भारत-पाकिस्तान के इस झगड़े में नुकसान उनका ही नहीं, सारे सार्क देशों का हो रहा है

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अपवाद के रूप में भूटान को छोड़ दें तो सार्क के सभी देश सुरक्षा से जुड़ी गंभीर चुनौतियों से जूझ रहे हैं. बीते साल बांग्लादेश में उदारवादियों के ऊपर हमले बढ़ गए. अफगानिस्तान में फिर तालिबान की पकड़ बढ़ रही है. भारत और पाकिस्तान भी काफी समय से आतंक के साये में हैं. इसे देखते हुए सार्क देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन की अहमियत समझी जा सकती है.
लेकिन इस बार इस्लामाबाद में हुआ यह आयोजन एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के टकराव की भेंट चढ़ गया. गृहमंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान पर हमला बोला. उन्होंने वहां जुटे अपने समकक्षों के साथ आयोजित दोपहर के भोज में भी हिस्सा नहीं लिया. वहां आए दूसरे देशों के मंत्रियों की बात दो पक्षों के टकराव से उठे शोर में डूब गई.
इस्लामाबाद में हुए इस टकराव को दोनों देशों के राजनेता अपने-अपने वोटरों को लुभाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन, इससे यह भी पता चलता है कि सामूहिक रूप से नीतिगत चुनौतियों का सामना करने के मामले में दक्षिण एशिया आज भी बाकी दुनिया से पीछे है. यह त्रासदी ही है कि जहां दूसरे देश और बहुदेशीय समूह क्षेत्रीय बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ रहे हैं वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में हम इन बाधाओं को और मजबूत होता देख रहे हैं. आपसी रूप से अलग-थलग रहने के मामले में दक्षिण एशिया दुनिया में सबसे आगे है. दुनिया की आबादी का 16.5 फीसदी हिस्सा यहां रहता है लेकिन, वैश्विक व्यापार में इसकी हिस्सेदारी महज दो फीसदी है. अर्थशास्त्री यह भी बताते हैं कि दक्षिण एशिया के कुल व्यापार में आपसी व्यापार का छह फीसदी से भी कम योगदान है. इस क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में आपसी कारोबार का हिस्सा दो फीसदी ही है जबकि पूर्वी एशिया के लिए यह आंकड़ा 20 फीसदी है यानी दस गुना ज्यादा. इससे पता चलता है कि हम क्या खो रहे हैं.
आसियान इसकी एक असाधारण मिसाल है कि चुनौतियों के बावजूद नीतिनियंता आपसी मेलजोल की दिशा में किस तरह काम कर सकते हैं. इस संगठन के तहत आने वाले देशों ने 2010 में एशिया को आपस में जोड़ने के लिए एक मास्टरप्लान बनाया था. इसके तहत प्राथमिकता वाली कुछ परियोजनाओं की एक सूची बनाई गई थी और हर सदस्य एक निश्चित समय सीमा में इन्हें पूरा करने पर सहमत हुआ था. यह जरूर है कि सभी परियोजनाएं योजना के मुताबिक नहीं चल रही हैं क्योंकि दुनिया के आर्थिक हालात ठीक नहीं है जिसके चलते फंड की कमी हो रही है. इसके बावजूद सभी देश दृढ़संकल्प है कि समूचे आसियान क्षेत्र को एक बाजार और उत्पादन केंद्र बनाया जाए. आसियान अब यह भी आकलन कर रहा है कि आपस में जुड़ने की इसकी परियोजनाओं पर चीन की मैरीटाइम सिल्क रोड का का क्या असर पड़ेगा. उधर दक्षिण एशिया की दो बड़ी ताकतें राजनीतिक नफे-नुकसान की कवायदों में व्यस्त हैं.
वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र खिसकता हुआ एशिया की तरफ बढ़ रहा है. अपने विशाल आकार के चलते भारत भी इस खेल में एक बड़ा खिलाड़ी होगा. लेकिन क्षेत्रीय एकजुटता की उपेक्षा करना एक ऐसी गलती है जो उसे एक दायरे से आगे नहीं बढ़ने देगी. यह गलती उन करोड़ों युवाओं का नुकसान करेगी जिनकी आंखों में बड़े सपने हैं.