क्या समाचार इसी को कहते हैं ?

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किशन शर्मा

आजकल अधिकांश समाचार पत्र केवल विज्ञापन पत्र बन कर रह गये हैं । अधिकतर समाचार पत्रों का मुखपृष्ठ ही गायब हो गया है । केवल मुखपृष्ठ ही नहीं बल्कि शुरू के 6 से 8 पृष्ठ केवल विज्ञापन से ही भरे रहते हैं । उनके बाद भी अनेक पृष्ठ विज्ञापनों को ही दर्शाते रहते हैं । कुछ समाचार पत्र कहीं आधे पृष्ठ और कहीं 2-3 इंच बढे हुए पृष्ठ केवल विज्ञापन के लिये प्रकाशित करते रहते हैं । कुछ समाचार पत्र तो केवल विज्ञापित चित्र और विवरण ही छापते रहते हैं । वे स्पष्ट रूप से यह लिख भी देते हैं कि उनमें प्रकाशित सारी जानकारी और चित्र, “विज्ञापन और प्रचार” की दृष्टि से ही शामिल किये गए हैं, अर्थात “पेड न्यूज़” ही होते हैं । पहले के समय में किसी समाचार पत्र का मुख पृष्ठ और संपादकीय पृष्ठ, उसकी अपनी पहचान और विशेषता माने जाते थे । अब महत्व केवल आमदनी को दिया जाने लगा है । एक बहुत बडे समाचार पत्र ने एक दिन अपने मुख पृष्ठ पर शान से यह छाप दिया था कि “केवल विज्ञापन से आज 5 करोड रुपये की आय हुई है, जो सभी समाचार पत्रों के मुकाबले कई गुना ज़्यादा है, और इस पर हमें गर्व है” । वास्तव में यह गर्व की नहीं बल्कि शर्म की बात मानी जानी चाहिये, परंतु आजकल अधिकांश समाचार पत्र “सेठों” द्वारा चलाये जाते हैं, जो धन को ही महत्व देते रहते हैं । यह दुर्भाग्य की बात है ।

पहले के समय में समाचार पत्र जनसेवा और जनजागृति की भावना से कुछ ऐसे समर्पित व्यक्तित्व प्रकाशित किया करते थे, जिन्हें पत्रकारिता की समझ होती थी । उस काल में बडे बडे नेतागण, फ़िल्मकार, उद्योगपति, अधिकारी आदि सभी हर दिन समाचार पत्र को उत्सुकता के साथ देखा और पढा करते थे । उनपर कोई प्रशंसात्मक या आलोचनात्मक टिप्पणी छप गई तो वे उससे प्रभावित होकर प्रसन्न या चिंतित भी होते रहते थे । समाचार पत्र के संपादक से अधिकतर लोग घबराते थे और संपादकगण भी हर किसी से मिला नहीं करते थे । आज स्थिति बहुत बदल गई है और आजकल अनेक पत्रकार केवल धन उगाही के लिये ही जाने जाते हैं । टेलीविज़न पर तो अधिकांश पत्रकार कहे जाने वाले लोग, केवल बिके हुए ही बन गये हैं । संसद में भी इस बारे में अनेक बार आवाज़ उठी, परंतु शांत कर दी गई या करवा दी गई ।

पहले के समय में मुख पृष्ठ पर व्यंग्यचित्र छापे जाते थे जिन्हें देखने के लिये सभी लोग लालायित रहा करते थे । “आर0 के0 लक्ष्मण”, “बाल ठाकरे” “मारियो” आदि कुछ व्यंग्य चित्रकारों के “कार्टून” बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे । बडे बडे राष्ट्रनेतागण भी उत्सुकता से उन कार्टून्स को देखा करते थे और अक्सर मुस्कुराते रहते थे । आज के समय में बहुत ही कम व्यंग्यचित्र बनाये और प्रकाशित किये जाते हैं । पहले के समय में किस समारोह में, किस व्यक्ति का, कौन सा चित्र छापा जाये, यह बहुत मंत्रणा के बाद निश्चित किया जाता था ।

आजकल केवल फ़िल्मी कलाकारों, उनके प्रेमी या प्रेमिकाओं, उनके लिबास, उनके नवजात शिशु से लेकर सभी बच्चों के चित्र छापकर समाचार पत्र वाले खुश होते रहते हैं । मैं यह नहीं समझ पाता कि कौन, किससे, कब, कहां मिला, उसने क्या पहना, या उसके बच्चे ने कब मुस्कुरा कर फ़ोटो खिंचवाई, या कब घुडसवारी की, या कब स्कूल गया, या कहां घूमने गया; क्या यह सब ही समाचार के विषय बन गए हैं आजकल ? किसी अरबपति के लडके या लडकी की शादी में कितने करोड रुपये खर्च हुए, और किस किस बडे अभिनेता ने बारातियों को भोजन परसा, क्या यह सब महत्वपूर्ण समाचार की श्रेणी में आने लायक बातें हैं ?

मैं अक्सर यह देखता रहता हूं कि आजकल किसी भी फ़िल्म के प्रदर्शन से पूर्व उसके मुख्य कलाकारों की तरह तरह की झूठी प्रेम कहानियों को बढा-चढा कर प्रकाशित करवाया जाता है, केवल फ़िल्म के प्रचार के लिये । कुछ समय बाद ही मालूम पड जाता है कि वो सब बातें झूठी थीं । मैं पिछले लगभग 55 वर्ष से पत्रकारिता से जुडा हुआ हूं, और बार बार बीते समय और वर्तमान समय की पत्रकारिता के बारे में सोचता रहता हूं । आजकल के समाचार और अधिकांश समाचार पत्रों को देखकर-पढकर मैं अपने आप से ही बार बार यह प्रश्न करता रहता हूं कि क्या समाचार इसी को कहते हैं ?

किशन शर्मा,
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