मुंबई – भीषण सूखे से जूझ रहे महाराष्ट्र में पानी की समस्या से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश का सहारा लिया जाएगा। महाराष्ट्र सरकार ने इस साल के मानसून के दौरान क्लाउड सीडिंग के लिए 30 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इस तकनीक से पहले भी 2003 में महाराष्ट्र की 22 तालुकाओं में बारिश कराई गई थी और इस पर सरकार ने करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये खर्च किए थे। पानी की कमी से जूझ रहे कई देशों में जलसंकट से निजात पाने के लिए इस तकनीक का सहारा लिया जा रहा है।
पहली बार 1940 के दशक में अमेरिका में इस तकनीक को इस्तेमाल में लाना शुरू किया गया था और वर्तमान में करीब 60 देशों में इससे बारिश कराने के छिटपुट प्रयोग हो रहे हैं। अमेरिकी कंपनी वेदर मॉडिफिकेशन एनकॉर्पोरेशन कई देशों में क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट चला रही है।
कृत्रिम बारिश की एक नई तकनीक का प्रयोग 1990 के दशक में दक्षिण अफ्रीका में किया गया था। वहां पर हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग का ईजाद किया गया जिसमें बादलों में सोडियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे रसायनों का छिड़काव करके बारिश कराई जाती है। हाल के वर्षो में इसे लेकर चीन और भारत में काफी दिलचस्पी दिखाई गई है। बीजिंग ओलंपिक 2008 के दौरान आसमान को साफ रखने के लिए कृत्रिम बारिश का उपयोग किया गया था। फिलहाल चीन सालाना करीब डेढ़ करोड़ डॉलर कृत्रिम बारिश पर खर्च कर रहा है।
महाराष्ट्र में कई शहर जलसंकट से जूझ रहे हैं और ग्रामीण इलाकों में हालत और भी ज्यादा खराब है। औरंगाबाद में जलसंकट से निजात पाने के लिए लोग भगवान के भजनों का सहारा ले रहे हैं। ग्रामीण गोदावरी बेसिन में पानी छोडऩे की मांग कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता जयाजी सूर्यवंशी ने कहा कि सरकार तो हमारी बात नहीं सुन रही है इसलिए हम ‘भजन आंदोलन’ कर भगवान तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा अगर आज रात तक पानी नहीं छोड़ा गया तो 30 तारीख को हम अधिकारियों के घरों के सामने धरना प्रदर्शन करेंगे।
गौरतलब है कि तापमान में लगातार हो रहे इजाफे की वजह से हर साल जल संकट भी सामने आ जाता है। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही के दिनों में जल संरक्षण विभाग की वेबसाइट पर आंकड़े जारी किए थे। जिसके मुताबिक 18 मई तक राज्य के 26 जलाशयों में जल भंडारण शून्य के आसपास बताया गया था। राज्य सरकार ने बीते साल अक्टूबर में 151 तालुका और 260 मंडलों में सूखे की घोषणा की थी।