नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार पर तीखे सवाल दागे। कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि 2004 के बाद से मुख्य चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल क्यों कम हो रहे हैं? निष्पक्ष और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया के लिए कानून क्यों नहीं बना? मौजूदा प्रक्रिया में सरकार अपनी पसंद के व्यक्ति को चुनाव आयुक्त नियुक्त कर सकती है।
जबकि, ऐसे शख्स की नियुक्ति की जानी चाहिए जो बिना किसी दबाव या प्रभाव के स्वतंत्र फैसले ले सके। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के चयन और नियुक्ति को लेकर कानून की बात कही गई है लेकिन 7 दशक बाद भी कोई कानून नहीं बना। यह संविधान की ‘चुप्पी’ के शोषण की तरह है। आइए जानते हैं कि चुनाव आयोग को लेकर संविधान में क्या प्रावधान हैं। आखिर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर संविधान क्या कहता है।
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो देश में चुनावों को कराती है। इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुआ था। संविधान के मुताबिक, चुनाव आयोग को स्वायत्तता मिली हुई है और यह स्वतंत्र रूप से काम करता है। संविधान के अनुच्छेद 324 से लेकर 329 तक चुनाव आयोग से जुड़े हुए हैं। इनमें आयोग के सदस्यों की शक्तियां, कामकाज, कार्यकाल वगैरह के बारे में बताया गया है।
चुनाव आयोग से जुड़े संविधान के अनुच्छेद
- अनुच्छेद 324- चुनावों को कराने, नियंत्रित करने, दिशानिर्देश देने, देखरेख की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की
- अनुच्छेद 325- धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को वोटर लिस्ट में शामिल न करने और इनके आधार पर वोटिंग के लिए अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
- अनुच्छेद 326- लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के लिए चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
- अनुच्छेद 327- चुनाव से जुड़े प्रावधानों को लेकर संसद को कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 328- किसी राज्य के विधानमंडल को चुनाव से जुड़े कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 329- चुनाव से जुड़े मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर अंकुश
चुनाव आयोग में कौन-कौन
शुरुआत में चुनाव आयोग में सिर्फ एक ही सदस्य होता था- मुख्य चुनाव आयुक्त। 16 अक्टूबर 1989 से चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा 2 चुनाव आयुक्त की व्यवस्था की गई। उसी दिन वोटर के लिए न्यूनतम उम्र भी 21 साल से घटाकर 18 साल कर दी गई। जनवरी 1990 में एक सदस्यीय चुनाव आयोग को बहाल कर दिया गया। लेकिन अक्टूबर 1993 में राष्ट्रपति ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर फिर से इसे तीन सदस्यीय स्वरूप दिया। तब से यही व्यवस्था चली आ रही है।
कौन करता है नियुक्ति
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते है। ये आईएएस रैंक के अधिकारी होते हैं। इनका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की उम्र (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है। उनका दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जजों के समकक्ष होता है और उन्हें भी वही वेतन और भते मिलते हैं जो सुप्रीम कोर्ट के जजों को मिलते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग का प्रमुख होता है लेकिन उसके अधिकार भी बाकी चुनाव आयुक्तों के बराबर ही होते हैं। आयोग के फैसले सदस्यों के बहुमत या सर्वसम्मति के आधार पर होते हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद से महाभियोग की प्रक्रिया के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के जजों को भी हटाने की यही प्रक्रिया होती है। हालांकि, चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति जब चाहे तब हटा सकता है। चुनाव आयुक्त अपने कार्यकाल से पहले इस्तीफा दे सकते हैं या कार्यकाल पूरा होने से पहले भी उन्हें हटाया जा सकता है।
नियुक्ति प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों उठाए सवाल
मौजूदा व्यवस्था के तहत सरकार अपनी पसंद के नौकरशाहों को मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के तौर पर नियुक्त करती है। जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की 5 जजों वाली संविधान पीठ चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र से कड़े सवाल किए। इस दौरान शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 324 (2) का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें CEC/EC के चयन और नियुक्ति के लिए कानून बनाने की बात कही गई है लेकिन पिछले 7 दशकों में कुछ नहीं किया गया। बेंच ने कहा, ‘यह दिखाता है कि संविधान की चुप्पी का किस तरह शोषण होता है।’
अनुच्छेद 324(2) में क्या है जिसका सुप्रीम कोर्ट ने किया जिक्र
आखिर अनुच्छेद 324 (2) में है क्या? संविधान का यह अनुच्छेद कहता है, ‘चुनाव आयोग मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों से, यदि कोई हों, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर तय करें, मिलकर बनेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, संसद की तरफ से बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।’ सुप्रीम कोर्ट का इशारा इसी अनुच्छेद की तरफ था और उसने पूछा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी चयन प्रक्रिया बनाने के खातिर 72 वर्षों में कोई कानून क्यों नहीं बना।
6 साल का कार्यकाल लेकिन 2004 से ऐसा नहीं हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के बाद मुख्य चुनाव आयुक्तों के छोटे कार्यकाल को लेकर भी सवाल किए। संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस के.एम. जोसफ ने कहा कि साल 2004 से देखें तो किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। यूपीए सरकार के 10 साल के शासन में 6 मुख्य चुनाव आयुक्त हुए। एनडीए सरकार के 8 वर्षों में 8 मुख्य चुनाव आयुक्त हो चुके हैं। यह चिंताजनक है। चूंकि संविधान इस बारे में चुप है तो उसकी चुप्पी का फायदा उठाया जा रहा है। कोई कानून नहीं है इसलिए वे (केंद्र) कानूनन सही भी हैं। कानून के अभाव में कुछ किया भी नहीं जा सकता है।