देहरादून: उत्तराखंड की सियासत और अनिश्चितता का चोली-दामन का साथ है। राज्य में केवल अल्पमत की सरकारों में ही सीएम नहीं बदले गए, बल्कि पूर्ण बहुमत वाली सरकारों के भी मुख्यमंत्री बदल दिए गए। मंत्रियों की कुर्सियों पर भी गिरने और गिराए जाने का खतरा लगातार मंडराता रहता है।
विजय बहुगुणा, हरीश रावत, जनरल भुवन चंद खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक और त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकारें भी राजनीतिक अनिश्चितता के भंवर में फंसी और उनको अपनी कुर्सियों को बिना समय पूरा किए ही छोड़ना पड़ा।
खास बात यह है इन सरकारों में जहां अपने ही अपनों के दुश्मन बने। वहीं, भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर खरीद-फरोख्त कर सरकारों को गिराने, अनिश्चित करने के आरोप भी लगाते रहे हैं। इससे भले ही राजनीतिक दलों को कोई असर ना पड़ता हो। लेकिन, राज्य को बड़ा नुक्सान उठाना पड़ता है।
एक बार फिर राज्य में अनिश्चितता का माहौल बनता नजर आ रहा है। इस बार खतरा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं। बल्कि, धामी कैबिनेट के दो मंत्रियों की कुर्सी पर मंडरा रहा है। दोनों मंत्रियों की कुर्सियां खतरे में बताई जा रही हैं।
माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान बहुत जल्द उन मंत्रियों की कुर्सियों का फैसला कर सकता है, जिन मंत्रियों पर आरोप लगे हैं। सबकी निगाहें भाजपा आलाकमान के फैसले पर हैं। अब देखना होगा कि भाजपा किसकी कुर्सी हिलाती है और किसको मौका देती है। फिलहाल यह केवल चर्चाएं हैं।