बेटे को परीक्षा में बैठाने के लिए मजदूर ने किया ये काम, जिसे देख आनंद महिंद्रा ने किया…

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कोरोनावायरस की महामरी की वजह से बहुत लोगों को मुसीबतों का सामने करना पड़ा है। ऐसे में सबसे ज़्यादा परेशानियों का सामना मजदूरों को करना पड़ा। ऐसा ही कुछ परेशानी भरा मामला एक मजदूर के साथ पेश आया लेकिन अब उस काम को करने की वजह से इस मजदूर को सम्मान मिल रहा है। बता दें कि ये मामला मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के धार (Dhar) जिले का है। जहां एक मजदूर ने अपने बेटे को परीक्षा में बैठाने के लिए साइकिल से 105 किलोमीटर का सफर तय किया। 105 किलोमीटर साइकिल चलाकर इस मजदूर पिता शोभाराम ने अपने बच्चे को परीक्षा केंद्र पर पहुंचाया था।

खबर के मुताबिक मध्यप्रदेश में ‘रुक जाना नहीं’ अभियान के चलते कक्षा 10 और 12वीं की परीक्षाओं के आसफल रहे छात्रों को पास होने का एक और मौका दिया गया है। वहीं मजदूर शोभाराम के बेटे को भी 10वीं की तीन विषयों की परीक्षा देनी थी। लेकिन उसका परीक्षा केंद्र उसके घर से 105 किलोमीटर दूर था। मुसीबत तो यह थी कि कोरोनावायरस की इस महामारी के कारण सभी बस बंद थी। जिसको देख मजदूर रात 12 बजे ही अपनी साइकिल पर बेटे को बैठा के रवाना हो गया। भले ही उसको बहुत मेहनत का काम करना पड़ा लेकिन अब उसकी मेहनत रंग लाई। उनके इस मेहनत को अब सम्मान मिला है।
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बताया जा रहा है कि भारत के बड़े बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा (Anand Mahindra) इस मजदूर की मदद के लिए सामने आए हैं। इस मजदूर की मेहनत को देखते हुए उन्होंने एक ट्वीट लिखा। इस ट्वीट में उन्होंने लिखा कि “क्या कोई पत्रकार हमें इनसे कनेक्ट करवा सकते हैं? ये वीर माता-पिता हैं जो अपने बच्चों के लिए बड़ा सपना देखते हैं। ये वे आकांक्षाएँ हैं जो देश की प्रगति को बढ़ावा देती हैं। हमारा फाउंडेशन बच्चे की आगे की पढ़ाई के लिए सहयोग करना चाहता है। इनकी मदद करना हमारे लिए एक बड़ी बात होगी।”

वहीं जब इस मजदूर पिता से बातचीत हुई तो उन्होंने बोला कि मैं मजदूर हूं लेकिन अपने बेटे को कभी ये दिन नहीं देखने दूंगा। उन्होंने कहा कि “मैं मजदूरी करता हूं, लेकिन बेटे को अफसर बनाने का सपना देखा है और इसे हर कीमत पर पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं। ताकि बेटा और उसका परिवार अच्छा जीवन जी सके। बेटा पढ़ाई में दिल-दिमाग लगाता है और होनहार है, लेकिन हमारी बदकिस्मती है कि कोरोना के कारण गांव में बच्चे की पढ़ाई नहीं हो पाई। जब परीक्षा थी, तब ट्यूशन नहीं लगवा पाया, क्योंकि गांव में शिक्षक नहीं हैं। इसलिए बेटा तीन विषयों में रुक गया। मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं, इसलिए कुछ नहीं कर पाया।