श्री बदरीनाथ धाम कपाटोत्सव 2025 : 4 मई को खुलेंगे कपाट, 22 अप्रैल से शुरू होगी गाडू घड़ा यात्रा

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ऋषिकेश/देहरादून : धार्मिक आस्था और परंपराओं की जीवंत मिसाल, श्री बदरीनाथ धाम के कपाट इस वर्ष 4 मई रविवार की प्रातः 6 बजे श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु विधिवत रूप से खोले जाएंगे। इस शुभ अवसर से पहले भगवान बदरीविशाल के अभिषेक में प्रयुक्त होने वाले तिलों के तेल से भरे चांदी के कलशों की परंपरागत गाडू घड़ा यात्रा 22 अप्रैल को राजदरबार नरेंद्र नगर से आरंभ होगी।

तेलकलश यात्रा की पूरी जानकारी 

21 अप्रैल को श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के पदाधिकारी व सदस्य डिम्मर गांव से ऋषिकेश पहुंचेंगे।

22 अप्रैल की सुबह ये सभी राजदरबार नरेंद्र नगर पहुंचेंगे, जहां सांसद रानी माला राज्यलक्ष्मी शाह सहित सुहागिन महिलाएं पीत वस्त्र धारण कर ओखली में तिल कूटकर हाथों से तेल निकालेंगी और उसे चांदी के घड़े में भरेंगी। इसी दिन राजा मनुजयेंद्र शाह इस तेलकलश यात्रा को श्री बदरीनाथ धाम के लिए रवाना करेंगे।

शाम को यात्रा श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के रेलवे रोड स्थित चेला चेतराम धर्मशाला, ऋषिकेश पहुंचेगी।

23 अप्रैल को यहां विधिवत पूजा-अर्चना के बाद यात्रा मुनिकीरेती के लिए रवाना होगी।

24 अप्रैल को यह श्रीनगर (गढ़वाल) पहुंचेगी और 25 से 29 अप्रैल तक डिम्मर गांव स्थित श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में प्रवास करेगी।

30 अप्रैल को यह यात्रा गरुड़ गंगा, पाखी पहुंचेगी।

1 मई को श्री नृसिंह मंदिर, जोशीमठ में विशेष पूजा-अर्चना और भोग लगेगा।

2 मई को गाडू घड़ा, आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी व श्री रावल अमरनाथ नंबूदरी जी श्री नृसिंह मंदिर से योगबदरी, पांडुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेंगे।

3 मई की शाम को सभी देव डोलियां – श्री उद्धव जी, श्री कुबेर जी, गाडू घड़ा, आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी व श्री रावल जी – श्री बदरीनाथ धाम पहुंचेंगी।

27 अप्रैल को श्री ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ में भैरवनाथ जी की पूजा होगी। 28 अप्रैल को बाबा केदारनाथ की पंचमुखी मूर्ति उखीमठ से यात्रा पर निकलेगी और विभिन्न पड़ावों से होते हुए 1 मई की संध्या केदारनाथ धाम पहुंचेगी। 2 मई शुक्रवार को केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे।

पूरे कार्यक्रम के दौरान मंदिर समिति के अधिकारी, डिमरी पंचायत के सदस्यगण, स्थानीय प्रशासनिक अमला, रावलजी, और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहेंगे। इस आयोजन में आस्थावानों की भावनाओं, परंपराओं की गरिमा और उत्तराखंड की देवभूमि संस्कृति का शानदार समागम देखने को मिलेगा।

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