तीन साल की मेहनत का मिला फल, इस तरह से रोका जा सकता है कैंसर..

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कुमाऊँ के पहाड़ी क्षेत्रों से पित्त की थैली के कैंसर से पीड़ित लोग बड़ी संख्या में एसटीएच पहुंचते हैं। इस कैंसर के कारणों को पहचानने के लिए सर्जरी विभाग ने मेडिकल रिसर्च यूनिट में तीन साल पहले ‘जेनेटिक्स चेंजेज़ इन गॉल ब्लैडर कैंसर इन कुमाऊँ रीज़न’ पर शोध की शुरुआत की थी। सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर के एस साही के अनुसार मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए आये 25 रोगियों के जीन की जाँच की गई।

इन 25 रोगियों के जीन में तीन ऐसे जीन की पहचान कर ली गई है जिनमें किसी कारणवश बदलाव होने पर सम्बंन्धित व्यक्ति में कैंसर विकसित हुआ है। प्रोफेसर साही ने बताया है कि अब अगर पित्त की थैली में होने वाली किसी भी तरह की शिकायत को लेकर रोगी आता है तो समय रहते उसके जीन की जांच करके उस जीन में अगर कोई बदलाव हो रहा है या हुआ है तो उसे सही समय रहते पहचाना जा सकेगा।

अगर बदलाव के संकेत दिखाई पड़ते हैं तो पित्त की थैली को कैंसर उपजने से पहले ही निकाल दिया जाएगा। इससे बहुत हद तक कैंसर की रोकथाम में सहायता मिल सकेगी। क्योंकि जब तक पित्त की थैली के कैंसर से पीड़ित व्यक्ति अस्पताल पहुँचते हैं तब तक उनका कैंसर स्टेज-4 में पहुँच चुका होता है। डॉक्टरों के अनुसार पहाड़ों पर पित्त की थैली में पथरी और कैंसर बहुत ज़्यादा देखने को मिलता है। पित्त की थैली में कैंसर अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है। और इसका आसानी से पता भी नहीं चल पाता है। जब तक उसकी जाँच और पहचान होती है तब तक कैंसर डॉक्टरों के क़ाबू से बाहर हो चुका होता है। इसलिए डॉक्टर्स निरंतर प्रयास कर रहे हैं कि रोग के होने से पहले ही इस ख़तरे को भाँप लिया जाए और उसका निवारण कर दिया जाए।