महाराष्ट्र राज्य में हाल ही में हुए चुनावों के परिणामों ने राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ ला दिया है। ऐतिहासिक बहुमत के बावजूद भाजपा अभी तक अपने मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है, इसके चलते महाराष्ट्र में अस्थिरता का माहौल है। चूंकि इस नैरेटिव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से 5 दिसंबर की तारीख घोषित कर दी है लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर संस्पेंस बरकरार रखा है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जबकि शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। भाजपा 132, शिवसेना शिंदे गुट 57 और एनसीपी अजित पवार गुट ने 41 सीटे जीतकर ऐतिहासिक परिणाम लाए हैं। वहीं शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट 20, कांग्रेस 16 और एनसीपी शरद पवार 10 सीटें पाने में सफल हुए हैं। समाजवादी पार्टी ने 2 और अन्य ने 10 सीटें जीती हैं।
भाजपा नेतृत्व ने अब तक यह संकेत नहीं दिया है कि मुख्यमंत्री कौन होगा, जिससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। अजित पवार ने पहले ही मुख्यमंत्री पद को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मज़बूरन मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा है। इस बदलाव से भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच संभावित सत्ता-साझेदारी को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह परिस्थिति राज्य में नई राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे सकती है।
भाजपा के इस कदम से यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है और राज्य के भविष्य के नेतृत्व पर क्या निर्णय लिया जाता है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा के भीतर गहन मंथन चल रहा है। चुनाव परिणामों के बाद, पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती राज्य के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को संतुलित करते हुए सही चेहरा चुनना है। मुख्यमंत्री के चयन को लेकर मुख्य रूप से जातीय समीकरणों पर चर्चा हो रही है। सवाल यह है कि मुख्यमंत्री ब्राह्मण समुदाय से होगा या मराठा समुदाय से। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय का प्रभावी दबदबा रहा है, लेकिन भाजपा के पास ब्राह्मण नेतृत्व के भी कुछ मजबूत विकल्प मौजूद हैं।
मराठा समुदाय से नेता चुनने का लाभ है। मराठा समुदाय राज्य की राजनीति में परंपरागत रूप से ताकतवर रहा है। मराठा नेता को मुख्यमंत्री बनाने से ग्रामीण इलाकों और किसान वर्ग का समर्थन मजबूत हो सकता है। दूसरी ओर ब्राह्मण नेता का चयन राज्य के हित में माना जा रहा है क्योंकि गत 3 चुनाव में देवेंद्र फडणवीस ने 100 से अधिक सीटें जीतने का पराक्रम किया है। भाजपा का एक बड़ा ब्राह्मण वोट बैंक है। ब्राह्मण समुदाय से मुख्यमंत्री बनने से शहरी और मध्यवर्गीय मतदाताओं का समर्थन पक्का किया जा सकता है। पार्टी नेतृत्व, विशेष रूप से केंद्रीय नेतृत्व, इस निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सूत्रों के अनुसार, देवेंद्र फडणवीस, जो ब्राह्मण समुदाय से हैं, वे मुख्यमंत्री के उम्मीदवार हो सकते हैं। भाजपा के साथ अजीत पवार गुट पूरी तरह देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में है। क्योंकि 5 वर्ष मुख्यमंत्री के तौर फडणवीस ने सत्ता के साथ विपक्ष और जनता के बीच अच्छा संतुलन बनाया रखा था।
इस बीच, भाजपा को यह भी ध्यान रखना होगा कि शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजीत पवार गुट) जैसे सहयोगियों के साथ सत्ता संतुलन कैसे बनाए रखा जाए ? जातीय समीकरणों और गठबंधन सहयोगियों की संतुष्टि के आधार पर ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
• अनिल गलगली (वरिष्ठ पत्रकार, आरटीआई एक्टिविस्ट)