आसान नहीं है 'सिंधु जल समझौता' तोड़ना, चीन से है भारत को डर

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जम्मू-कश्मीर के उड़ी में आतंकवादी हमले और उसके बाद 18 जवानों के शहीद होने के बाद से भारत में रोष है। देश में पाकिस्तान को सबक सिखाने और उचित कार्रवाई करने की मांग उठी रही है। इसी बीच पाकिस्तान से हुए ‘सिंधु जल समझौता’ को तोड़ने की भी मांग शुरू हो गई है।
भारत की तरफ से ‘सिंधु जल समझौता’ को तोड़ने के संकेत मिले हैं। लेकिन, यह इतना आसान भी नहीं है। भारत की तरफ से उठाया गया कोई भी कदम चीन, नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ जल बंटवारे की व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।

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भारत ने पाकिस्तान के अलावा चीन से भी एक समझौता किया है। इस प्रस्ताव के मुताबिक, चीन ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी तट राज्य और भारत निचला नदी तट राज्य है। ऐसी स्थिति में भारत चीन के साथ जलसमझौता करना चाहता है। यदि भारत ‘सिंधु जल समझौता’ के तहत निचला नदी तट राज्य पाकिस्तान से समझौता तोड़ता है तो उसे चीन के साथ समझौते में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
ऊपरी तट नदी राज्य में स्थित चीन हाइड्रोलॉजिकल सूचनाएं रोकने के अलावा निचले तट नदी राज्य में नदी के बहाव में अवरोध खड़ा कर सकता है। बताते चलें कि इस मुद्दे पर चीन पहले भी ज्यादा भरोसेमंद नहीं रहा है और हाइड्रोप्रोजक्ट्स की जानकारी देने से इनकार कर चुका है।

वहीं, दूसरी ओर देखें तो 1960 में हुए सिंधु जल समझौते में वर्ल्ड बैंक मध्यस्त की भूमिका में थी। ऐसे में वह इसमें तीसरा पक्ष है। वहीं, यह भी माना जाता है कि इस समझौते की वजह से ही दूसरी नदी प्रोजेक्ट्स पर बातचीत हो रही है। इसकी मदद से भारत को जम्मू-कश्मीर में बगलिहार डैम के लिए हरी झंडी मिल चुकी है।
बताया जाता है कि सिंधु जल समझौते के आधार पर किशनगंगा प्रॉजेक्ट में भारत को पॉवर जेनरेशन के लिए पानी डायवर्ट करने का अधिकार मिला था। यह मामला हेग की इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चला था और सिंधु जल समझौते के मार्फत ही यह फैसला भारत के पक्ष में आया था।