36 से 40 घंटे के सफर के बाद मुम्बई से द्वारिका पहुंचा करते थे लोग, भारतीय नागरिक को मुश्किल से मिलती थी एंट्री…

0
311

आज कल देश में सफर करना कितना आसान हो गया है। लोग रोड के जरिए, रेल के जरिए कभी भी और कही भी आ जा सकते हैं। इसके लिए उनको कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन ऐसा समय ऐसा था जब भारतीय नागरिक को देश में ही सफर करने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। ये समय आजादी के पहले का है। बता दें कि भारत में पहली ट्रेन 16 अप्रेल 1853 को मुम्बई और ठाणे के बीच चली थी। इस दौरान भारतीयों को तीसरी श्रेणी में ही यात्रा की अनुमति थी। इस बात कर जानकारी सूरत निवासी एक चिकित्सक ने दी है।

वह बताते हैं कि “मुम्बई से द्वारिका जाने के लिए 36 से 40 घंटे का सफर तय करना पड़ा था, लेकिन अब यह दूरी 17-18 घंटे पूरी होती है।” इसके अलावा जब मुम्बई निवासी डॉ. भानुचन्द्र एम. गोकाणी से मीडिया की बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि “मैं ट्रेन से समय-समय पर अपने गांव द्वारिका जाया करता था। लेकिन ट्रेन पर्याप्त नहीं थी और जो ट्रेन थीं उनकी गति काफी धीमी होती थी। आजादी से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को चर्चगेट स्टेशन यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था।”

IMG 20220818 WA0000

उन्होंने आगे बात करते हुए कहा कि “प्लेटफार्म पर पैर रखे बिना धक्के खाते हुए कब बाहर पहुंच गए पता ही नहीं चला। पहले ट्रेन में प्रथम, द्वितीय, इंटर और तृतीय श्रेणी होती थी। इसमें भारतीयों को तृतीय श्रेणी कोच में ही यात्रा की अनुमति होती थी। उच्च श्रेणी वाले कोचों में देश के लोगों को ही प्रवेश नहीं दिया जाता था। इसके अलावा स्टेशन के अच्छे वेटिंग हॉल या शहर के बड़े रेस्तरां में भी देश के लोगों को जाने नहीं दिया जाता था।”