हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एम एस स्वामीनाथन का 98 साल की उम्र में निधन हो गया है. उन्होंने चेन्नई में अंतिम सांस ली. महान एग्रीकल्चर साइंटिस्ट को भारत में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. कृषि के क्षेत्र में सराहनीय काम के लिए उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. डॉ. एमएस स्वामीनाथन लंबे समय से बढ़ती उम्र की वजह से परेशानियों का सामना कर रहे थे. देश-विदेश के प्रतिष्ठित सम्मानों के साथ-साथ डॉ स्वामीनाथन के नाम 81 डॉक्टरेट उपलब्धियां हैं. आइए उनके करियर पर एक नजर डालते हैं.
स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को चेन्नई (उस समय के कुंभकोणम, मद्रास प्रेसीडेंसी) में हुआ था. उनके पिता एक सर्जन थे. स्वामीनाथन ने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी में और कोयंबटूर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से एग्रीकल्चर साइंस में BSc की डिग्री ली है. इसके बाद उन्होंने साल 1949 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) से एग्रीकल्चर साइंस में मास्टर्स की डिग्री ली.
पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद स्वामीनाथन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. 1952 में उन्होंने यहां से पीएचडी की. साल 1954 में भारत आकर IARC नई दिल्ली के फैकल्टी बन गए. 1961 से लेकर 1972 तक 11 साल वो यहां निदेशक के तौर पर कार्यरत थे. बतौर एग्रीकल्चर साइंटिस्ट स्वामीनाथन को कई पुरस्कार मिले.
अवॉर्ड
- 1961 में जैविक विज्ञान में अहम योगदान के चलते स्वामीनाथन को एसएस भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
- 1986 में स्वामीनाथन को विश्व स्तर के अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
- उनके महान योगदान के सम्मान में, स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- साल 2000 में उन्हें यूनेस्को में महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- 2007 में उनके नाम लाल बहादुर शास्त्री पुरस्कार शामिल हो गया.
डॉ एमएस स्वामीनाथन को दुनिया भर के यूनिवर्सिटी से सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें 81 डॉक्टरेट उपाधिया मिली हुई हैं. वह संसद भी रह चुके हैं. स्वामीनाथन साल 2007 से 2013 तक राज्यसभा के सदस्य थे.