एक्सक्लूसिवः बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की दास्तान, सड़कें बनी लेबर रूम, कंधे बने एंबुलेंस…कौन है जिम्मेदार ?

0
124

हरिद्वार: उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा से ही सवालों के घेर में रही है। राज्य में पलायन का भी यह एक बहुत बड़ा कारण है। बावजूद, स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे है। सीएम से मंत्री तक केवल हवाई दावे कर रहे हैं। महिलाएं बच्चों को सड़क पर जन्म देने के लिए मजबूर हैं। वैसे तो हमेशा ही लोग परेशानी में रहते हैं, लेकिन बरसात में समस्या और बढ़ जाती है। सरकार इस बात को जानती भी है। फिर कुछ करने के बजाया समीखा बैठकों में केवल आदेश और निर्देश ही जारी किए जा रहे हैं। उन आदेशों और निर्देशों को कहीं कोई असर नजर नहीं आ रहा है।

पिछले कुछ दिनों से कई ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिन घटनाओं ने बदहाल स्वास्थ्य व्यवसथाओं की पोल खोलकर रख दी। लेकिन, हैरानी की बात है कि स्वास्थ्य मंत्री हर बार यह दावा करते हैं कि स्वास्थ्य व्यवसथाएं चाकचौबंद हैं। देहरादून में दिए गए निर्देश शायद ना तो अधिकारियों के कानों तक पहुंच पा रहे हैं और ना ही कर्मचारियों तक पहुंच रहे हैं।

दूसरा यह है कि स्वासथ्य मंत्री के सख्त निर्देश केवल हवाई हैं। उनके निर्देशों को ना तो कर्मचारी गंभीरता से ले रहे हैं और ना अधिकारी ही कुछ अमल कर रहे हैं। ताजा मामला हरिद्वार का है। यहां महिला सड़क पर ही बच्चे को जन्म दे दिया। परिजनों ने एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन एंबुलेंस एक घंटे बाद भी नहीं पहुंची। यह घटना देर रात की है, लेकिन इसका खुलासा आज सुबह हुआ।

देर रात एक गरीब गर्भवती महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के पिता ने अपनी कमीज उतारकर बच्चे को ओढ़ाया। मामला बिलकेश्वर रोड ब्लड बैंक के नजदीक का है। फोन करने के एक घंटे बाद एम्बुलेंस मौके पर आई। एंबुलेंस के पहुंने के बाद जच्‍चा-बच्‍चा को महिला राजकीय महिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। मिहिला का पति मजदूरी करता है। यह परिवार बिहार का रहने वाला है।

यह कोई पहली घटना नहीं है। राजधानी देहरादून से महज 15 किलोमीटर दूर भी एक महिला ने सड़क पर बच्चे को जन्म दिया था। उससे टिहरी में भी इस तरही की घटना सामने आई थी। जबकि कुद दिनों पहले पिथौरागढ़ में परिजन हेलीकॉप्टर का इंतजार करते रहे, लेकिन हेली दो घंटे देरी से पहुंचा। तब तक नवजात बच्चा दम तोड़ चुका था।

उससे पहले गैरसैंण में भी एक मामला सामने आया था। डॉक्रों ने गर्भवती को यह कहकर रेफर कर दिया था कि उसका बच्चा उल्टा है। पैर बाहर निकल चुके हैं और बच्चे की धड़कन भी बंद हो चुकी है। लेकिन, उसी महिला की एक फार्मसिस्ट ने सुरक्षित डिलीवरी कराई थी। हाल ही में एक और मामला रुद्रप्रयाग में सामने आया था। एक नाबालिग ने अस्पताल के बाथरूम में बच्चे को जन्द दिया था, जहां दोनों की मौत हो गई। उससे पहले उन्होंने डॉक्टर को दिखाया था। लेकिन, डॉक्टर को यह पता नहीं चला कि नाबालिग नौ माह की गर्भीवती है।

इन तमाम मामलों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। हालांकि, हल्द्वानी में असपताल के गेट पर बच्चे के जन्म होने के मामले में डॉक्टर और नर्सिंग अधिकारी को जरूर सस्पेंड किया गया था। इतनी सारी समस्याओं के बाद भी स्वास्थ्य मंत्री केवल आदेश और निर्देश देने में ही व्यस्त हैं। सीएम धामी ने भी इन मामलों में कोई संज्ञान नहीं लिया।

बीमार लोगों को कंधों पर अस्पताल पहुंचाने की तस्वीरें आए दिन सामने आती रहती हैं। बावजूद, मंत्री और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी दावा करते हैं कि सबकुछ ठीक चल रहा है। लोगों को पूरा इलाज मिल रहा है। सवाल उठता है कि आखिर ये कैसा इलाज, जिसमें लोगों को एंबुलेंस तक नहीं मिल पा रही है।

बीते दिनों देहरादून के सौंग घाटी के घुत्तू क्षेत्र में एक गर्भवती ने चिकित्सा और यातायात सुविधा के अभाव में रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया था। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। मामला बीती 25 जुलाई का है। सुबह ग्राम पंचायत श्हल्द्वाड़ीश् के गंधकपानी (सेरा) की एक गर्भवती संगीता देवी पत्नी दिनेश सिंह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रायपुर के लिए स्वजन के साथ निकली। कुछ किलोमीटर चलने के बाद ही गर्भवती को प्रसव पीड़ा हुई। इस दौरान महिला ने बच्चे को रास्ते में जन्म दे दिया।

बारिश पहाड़ों आफत बन कर टूटती है। ग्रामीण मोटर मार्ग बंद हो जाते हैं। इससे ग्रामीणों को जूझना पड़ रहा है। बीते मंगलवार को चमोली जिले के दशोली ब्‍लॉक के दूरस्थ इराणी गांव की बीमार महिला बिमला देवी को ग्रामीणों ने डंडी-कंडी के सहारे पैदल चलकर जिला अस्पताल गोपेश्वर पहुंचाया।