कैलाश-मानसरोवर आध्यात्मिक संवेदनाओं वाला ऐसा पवित्र तथा मनोरम स्थान है, जहाँ शांति निवास करती है। प्रकृति कितनी खूबसूरत और विविधतापूर्ण है, यह यहाँ आकर ही जाना जा सकता है। विचलित मन यहाँ आकर स्थिरता प्राप्त करता है। जाति धर्म और संप्रदाय यहाँ गौण ही जाते हैं।
कैलाश पर्वत 48 किमी में फैला हुआ है। मानसरोवर झील 4 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और 320 वर्ग किमी में फैली है। यदि आप इसकी परिक्रमा करना चाहते हैं तो यह परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊँची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है। यहाँ से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है, मानो भगवान शिव स्वयं बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्न भी कहा जाता है। परिक्रमा पथ पर एक किमी की परिधि वाला गौरी कुंड स्थित है। यह कुंड हमेशा बर्फ से ढँका रहता है। तीर्थयात्री बर्फ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करते हैं। यहीं से एशिया की चार प्रमुख नदियां – ब्रह्मपुत्र, करनाली, सिंधु और सतलज निकलती हैं।
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है वह बर्ह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुँच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है उसे भगवन शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है। मान्यता है कि ब्रह्म मुहूर्त में देवतागण यहाँ स्नान करते हैं। शाक्त ग्रंथों के अनुसार सटी का हाथ इसी स्थान पर गिरा था जिससे इस झील का निर्माण हुआ। इसे 51 शक्ति पीठों में से एक माना गया है। बौद्ध सांउडे कैलाश पर्वत को कांग रिनपोचे पर्वत भी कहते हैं। कहा जाता है कि मानसरोवर के पास ही भगवान बुद्ध महारानी माया के गर्भ में आये थे।
जैन धर्म में कैलाश को अष्टपद पर्वत कहा जाता है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभनाथ को यहीं पर आध्यात्मिक ज्ञान मिला।
गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदङ्ग की आवाज है।
बौद्ध तथा पाली ग्रंथों में मानसरोवर अनोप्ता तथा अनवतप्ता के नाम से वर्णित है जिसका अर्थ है – बिना ताप वाली और बिना कष्टवाली झील। मानसरोवर झील का जल जीतना मीठा है उतना किसी और नदी-सरोवर का नहीं है।
प्रत्येक वर्ष कैलाश-मानसरोवर की यात्रा का आयोजन भारत सरकार का विदेश मंत्रालय करता है, जिसमें उत्तराखंड सरकार के कुमायूं मंडल विकास निगम तथा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस का महत्वपूर्ण सहयोग होता है। पहले यह भू-भाग तिब्बत सरकार के अधीन था लेकिन तिब्बत पर चीन का अधिपत्य होने के बाद अब यह भू-भाग चीन सरकार के अधीन आ गया है। इसलिए कैलाश-मानसरोवर की यात्रा के लिए चीन सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है।
यह यात्रा मई-जून से लेकर सितम्बर तक ही आयोजित की जाती है। 6 – 6 दिन के अंतराल पर यात्रियों के 16 जत्थे भेजे जाते हैं। प्रत्येक जत्थे में लगभग 60 यात्री होते हैं। सामान्यतया यह यात्रा 28 दिन में पूरी होती है।
यात्रा के इच्छुक व्यक्तियों के लिए भारत सरकार का विदेश मंत्रालय बकायदा आवेदन आमंत्रित करता है, जिसे भरकर विदेश मंत्रालय के बताये पते पर भेजना होता है। आवेदन स्वीकार होने तथा विभिन्न प्रक्रियाओं के पूर्ण होने पर आवेदनकर्ता यात्रा के लिए वैध हो जाता है। भारत सरकार के अलावा कई टूर एन्ड ट्रेवल एजेंसियां भी इस यात्रा का आयोजन करती हैं।
कैलाश-मानसरोवर पहुँचने के कई मार्ग हैं। भारत में उत्तराखंड से होकर सीधे तिब्बत पहुंचा जा सकता है अथवा नेपाल के रास्ते काठमांडू से चलकर नेपाल-चीन सीमा पार करके कैलाश मानसरोवर जा सकते हैं। नेपाल होकर कैलाश जाने वाली इस यात्रा की व्यवस्था प्राइवेट ऑपरेटर्स करते हैं, जो बहुत थकाऊ और महँगी होती है। जो लोग नेपाल होकर यात्रा करना चाहते हैं उन्हें भारत सरकार से अनुमति लेनी आवश्यक नहीं है लेकिन पासपोर्ट तथा वीसा जैसी औपचारिकताएं अनिवार्य हैं।
यहाँ की मानसरोवर झील का जल पवित्र तथा पुण्यकारक माना गया है। इसका जल जब शांत होता है और हवाएं स्तब्ध होती हैं तब मानसरोवर के दक्षिणी हिस्से से कैलाश पर्वत का प्रतिबिम्ब मानसरोवर में दिखायी पड़ता है। यह अकेला तीर्थ है जिसमे देवता का कोई विग्रह नहीं है। कैलाश स्वयं महांग शिव है। इसके उत्तर-पूर्व दिशा में मान्धाता पर्वत के विशाल शीर्ष भाग झील में प्रतिबिंबित होते दिखायी पड़ते हैं। ऐसी मान्यता है कि कैलाश पर्वत से एक जोति निकलती है। इसे देखने के लिए तीर्थयात्री रात को टकटकी लगाए बैठे रहते हैं।