हमारी परीक्षाओं की भी परीक्षा होनी चाहिए

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अगर यह हैरान करने वाली बात नहीं तो जगहंसाई वाली बात तो है ही. बिहार में इंडरमीडिएट की परीक्षा में टॉप करने वाले दो छात्र इंटरव्यू के दौरान साधारण से सवालों के जवाब भी नहीं दे पाए. हद तो तब हो गई जब एक अपने विषय का नाम भी ठीक से नहीं बता सका. हाल ही में बिहार सरकार ने दावा किया था कि उसने बोर्ड परीक्षाएं कड़ी सुरक्षा के बीच करवाई हैं. लेकिन इस प्रकरण ने उसे शर्मसार कर दिया है. हालांकि पास होने वाले छात्रों की संख्या में गिरावट बता रही है कि सरकार ने गंभीरता से कोशिश की है. मौजूदा प्रकरण के बाद पुलिस ने एक कॉलेज और चार टॉपरों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. इस मामले की विशेष जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं.

हालांकि यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि क्या हुआ होगा. भारत के कई हिस्सों खासकर हिंदी पट्टी में ऐसे अधिकारियों की कमी नहीं है जो धोखाधड़ी से पास करवाने का काम करते हैं. बड़े स्तर पर नकल से लेकर पर्चा लीक करने, किसी दूसरे की जगह पर परीक्षा देने और परीक्षा कक्ष में मोबाइल फोन के जरिये उत्तर लिखवाने तक नकल के अनगिनत किस्से मिल जाएंगे. इनमें से कुछ मामलों में स्कूल/कॉलेज स्टाफ की भी मिलीभगत रहती है. बीते साल एक तसवीर खूब चर्चा में रही थी. उसमें पटना के पास एक गांव के स्कूल की इमारत में कई लोग नकल की पर्चियां पकड़ाने के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर खिड़कियों पर चढ़े हुए दिख रहे थे. सवाल उठता है कि क्या हमने खाना पहुंचाने वाले मुंबई के मशहूर डब्बावालों की तरह नकल की एक अचूक व्यवस्था विकसित कर ली है.

मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले ने दिखाया कि सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षाओं में बड़े स्तर पर धोखाधड़ी हुई. वहां हाल में हुई कई हत्याओं को इसी से जोड़ा गया. उत्तर प्रदेश में 1990 की शुरुआत में भाजपा सरकार ने एक नकल विरोधी कानून बनाया था. बाद में विरोधी पार्टी की सरकार ने इसे हटा दिया और फिर राजनीतिक दांवपेंच के चलते यह एक बार फिर वापस आया. गुजरात में हाई स्कूल की परीक्षाओं में नकल के खिलाफ बना कानून 1972 से ही है जिसके तहत दोषी पाए जाने पर दो साल की सजा हो सकती है.
लेकिन नकल की समस्या भारत में व्यापक रूप से बनी हुई है. जानकार बताते हैं कि परीक्षा में धोखाधड़ी और जाति प्रमाणपत्र का इस्तेमाल (वह असली हो या नकली) एक ऐसा मेल है जो बहुत से उम्मीदवारों को कई दशक के लिए सरकारी नौकरी की सुरक्षा और आराम दिला सकता है. हम इस बात से तसल्ली कर सकते हैं कि आर्थिक तरक्की के मामले में भारत जिस चीन की नकल करना चाहता है उसने बीते साल एक नया कानून बनाया है. इसके तहत नकल करने की कोशिश कर रहे छात्रों को सात साल तक की जेल हो सकती है.
समय आ गया है कि शिक्षा व्यवस्था में गहरे धंस चुकी नकल की समस्या का अंत हो. बिहार का हालिया प्रकरण जागने के लिए एक चेतावनी है. परीक्षाओं की व्यवस्था के झोल भरे जाने चाहिए और जांच के काम में और कड़ाई बरती जानी चाहिए. इस काम में वही नई तकनीक मदद कर सकती है जिसका अब तक धोखाधड़ी करने वाले इस्तेमाल करते आ रहे हैं. इसके अलावा इस सड़न से मुक्ति पाने के लिए सीसी टीवी, औचक निरीक्षण या साक्षात्कार और उच्च स्तर पर फिर से कॉपियों की जांच जैसे विकल्प भी अपनाए जा सकते हैं. शिक्षा राज्य का विषय है लेकिन केंद्र को भी इस स्थिति में दखल देना चाहिए और देखना चाहिए कि जो राज्य सरकारें इस मामले में अपना काम ठीक से नहीं कर रहीं उन्हें वह दंड और पुरस्कार जैसे किसी तरीके से ऐसा करने को प्रोत्साहित कर सकता है या नहीं.