‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 81वीं वर्षगांठ पर शहीदों, क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों को सलाम

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क्या था यह आंदोलन? महात्मा गांधी जी द्वारा लिया गया एक बहुत बड़ा निर्णय जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8-9 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुंबई सत्र में भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की मांगों को लेकर शुरू किया गया एक आंदोलन था। क्रिप्स मिशन के साथ ब्रिटिश शासन के युद्ध के प्रयासों में जब भारतीय समर्थन ब्रिटिशर्स को नहीं मिला और ब्रिटिश इसमें विफल हुए ,उस समय गांधी जी ने मुंबई में गोवालिया टैंक में दिए गए अपने ष्भारत छोड़ो आंदोलन में करो या मरो का आवाहन भी किया। इससे अंग्रेज बहुत घबरा गए इसलिए वायसराय लिनलिथगो ने इस आंदोलन को 1857 के बाद का अब तक का सबसे गंभीर विद्रोह बताया।

गांधी जी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिससे ब्रिटिश शासन को हमेशा के लिए भारत से बाहर कर देने का संकल्प था। इसके बाद गांधी जी सहित सभी कांग्रेस कमेटी के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया परंतु इससे पूरे भारत में सकारात्मक प्रभाव हीं पड़ा ।बल्कि और उत्साह के साथ उन्होंने अपना आंदोलन हड़ताल के माध्यम से और तोड़फोड़ करते हुए रेलिया निकालते हुए जारी रखा।

कांग्रेस के कई नेता, स्वतंत्रता सेनानी भूमिगत प्रतिरोधी गतिविधियों में सक्रिय थे। पश्चिम में सातारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार प्रति सरकार की स्थापना कर दी गई थी। यहां अंग्रेज कहां मानने वाले थे उन्होंने सभी आंदोलनों के प्रति काफी सख्त रवैया अपनाया हुआ था इस विरोध को दबाने में लगभग साल भर से ज्यादा समय लग गया।

भारत छोड़ो आंदोलन सही रूप में एक जन आंदोलन था जिसमें लाखों भारतवासी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस आंदोलन में शामिल थे इसमें अत्यधिक युवाओं को बड़ी संख्या में देखा गया। वे गांधी जी को अपना आदर्श मानते हुए समर्पित भाव से इस आंदोलन को तेज गति से आगे बढ़ा रहे थे। गांधी जी के आदेशानुसार अंग्रेजी सामान का बहिष्कार किया जा रहा था।

गांधी जी के साथ इसके समर्थन में जिन नामों का उल्लेख आता है वह पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, मिस्टर अशोक मेहता, जयप्रकाश नारायण आदि ने खुलकर इसका समर्थन किया। जहां एक ओर अनुभवी क्रांतिकारियों को जेल में डाला जा रहा था, वही ओज से परिपूर्ण युवा क्रांतिकारी और लोगों के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत, निडर ,साहसी अपने आपको भारत माता के लिए समर्पित कर ने में अग्रणी, युवा फौज इन्हें भी विभिन्न जेलों में डाला जा रहा था उन्हीं में प्रमुख क्रांतिकारी तथा देशभक्त शशिभूषण तथा उनके साथियों में अनेक प्रसिद्ध क्रांतिवीर थे,जिनमें ग़दर पार्टी के बाबा सोहन सिंह भक्कना,बाबा गुरदीत सिंह, बाबा हरजाब सिंह, शहीद भगत सिंह के भाई सरदार कुलतार सिंह और कुलबीर सिंह, साम्यवादी नेता कामरेड धनवन्ती, देवदत्त अटल,टीका राम सुखन,मलिक कुंदन लाल।

समाजवादी विचारक प्रेम भसीन, प्रोफ़ेसर तिलकराज चड्ढा,मुन्शी अहमद्दीन,रामानन्द मिश्र, पत्रकार निरंजन सिंह तालिब,सरदार गुलाब सिंह, जीवाराम पालीवाल,चन्द्रकांत मोदी,वाई एन.ए त्रेहान, बलवंत सिंह क़ौमी और इन्द्र कुमार गुजराल(पूर्व प्रधानमंत्री) और अन्य अनेक भारत माता के सपूत जेलों में डाल दिए गए। यह श्रृंखला बढ़ती गई और यह एक ऐतिहासिक दिन बन गया। जब भारत के तिरंगे के लिए लाखों लोग अपनी जान कुर्बान करने आगे आ गए। इस आंदोलन में, आजादी के संघर्ष में भारतीय एकता रीढ़ की हड्डी की तरह सशक्त नजर आई।

भारत छोड़ो आंदोलन तथा अगस्त क्रांति में क्रांतिकारी वीर महिलाओं की अत्यधिक अहम भूमिका रही जिनमें प्रमुख हैं। कनकलता बरुआ , अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, ऊषामेहता, मीराबेन, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, सरोजिनीनायडू, अनुसूयाबाई काले, राजकुमारी अमृत कौर, कल्पना दत्ता, आदि भारत की इस क्रांति ने कई अन्य अनेक देश जो अंग्रेजों के गुलाम थे उन्हें हिम्मत दी और उनके स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रेरणा देते हुए एक अहम भूमिका अदा की।

आज हम याद करते हैं भारत छोड़ो आंदोलन और अगस्त क्रांति को, और सलाम करते हैं उन शहीदों को वीरों को जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। स्वराज, स्वदेशी, और सामाजिक न्याय तथा आत्मिक अनुभूति इस संघर्ष की चेतना बने। आज भी इस मूलमंत्र को हर भारतवासियों को याद रखना चाहिए और भारत देश के लिए स्वाभिमान से जीने की जो प्रेरणा ,वीर शहीदों क्रांतिकारियों स्वतंत्रता सेनानियों ने दी उन्हें नमन करते हुए याद करना चाहिए।
जय हिंद…।

  • प्रशांत सी बाजपेयी