क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी बाबा सोहन सिंह भाकना को उनकी 55वीं पुण्य तिथि पर याद करते हुए।
(जन्म:22 जनवरी 1870 – मृत्यु:21 दिसम्बर 1968)
बाबा सोहन सिंह का जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के खुटराई खुर्द में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के गुरुद्वारे से की और 16 साल की उम्र में उर्दू और फ़ारसी में प्राथमिक शिक्षा उत्तीर्ण करी।
बाबा ने कम उम्र से ही उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों में भाग लिया। 1909 में वे घर छोड़कर अमेरिका चले गए और सिएटल पहुँच गए। उन दिनों अमेरिका और कनाडा में भारतीयों को गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ता था। 1913 में भारतीयों के प्रतिनिधियों ने एक संगठन हिंदुस्तानी वर्कर्स ऑफ़ द पेसिफिक कोस्ट स्थापित करने का निर्णय लिया। बाबा इसके अध्यक्ष तथा लाला हरदयाल महासचिव चुने गए। एसोसिएशन के उद्देश्य को प्रचारित करने के लिए एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘ग़दर’ शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करना था।
सोहन सिंह ने स्वयं योकोहामा में लौट रहे कोमागाटा मारू से संपर्क किया और बाबा गुरदित सिंह को हथियारों की खेप पहुंचाई। बाबा को गिरफ्तार कर लिया गया और मुल्तान जेल भेज दिया गया। उन पर लाहौर षड़यंत्र केस में मुकदमा चलाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। बाद में अंडमान में मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। 1921 में उन्हें कोयंबटूर जेल और फिर येरवाडा जेल और फिर सेंट्रल जेल लाहौर में स्थानांतरित कर दिया गया।
1930 में उन्हें रिहा कर दिया गया लेकिन वे देश की आज़ादी के लिए काम करते रहे। उन्होंने अपना अधिकांश समय किसान सभाओं के आयोजन में समर्पित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें फिर से लगभग तीन वर्षों तक देवली कैंप जेल में नजरबंद रखा गया।
उनकी मृत्यु के 55 वर्ष बाद भी हम भारतीयों को प्रेरणा मिलती रहती है। वह देश के किसान संघर्ष के सच्चे प्रतीक हैं। उन्होंने न केवल साहस के साथ संघर्ष किया बल्कि सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। उनका जीवन ऐसे किस्सों से भरा है जहां उन्होंने आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद भारत में कठोर कानूनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी ।
प्रशांत सी वाजपई, अध्यक्ष, स्वतंत्रता आंदोलन यादगार समिति।