देश के सर्वोच्च कोर्ट ने sc/st एक्ट में अपने पुराने फ़ैसले को वापस ले लिया है। कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब इस एक्ट के अंतर्गत बिना जांच के FIR दर्ज की जा सकेगी। बता दें कि यह फ़ैसला sc/st एक्ट के प्रावधानों को कम करने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए लिया गया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के मक़सद से अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। इस एक्ट को जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया था।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून के प्रावधान में कुछ बदलाव किए थे। जैसे कि इन मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होगी। पहले अधिकारियों द्वारा जांच की जाएगी और जांच 7 दिन से ज़्यादा नहीं चलेगी। इस तरह के कुछ अन्य बदलाव किए गए थे। जिन्हें अब सुप्रीम कोर्ट ने वापस ले लिया है। अब इसमें एक और धारा 18 A जोड़ी जाएगी। जिसके ज़रिए पुराने क़ानून को बहाल कर दिया जाएगा। और सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए नए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दलित एवं जनजाति समुदायों के उत्पीड़न को रोकने के लिए SC/ST एक्ट के सख़्त प्रावधानों को यथावत बरक़रार रखने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि, ‘माननीय उच्चतम न्यायालय ने SC/ST एक्ट, 1989 के प्रावधानों को पुनः बहाल करते हुए अपने फ़ैसले में दलित समाज के जीवन की कड़वी वास्तविकताओं और संघर्षों के संबंध में जो तथ्य सत्यापित किए हैं, वह ख़ासकर सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के ‘दलित प्रेम’ की पोल खोलते हैं।’
साथ ही मायावती ने नीति आयोग की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा कि, “नीति आयोग की स्कूली शिक्षा संबंधी रैंकिंग के मामले में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड देश में सबसे निचले पायदान पर हैं।” बसपा सुप्रीमो ने पूछा, ‘देश और प्रदेश में सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली पार्टियां ख़ासकर कांग्रेस-भाजपा आज गांधी जयंती के दिन क्या जनता को जवाब दे पाएंगे, कि ऐसी शर्मनाक जन बदहाली क्यों?’