कोरोना वायरस वैश्विक महामारी का संकट दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। वहीं अनलॉक 4 के दिशानिर्देश भी जारी कर दिए गए हैं। लोगों की ज़िंदगी को सामान्य बनाने के लिए अनलॉक 4 में रियायतें भी दी गई हैं और कई चीजें खोल दी गई हैं। मगर इन सब तमाम कोशिशों के बाद भी कोरोना थमने का नाम नही ले रहा है। इस तरह लोगों के सामने दोतरफा चुनौती सामने है पहली खुद को इससे बचाना है और दूसरा लॉकडाउन (Lockdown) से मुकाबला करते हुए कामकाज चलाना है। इतना सब हो जाने के बाद लोगों के दिल में कोरोना संक्रमण को लेकर जितना डर पहले था, अब इतना डर नही रहा है पहले लोग संक्रमण के डर के कारण अपने घरों से बाहर भी नहीं निकलते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। ज़्यादातर लोगों ने मान लिया है कि उन्हें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा। यही कारण है कि लोग पूरी सावधानी बरतते हुए नौकरी या कामकाज पर जा रहे हैं। इस सब के पीछे मनोविज्ञान है।
पिछले कुछ दिनों में हुए अध्यनों से भारतीयों की राय सामने आयी कि उन्हें कोरोना से नहीं, बल्कि आर्थिक बदहाली से ज्यादा डर लगता है। यही वजह है कि कोरोना रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है, फिर भी सड़क पर पहले से ज्यादा लोग नजर आ रहे हैं। फोर्टिस हेल्थ केयर में मेंटल हेल्थ एंड बिहेवरियल साइंसेस के डायरेक्टर डॉ. समीर पारिख के अनुसार, “आर्थिक स्थिति अच्छे जीवन का आधार है और कई लोगों को लॉकडउन में सब कुछ बंद होने के कारण कठिन स्थितियों का सामना करना पड़ा है। लेकिन विपरीत हालात में परिजनों का आपसी सपोर्ट सबसे अहम् है। जो लोग कोविड19 के बदली जिंदगी के असर के बीच अगर डिप्रेशन में हैं, तो उन्हें ऐसे सपोर्ट सिस्टम की सबसे ज्यादा जरूरत है।”
डॉ. समीर पारिख द्वारा कहा जाता है कि, “आर्थिक स्थिति पर मार पड़ने से इन्सान सबसे ज्यादा टूट रहा है। उसने जब लोन लिया था, तब सोचा नहीं था कि कभी ईएमआई के पैसे भी नहीं होंगे। ऐसे लोगों को मदद की जरूरत है। आर्थिक मदद भले ही न की जाए, लेकिन भावनात्मक सपोर्ट जरूर करें। परिवार और दोस्त इसमें सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं। यदि ऐसे हालात का असर दिमाग पर पड़ रहा है तो डॉक्टर की मदद ले सकते हैं। मरीज को यह बताएं कि डॉक्टरों के पास उनकी इस मनोदशा का इलाज है। इसलिए मजबूती से आगे बढ़ें। कोरोना महामारी महज वक्त की बात है। कुछ समय बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा।”
लॉकडाउन की वजह से सभी तरह के कामकाज थप पड़ गए हैं। लोगों को 2-3 महीने तक घरों में कैद रहना बहुत मुश्किल भरा रहा। इसका मनोवैज्ञानिक कारण कई लोगों पर पड़ा। खासतौर पर युवाओं पर। आज भी कई युवा ऐसे हैं, जो लॉकडाउन के कारण अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। कई लोग इतना संवेदनशील हो गए हैं कि सेनेटाइजर का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं।myUpchar से जुड़े एम्स के डॉ. अजय मोहन के मुताबिक़, जब तक इलाज नहीं मिल जाता, तब तक सावधानी ही कोरोना का इलाज है। इसलिए वो लोग जो घर से बाहर निकल रहे हैं, ऑफिस जा रहे हैं तो उन सकभी लोगों को सावधानी बरतने की खास ज़रूरत है। जैसे कि आने हाथो को बार बार सेनिटाइज़ करें, सामाजिक दूरी का ख्याल रखें। अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए पोष्टिक चीज़ें खाएं।