अक्सर कहा जाता है कि जिन किताबों पर फ़िल्म बनती है उसे ज़रूर पढ़ना चाहिए क्योंकि अधिकांश मामले में किताबें फ़िल्मों से ज़्यादा बेहतर ढं’ग से अपनी कहानी कहती है। तो हाल ही में 21 फ़रवरी को रीलिज़ हुई फ़िल्म “The Hundred Bucks” का किताबी व’र्जन पढ़ा। इस किताब में अच्छा ये लगा कि ये फ़िल्म की तरह ही लिखी गयी है। ऐसा लगता है जैसे हम फ़िल्म की स्क्रिप्ट डायलॉग के साथ पढ़ रहे हैं। सीन सीधे शुरू होते हैं और उसके बाद सटीक संवाद।
इस किताब की कहानी नायिका मोहिनी की ज़िंदगी पर निर्भर है जो एक कॉल गर्ल है। लेकिन उसकी ज़िंदगी में उसके अपने कुछ नियम है साथ ही उसके आत्मसम्मान को उसने किसी तरह ब’चाकर रखा है। मोहिनी की इस कहानी में हमें समाज के कई छु’पे चेहरे देखने मिलते हैं लेकिन साथ ही कुछ राह’त देने वाली परिस्थि’तियाँ भी हैं। किताब को इस तरह लिखा गया है कि आप एक साथ पढ़ते चले जाएँगे। भाषा भी सरल है तो पढ़ने में किसी तरह की कोई अ’ड़चन साम’ने नहीं आती।
इस किताब में कहानी बिलकुल सीधी है और उसी तरह पेश भी की गयी है। कई तरह के काल्पनिक मोड़ भी आते हैं जो अचा’नक से वास्त’विकता की ध’रातल पर लिखी गयी इस कहानी में ज़रा अनफ़ि’ट से लगते हैं लेकिन वही मो’ड़ इसे एक कहानी बनाते हैं और मन में ये बात उठती है कि कम से कम ऐसी कहानी किसी लड़की की न हो और समाज में इस तरह की बातें भी आम न हों। फिर भी कहीं न कहीं तो ये बात भी सभी जानते हैं कि समाज की क’ड़वी सच्चाई जो दिखायी जा रही है वो मौ’जूद है।