अगर हर काम में आ रही है अड़चन, तो श्रावण माह में करें ये उपाय

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जीवन में कई बार समस्याओं का सामना कभी ना कभी हर व्यक्ति को करना पड़ता है। समस्याएँ तो जीवन में आती रहती हैं लेकिन जब कोई समस्या नासूर बन जाए तब व्यक्ति काफी मानसिक दबाव में फंस जाता है। कुछ ऎसे व्यक्ति हैं जिन्हें समस्या तो आती है पर उसका समाधान भी शीघ्र हो जाता है लेकिन कुछ ऎसे व्यक्ति भी हैं जिन्हे बार-बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
परेशानियों से निजात पाने के लिए सर्वोत्तम उपाय है भगवान शंकर के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप की आराधना। शक्ति के बिना शिव ‘शव’ हैं, शिव और शक्ति एक दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं जिस प्रकार सूर्य और उसका प्रकाश। शिव में ‘ई’ कार ही शक्ति है। शिव से ‘ई’ कार निकल जाने पर शव ही रह जाता है।
शास्त्रों के अनुसार बिना शक्ति की अनुकम्पा से शिव का साक्षात्कार नहीं होता। शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त करने के लिए शिव महापुराण में अर्द्धनारीश्वर स्तोत्र के पाठ का निर्देश किया गया है। इस स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान ब्रह्मा ने की है। ब्रह्माजी द्वारा पठित यह पवित्र और उत्तम अर्द्धनारीश्वर स्तोत्र शिव तथा भगवती पार्वती के हर्ष को बढाने वाला है। शिव पुराण में कहा गया है की जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ भगवन शिव के प्रिय श्रावण मास में नित्य करता है वह शिव और पार्वती को प्रसन्न करने के कारण अपने अभीष्ट फल को प्राप्त कर लेता है।

स्तोत्र इस प्रकार है –

ब्रह्मोवाच –
जय देव महादेव जयेश्वर महेश्वर, जय सर्वगुण श्रेष्ठ जय सर्वसुराधिप
जय प्रकृतिकल्याणि जय प्रकृतिनायिके, जय प्रकृतिदूरे त्वं जय प्रकृतिसुन्दरि
जयामोघमहामाय जयामोघमनोरथ, जयामोघमहालील जयामोघमहाबल
जय विश्वजगन्मातर्जय विश्वजगन्मयि, जयविश्वजगद्धात्रि जय विश्वजगत्सखि
जय शाश्वतिकैश्वर्य जय शाश्वतिकालय , जय शाश्वतिकाकार जय शाश्वतिकानुग
जयात्मत्रयनिर्मात्रि जयात्मत्रयपालिनि , जयात्मत्रयसंहर्त्रि जयात्मत्रयनायिके
जयावलोकनायत्तजगत्कारणबृंहण , जयापेक्षाकटाक्षोत्थहुतभुग्भुक्तभौतिक
जय देवाद्यविज्ञेये स्वात्मसूक्ष्मदृशोज्ज्वले, जय स्थूलात्मशक्यत्येशे जय व्याप्तचराचरे
जय नानैकविन्यस्तविश्वतत्त्वसमुच्चय , जयासुरशिरोनिष्ठ श्रेष्ठानुगकदम्बक
जयोपाश्रितसंरक्षासंविधानपटीयसी, जयोन्मूलितसंसारविषवृक्षांकुरोद्गमे
जय प्रदेशिकैश्वर्यवीर्यशौर्य विजृम्भण, जय विश्ववहिर्भूत निरस्तपरवैभव
जय प्रणीतपञ्चार्थ प्रयोगपरमामृत, जय पञ्चार्थविज्ञानसुधास्तोत्रस्वरूपिणि
जयातिघोरसंसारमहारोग भिषग्वर, जयानादिमलाज्ञानतमः पटलचंद्रिके
जय त्रिपुरकालाग्ने जय त्रिपुरभैरवि, जय त्रिगुणनिर्मुक्त जय त्रिगुणमर्दिनि
जय प्रथमसर्वज्ञ जय सर्वप्रबोधिके, जय प्रचुर दिव्यांग जय प्रार्थितदायिनि
क्व देव ते परम् धाम क्व च तुच्छम् हि नो वचः, तथापि भगवन् भक्त्या प्रलपन्तं क्षमस्व माम्