अनेक प्रकार के प्रदूषण हैं जो मनुष्यों सहित पशु-पक्षियों को भी प्रभावित करते रहते हैं । बातें तो बहुत सारी की जाती रहती हैं कि प्रदूषण को समाप्त करना है या कम तो अवश्य ही करना है; परंतु वास्तव में किया कुछ भी नहीं जाता है । सबसे अधिक परेशान करने वाले हैं दूषित हवा और गैसों का प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण । कानून तो बहुत से हैं इन के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिये; लेकिन सम्बन्धित अधिकारी-कर्मचारी कार्रवाई करना ही नहीं चाहते । मैं स्वयं ध्वनि प्रदूषण से परेशान होता रहा हूं । वैसे तो डी0जे0 के उपयोग की अनुमति नहीं है । सर्वोच्च न्यायालय ने इस बारे में निर्देश भी दिये हुए हैं । परंतु कौन परवाह करता है ? किसी की शादी हो या किसी का जन्मदिन हो या कोई भी त्यौहार हो, रात में बारह बजे के आसपास ज़ोरदार आवाज़ करने वाले 50 से 100 पटाखे फ़ोडे ही जाते हैं । अनगिनत बूढे, बीमार लोगों की नींद खराब हो जाती है ।
पशु-पक्षी भी परेशान होते रहते हैं । परंतु पटाखे फ़ोडने वालों को कोई भी रोक नहीं पाता । पुलिस स्टेशन को फ़ोन करने पर आम तौर पर उत्तर मिलता है – “ एग्ज़ेक्ट लोकेशन बताइये तो हम आदमी भेजते हैं “ । अब पटाखे फ़ोडने की “ एग्ज़ेक्ट लोकेशन “ कौन बता सकता है । बात खत्म हो जाती है । साउंड सिस्टम के लिये अनुमति लेनी आवश्यक होती है, लेकिन अधिकतर लोग कोई अनुमति नहीं लेते और अगर किसी ने अनुमति ले भी ली, तो वह समय सीमा का कोई ध्यान नहीं रखते । रात दस बजे आवाज़ बंद हो जानी चाहिये, लेकिन लोग रात में 12 बजे या 1 बजे तक निर्भीक होकर ज़ोर ज़ोर से फ़ूहड और अश्लील गाने बजाते रहते हैं । ड्रम बजाने वाले या बैंड वाले भी निर्भीक होकर अपने अपने वाद्य बजाते रहते हैं ।
मेरे इलाके की ही बात करूं तो प्रशांत नगर में एक ही डी0जे0 वाला है, जो निर्भीक होकर सभी जगहों पर देर रात तक ज़ोरदार आवाज़ में वही वही गीत बजाता रहता है । “पल्लू के नीचे छुपा के रखा है”, “शीला की जवानी”, “लैला मैं लैला”, “चोली के पीछे क्या है” जैसे गीत हर बार बजते रहते हैं; जिससे यह समझ में आ जाता है कि एक ही डी0जे0 ऑपरेटर है । मैं हर बार रात 10 बजे के बाद धन्तोली पुलिस स्टेशन पर फ़ोन करता रहा हूं । अक्सर जवाब मिलता है कि “आदमी भेज रहे हैं” । फ़िर से फ़ोन करने पर कहा जाता रहा है कि “आदमी भेज दिया है” । कभी कभी पुलिस कर्मी आते भी हैं और आवाज़ बंद भी करवा जाते हैं, लेकिन पुलिस कर्मियों के जाते ही कुछ ही देर में फ़िर से आवाज़ शुरू कर दी जाती है । साउंड सिस्टम वाले का सामान ज़ब्त करने का अधिकार शायद पुलिस को नहीं है ।
कितनी बार पुलिस से शिकायत की जाये और पुलिस कर्मी भी कितनी बार एक ही शिकायत पर एक ही जगह पर जाते रहें; यह विचारणीय अवश्य है । बार बार पुलिसकर्मियों के आने, आवाज़ बंद करवाने के बाद भी कुछ बेशर्म लोग बार बार लाउड स्पीकर पर ज़ोरदार आवाज़ में संगीत बजाते रहते हैं और नृत्य करते हुए शोर मचाते रहते हैं । गाने बजाने की आवाज़ कितनी रखी जाये, इस बारे में शायद कोई निर्देश नहीं हैं । ध्वनि की भी अधिकतम सीमा तो जगह जगह लिखी रहती है, परंतु कानों को फ़ाड देने वाली आवाज़ आती ही रहती है । कुछ लोग धार्मिक आयोजन के नाम पर आधी रात में ड्रम बजाते हुए गली-मोहल्ले में घूमते रहते हैं ।
दूसरे लोगों की नींद खराब करने का अधिकार उनको किसने दिया होता है, यह वे ही जानें । लाउड स्पीकर पर नमाज़ की अज़ां सुबह सुबह सबको नींद से जगा देती है । अधिकांश धार्मिक स्थलों से मंत्रोच्चार, गाने, कीर्तन आदि की आवाज़ें आती ही रहती हैं । गणेश उत्सव और दुर्गा पूजा उत्सव में भी दस-ग्यारह-बारह दिन तक लाउड स्पीकर पर शोर किया ही जाता है । अनेक प्रकार की शोभा यात्राएं भी शोर मचाती हुई निकाली जाती हैं ।
मेरे इलाके में तो हर थोडे दिन में मुझे पुलिस स्टेशन को फ़ोन करना ही पडता है । किसी का जन्मदिन, किसी का विवाह, किसी के विवाह की वर्षगांठ, किसी की पुण्यतिथि पर अखंडपाठ चलता ही रहता है, और पुलिस कर्मी अक्सर कोई कठोर कार्र्वाई नहीं कर पाते हैं; कभी राजनीतिक दबाव में और कभी आर्थिक दबाव में । मैं यह सोचने पर विवश होने लगा हूं कि जिस तरह यातायात नियमों को तोडना देश भर में कोई भी रोक नहीं पा रहा है, उसी प्रकार क्या कोई भी कभी रोक सकता है ध्वनि प्रदूषण को ?
किशन शर्मा,
901, केदार, यशोधाम एन्क्लेव, प्रशांत नगर, नागपुर-440015; मोबाइल-8805001042