धर्मवीर भारती के सर्वकालिक महान उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ को पर्दे पर सिर्फ एकबार उतारा गया है और वह भी एक साधारण से सीरियल ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ में. यह सीरियल पिछले साल आया था. भारतीय जनमानस पर एक लंबे समय तक इस उपन्यास का जो असर रहा उसे देखते हुए इस बात पर हैरानी होती है कि गुनाहों का देवता पर कोई फिल्म नहीं बनी. किसी महान उपन्यास की ऐसी नाकद्री शायद ही दूसरे देशों के सिनेमा ने अपने साहित्य के साथ की होगी लेकिन हमारे यहां इस उपन्यास पर सिर्फ एक कोशिश के बाद ही फिल्मकारों ने हमेशा के लिए हार मान ली है.
वो पहली और शायद आखिरी कोशिश 1969 में शुरू हुई जब इस उपन्यास पर ‘एक था चंदर एक थी सुधा’ नाम से ही फिल्म बनाने का फैसला लिया गया. उपन्यास का ओरिजनल नाम ‘गुनाहों का देवता’ इस फिल्म के टाइटल के लिए उपयोग नहीं किया जा सका क्योंकि उसी दौरान रिलीज हुई जितेंद्र की एक फिल्म का नाम भी ‘गुनाहों का देवता’ था, हालांकि उस फिल्म का धर्मवीर भारती के उपन्यास से कोई लेना देना नहीं था.
‘एक था चंदर एक थी सुधा’ में नायक का किरदार निभाने के लिए अमिताभ बच्चन को लिया गया और नायिका के लिए रेखा को. यह उस दौर की बात है जब बच्चन फिल्मों में अपने करियर की शुरुआत फ्लॉप फिल्म से कर चुके थे और इस वजह से इस फिल्म के लिए भी धन जुटाने में निर्माताओं को पसीने छूट रहे थे. फिल्म की शूटिंग कुछ दिनों तक इलाहाबाद में हुई भी और अमिताभ व रेखा के बीच रोमांटिक गीत भी शूट हुए. लेकिन जल्द ही पैसों की तंगी ने फिल्म को डिब्बाबंद करवा दिया.
एक लंबा वक्त गुजरने के बाद 1973 में ‘जंजीर’ आई और बच्चन की बढ़ चुकी मार्केट वेल्यू ने इस फिल्म के दोबारा फ्लोर पर जाने की उम्मीदें बढ़ा दीं. लेकिन इस दौरान बच्चन न सिर्फ दूसरी बड़ी फिल्मों में व्यस्त हो चुके थे बल्कि एंग्री यंग मैन की छवि में भी कैद हो चुके थे. पैसा लगाने वाले सेठों ने ऐसी किसी भी फिल्म पर पैसा लगाने से इंकार कर दिया जो बच्चन की धन कमाकर देने वाली इमेज को भुनाने की नीयत नहीं रखती थी.
इसके बाद ‘गुनाहों का देवता’ के इस फिल्मी संस्करण को बड़ा परदा कभी नसीब नहीं हुआ. कई सालों बाद दक्षिण के एक निर्माता पूर्णचंद्र राव ने डिब्बाबंद ‘एक था चंदर…’ के राइट्स खरीदने के साथ ही अमिताभ बच्चन का फिल्म के लिए किया कांट्रेक्ट भी अपने नाम कर लिया और उस कांट्रेक्ट के सहारे अमिताभ को रजनीकांत की एक फिल्म में छोटी-सी भूमिका ऑफर की. यह भूमिका वक्त के साथ बड़ी होते-होते मुख्य नायक की हो गई और 1983 में अमिताभ बच्चन के हिस्से में रजनीकांत और हेमा मालिनी के साथ वाली मशहूर फिल्म ‘अंधा कानून’ आई.
विडंबना देखिए, एक तरफ तो ‘एक था चंदर…’ 13-14 साल के लंबे इंतजार के बाद भी बन न सकी, वहीं उस फिल्म के डिब्बाबंद होने की वजह से ही अमिताभ बच्चन के हिस्से में ‘अंधा कानून’ नाम की वो फिल्म आई जो अपने समय की बड़ी सफलता कहलाई.