It was very necessary
यह अति आवश्यक था
– किशन शर्मा
“अशोभनीय और अमानवीय” शीर्षक अपने पिछले लेख में मैंने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में कुछ तीखी टिप्पणी की थीं । कुछ लोग मुझसे नाराज़ हो गये । कुछ ने मुझे “भा0ज0पा0 विरोधी” और “मोदी विरोधी” भी कह दिया । मैंने किसी का बुरा नहीं माना, क्योंकि कम से कम मैं तो जानता हूं कि मैं राजनीति से दूर दूर तक संबन्ध नहीं रखता । न मैं किसी का भक्त हूं, न मैं किसी का समर्थक हूं और न किसी का विरोधी हूं । मैं एक अति साधारण व्यक्ति हूं और ऐसा ही बना रहना चाहता हूं । मैं एक कलाकार, लेखक, पत्रकार हूं, जिसका काम यही होता है कि वह समय रहते लोगों को चेता दे । फ़िर भी कोई न माने या न समझे, तो कोई क्या कर सकता है । मैं स्पष्टवक्ता हूं और चापलूसी करना या अपने स्वार्थ के लिये किसी की जी-हुज़ूरी करना, मेरे बस की बात नहीं है । मैंने अपनी इस आदत का अनेक बार “मूल्य” भी चुकाया है; परंतु अपनी आदत से बाज़ नहीं आ सका हूं ।
आजकल तो सरकारी पुरस्कार या कोई सरकारी पद पाने के लिये ”भगवा” रूप धारण करने के आदी हो गये हैं लोग । अवसर आने पर यही लोग “भगवा” को ज़मीन में गाढ कर सफ़ेद खादी पहनने लगेंगे या नीली या लाल टोपी धारण कर लेंगे । ऐसे लोगों के पास कोई अन्य विकल्प भी नहीं है । परंतु मेरे जैसे लोग कभी अवसरवादी नहीं हो सकते । न बहुत अधिक की आस है, न बहुत अधिक निराशा है । बस जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे, यही कामना रहती है । मैं इस बात से बहुत प्रसन्न नहीं हूं कि कांग्रैस अभी के चुनाव में तीन राज्यों में जीत गई । परंतु इस बात से प्रसन्न अवश्य हूं कि घमंड की हार हो गई । मैं बार बार यह उल्लेखित करना चाहता हूं कि देश का प्रधान मंत्री, केवल किसी एक दल का नेता नहीं होता; बल्कि वह पूरे देश और सभी देशवासियों का नेता होता है । उसके शब्द, उसकी भाषा, उसका व्यवहार कभी भी उसके पद की गरिमा के विरुद्ध नहीं होने चाहियें । मैंने लगभग सभी प्रधान मंत्रियों को निकट से देखा है, सबके साथ मंच साझा किया है, सबको सुना है । किसी प्रधान मंत्री ने इस निचले दर्जे की भाषा का प्रयोग कभी नहीं किया, जिस स्तर पर नरेन्द्र मोदी चले जाते रहे हैं । राजनेताओं या राजनीतिक दलों की आलोचना करना या उनपर कटाक्ष करना राजनीतिक दल के नेता को ही करना चाहिये । यह काम भा0ज0पा0 राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह करें, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी; परंतु देश का प्रधान मंत्री निम्नस्तरीय भाषा और शब्दों का प्रयोग, नाटकीय ढंग से सार्वजनिक मंच पर करे, तो मुझे स्वीकार्य नहीं है ।
राजनेता एक दूसरे की प्रशंसा करें, आलोचना करें, मज़ाक उडाएं; यह सब उनके अपने और अपने दल के स्वास्थ्य के लिये आवश्यक हो सकता है; परंतु देश का अग्रणी मुखिया इस प्रकार का व्यवहार करे तो ऐसा उसी के दल के स्वास्थ्य के लिये घातक सिद्ध हो सकता है । अभी के चुनाव में यह साबित भी हो गया । मैं इस चुनाव के परिणाम से आगामी लोक सभा चुनाव के परिणाम की तुलना नहीं करना चाहता । मेरा स्पष्ट मत है कि कुछ नेताओं के गर्व और अशोभनीयता पर अंकुश लगाने के लिये यह अति आवश्यक हो गया था । मैं यह जानता हूं कि इससे सबक लेना सम्बन्धित दल और उसके नेताओं के लिये ज़रूरी नहीं है । हो सकता है कि वे और निचले स्तर पर भी उतर जाएं । विपक्षी दलों के नेताओं को भी उछलने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस परिणाम से अगले चुनाव पर कोई बहुत बडा असर पडेगा, यह मैं नहीं मानता । देश की जनता के समक्ष वर्तमान नेतृत्व का कोई सशक्त विकल्प भी नहीं है । परंतु वर्तमान नेतृत्व को इन परिणामों से सीख लेते हुए अपने व्यवहार में उचित परिवर्तन लाने की नितांत आवश्यकता है ।
मेरा सुझाव है कि राजनीतिक दल के नेतागण पूरी नाटकीयता करते रहें, कैसी भी भाषा का उपयोग करते रहें, कैसे भी आरोप-प्रत्यारोप करते रहें; परंतु देश के नेतृत्व के प्रमुख को अपने शब्दों, भाषा, व्यवहार आदि में संयम बरतना अति आवश्यक है । अभी भी समय है सुधार करने के लिये । अन्यथा परिणाम बहुत घातक हो सकते हैं । मुझे ऐसा लगता है, कि जो कुछ हाल के चुनाव में हुआ, और जो छोटा सा झटका लगा; कुछ नेताओं के घमंड के नशे को उतारने के लिये यह अति आवश्यक था ।
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