असम में मुसलमानों के रुख से कांग्रेस में उत्साह

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असम में मुसलमानों के रुख से जहां कांग्रेस उत्साहित है, वहीं इत्र कारोबारी और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल खासे दबाव में हैं। उन्हें अपनी ओर से यह घोषणा करनी पड़ रही है कि चुनाव के बाद वह कांग्रेस का समर्थन कर सकते हैं।

पिछली बार अजमल की पार्टी एआईडीयूएफ की वजह से मुसलमानों में कांग्रेस का खासा नुकसान हुआ था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्तो का दावा है कि इस बार मुसलमानों का भारी समर्थन कांग्रेस को मिलेगा।

असम देश का एक ऐसा राज्य है, जहां औसतन 34 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जिनमें असम के मूल निवासी असमिया मुसलमान और बांग्लादेश से यहां आकर बसे मुसलमान दोनों शामिल हैं।

राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से निचले (लोअर) असम की 43 सीटें तो इस कदर मुस्लिम बहुल हैं कि वहां मुकाबला ही कांग्रेस और एआईयू्डीएफ के बीच है। बारपेटा से धुबरी तक जाने पर गांव के गांव उन मुसलमानों के ही दिखते हैं, जो सालों पहले बांग्लादेश से यहां आकर बसे।

इन्हें बांग्लादेशी मुसलमान कहा जाता है और इस इलाके को अजमल का गढ़ माना जाता है, जहां से पिछली बार 2011 को एआईयूडीएफ ने 18 सीटें जीती थीं। धुबरी में करीब 80 फीसदी आबादी मुसलमानों की है।

इसके अलावा बराक घाटी की 15 विधानसभा सीटों पर असमिया मुसलमानों की खासी तादाद है। औसतन यहां भी 50 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जिनमें करीमगंज में तो 58 फीसदी मुस्लिम आबादी है।

कालाटंकडी, कछार सिलचर में करीब 38 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इसी तरह मध्य असम के मोरेगांव नौगांव जिलों में भी 35 से 40 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। कांग्रेस की सारी उम्मीद लोअर असम, बराक घाटी और मध्य असम की इन्हीं सीटों पर टिकी हुई है। पार्टी को उम्मीद है कि इस बार भाजपा को रोकने के लिए मुसलमानों का एकमुश्त वोट कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है।