हो जाएं ज़ोरदार तालियां

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 हो जाएं ज़ोरदार तालियां

– किशन शर्मा

 

मैं टेलीविज़न के सामने कभी बैठता नहीं, और शायद इसीलिये शांत और प्रसन्न रहता हूं । परंतु कभी कभी मजबूरी में कोई कार्यक्रम देखना पड जाता है जब मैं किसी मित्र के घर गया होऊं और वहां सब लोग टी0 वी0 देख रहे हों । ऐसी ही मजबूरी में मुझे एक घंटे का एक कार्यक्रम देखना पडा, और मैं झुंझलाता रहा । जो महिला और पुरुष कुछ फ़िल्मी सितारों के समक्ष कुछ नये गायकों का गायन प्रस्तुत करवा रहे थे, वे हर थोडी सी देर में एक ही वाक्य अवश्य दोहराते जा रहे थे, “हो जाएं ज़ोरदार तालियां”। कभी कभी वाक्य बदलते हुए वे कह रहे थे, “इनके लिये ज़ोरदार तालियां बजनी चाहियें” । एक अन्य स्थान पर फ़िल्म पुरस्कारों का पूरी तरह से पूर्व लिखित, निर्देशित, और कई बार रिहर्स किया हुआ तथा एडिट किया हुआ नाटकीय कार्यक्रम बडे चाव और तल्लीनता के साथ देखा जा रहा था । उसमें भी बार बार यही वाक्य दोहराया जा रहा था, “हो जाएं ज़ोरदार तालियां” या “पुट योअर हैंड्स टुगैदर टु वैलकम दिस ग्रेट अर्टिस्ट” । फ़िर पूर्व रिकौर्ड की हुई तालियां और सीटी की एक जैसी आवाज़ें सुनाई देती जा रही थीं । आमतौर पर दर्शक यह मानने को तैयार नहीं होते कि ऐसे सारे कार्यक्रम पूर्व नियोजित, निर्देशित, कई कई बार रिहर्स और शूट होने के बाद भी एडिट करके दिखाये जाते हैं । किसको कब हंसना है, कैसे हंसना है; कब रोना है, कैसे रोना है; पूर्व निर्धारित और निश्चित स्थान पर बैठे हुए परिवार के सदस्य कब, कहां और कैसे अपनी प्रतिक्रिया देंगे; निर्णायक कहे जाने वाले कलाकार कब क्या बोलेंगे या कैसी प्रतिक्रिया दर्शायेंगे; बिना किसी कारण ज़ोर ज़ोर से हंसेंगे; यह सब कुछ लिखित और निर्देशित ढंग से ही होता रहता है । कभी कभी गाने के साथ सभी दर्शकों को हाथ हिलाते, या गर्दन हिलाते भी दिखाया जाता है, जो वास्तव में किसी निर्देशक के इशारों पर ही करवाया जाता है । दर्शकों की ऐसे कार्यक्रमों को टी0 वी0 पर देखने की तल्लीनता को देखकर मैं अचंभित रह जाता हूं । एक बार मैंने अपने एक मित्र से पूछ लिया कि कार्यक्रम को दिखाने वाला कैमरा उसी समय किसी उस व्यक्ति पर कैसे घूम गया जब उसने हाथ या गर्दन को हिलाया था; तो वे कुछ क्षण सोचने के बाद कहने लगे, “यार सच है, कैमरामैन को कैसे पता चल गया कि उस क्षण कौन, कैसी प्रतिक्रिया देने वाला है । यह सब नाटक ही है” । मैं पिछले लगभग 58 वर्ष से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का मंच संचालन करता चला आ रहा हूं, विभिन्न गांव, कस्बे, नगर, महानगर, और विदेश में भी । मुझे याद नहीं आता कि मैंने कभी भी किसी भी कलाकार या नेता या अतिथि के लिये तालियों की “भीख” नहीं मांगी है । पुरस्कार समारोहों में भी पुरस्कृत व्यक्ति के लिये तालियां ज़बरदस्ती बजवाना मुझे पसंद नहीं रहा है । यह दर्शकों-श्रोताओं की इच्छा है कि वे कब, कहां और कैसे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें; परंतु बार बार तालियां बजाने के लिये कहना मुझे उस व्यक्ति का अनादर करने जैसा लगने लगता है, जिसके लिये मैं तालियों की भीख मांग रहा हूं । कितना बडा अनादर तब उस व्यक्ति का हो जाता है जब मंच से कहा जाता है कि ज़ोरदार तालियों से स्वागत कीजिये, या ज़ोरदार तालियां बजाइये; और या तो एक-दो व्यक्ति ही ताली बजाएं, या कोई भी ताली न बजाये । मेरा ऐसा मानना है कि मंच संचालक हर व्यक्ति को इस तरह प्रस्तुत करे कि श्रोता-दर्शक अपने आप तालियां बजाएं । अनेक बार श्रोता-दर्शक किसी व्यक्ति के ऊब कर भी तालियां बजाने लगतए हैं । यह स्थिति मंच पर नहीं आनी चाहिये, इसका ध्यान मंच पर आने वाले हर व्यक्ति को रखना चाहिये । मैं यह समझ ही नहीं पाता हूं कि अधिकतर मंच संचालक बार बार तालियां बजाने के लिये क्यों कहते रहते हैं । किसी विशेष परिस्थिति में एक बार तालियां बजाने का आग्रह किया जा सकता है, परंतु हर थोडी देर में “हो जाएं ज़ोरदार तालियां” कहना मंच संचालक की शब्द-भाषा की बहुत कम जानकारी और धाराप्रवाह बोलने की अक्षमता को ही दर्शाता है । मुझे याद है कि मैंने एक विशेष कार्यक्रम में एक बार तालियां बजाने का अनुरोध किया था, जब राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह साहब के समक्ष संगीत का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था । राष्ट्रपति महोदय की उपस्थिति में राज्यपाल, मुख्य मंत्री, अन्य मंत्रीगण, उच्च अधिकारियों आदि ने न तो कलाकारों के परिचय के समय तालियां बजाईं, और न गायक द्वारा प्रस्तुत पहली रचना की समाप्ति पर ही तालियां बजाईं । मैंने बडी विनम्रता के साथ निवेदन किया, “महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी; आपकी अनुमति के बिना यहां उपस्थित कोई भी व्यक्ति कलाकार की प्रस्तुति के सम्मान में ताली भी नहीं बजा पा रहा है । मेरा आपसे बहुत ही विनम्रता के साथ यह अनुरोध है कि कृपया यहां उपस्थित सभी सम्माननीय व्यक्तियों को कम से कम हर रचना की समाप्ति पर अगर वो रचना पसंद आई हो तो तालियां बजाने की अनुमति प्रदान करने की कृपा करदें; क्योंकि हर कलाकार, श्रोताओं-दर्शकों से तालियों की ही आशा लगाए रहता है” । राष्ट्रपति महोदय मुस्कुरा दिये और स्वयं तालियां बजाकर सबकी तरफ़ ताली बजाने का इशारा भी कर दिये । आपातकाल के दौरान एक संगीत कार्यक्रम में प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जी की उपस्थिति में भी मुझे यह कहने पर मजबूर होना पडा था, “परम आदरणीय प्रधान मंत्री जी, आजकल सभी नेता, अधिकारी, नागरिक आपकी स्वीकृति के बिना संगीत की रचना की प्रशंसा में ताली बजाने में भी झिझक रहे हैं । क्या मैं विनम्रता पूर्वक आपसे यह निवेदन कर सकता हूं कि सब को निर्भीक होकर कम से कम ताली बजाने की अनुमति प्रदान करने की कृपा कर दें” । प्रधान मंत्री जी तुरंत अपने स्थान पर खडी हो गईं और सभी उपस्थितों की ओर मुडकर स्वयं ताली बजाने लगीं । फ़िर तो सारा सभागार तालियों की आवाज़ से गूंज उठा । लेकिन मैंने कभी भी हर कलाकार, नेता, विद्वान के लिये हर कार्यक्रम में बार बार तालियों की भीख मांगते हुए, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर और शब्दों को अनावश्यक रूप से लंबा खींचकर यह नहीं कहा है –- “हो जाएं ज़ोरदार तालियां” ।

 

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