यों चलने दे रही है? इस सवाल का सीधा जवाब यही है कि एनएससीएन-आईएम समानांतर सत्ता चलाने लायक ताकत रखता है. इस समय नगालैंड में नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) की सरकार है और माना जाता है कि इसे विद्रोही गुट अप्रत्यक्षरूप से समर्थन देता है. एनपीएफ की स्थापना नेफियो रियो ने 2002 में की थी. इससे पहले वे कांग्रेस में थे. एनपीएफ कुछ सहयोगी दलों जिनमें भाजपा भी शामिल है, के साथ 2003 से ही नगालैंड में सत्ता में है. उसने कांग्रेस को बेदखल कर पहली बार सरकार बनाई थी.
राज्य में कांग्रेस एनएससीएन-आईएम की विरोधी पार्टी रही है लेकिन इस गुट का इतना प्रभाव है कि निजी स्तर पर कई कांग्रेस नेता उसी के समर्थन से चुनाव जीतते हैं. वहीं दूसरी तरफ एनपीएफ को तो गुट का समर्थन हासिल ही है. जाहिर है कि ऐसे में एनएससीएन की समानांतर सरकार को चुनी हुई सरकार चुनौती नहीं देगी.
इस राज्य में वैसे तो सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून लागू है पर एनएससीएन-आईएम केंद्र सरकार के साथ संघर्ष विराम की स्थिति में है. इसलिए यहां केंद्रीय सुरक्षाबल यथास्थिति बनाए रखते हुए विद्रोही गुट के लड़ाकों पर तब तक सीधे कार्रवाई नहीं करते जबतक कि वे किसी हिंसक संघर्ष की वजह न बन रहे हों.
पिछले साल भारत सरकार के साथ समझौते के बाद 14 अगस्त को हेब्रॉन में एनएससीन-आईएम ने ‘नगालिम’ का स्वतंत्रता दिवस मनाया था. इस दिन फिर से नगालैंड में जगह-जगह नगालिम के झंडे फहराए गए. तब कहा जा रहा था कि यह नगालिम का अंतिम स्वतंत्रता दिवस हो सकता है क्योंकि इसके बाद जल्दी ही शांति समझौता अंतिम रूप ले लेगा. फिलहाल एक साल के बाद भी इस दिशा में दोनों पक्षों के बीच मतभेद दिखाई दे रहे हैं और पूरी संभावना है कि इसबार फिर 14 अगस्त को हेब्रॉन में नगालिम का झंडा फहराया जाए.