उत्तराखंड मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय के निर्णय पर कांग्रेस ने सधी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी महासचिव अंबिका सोनी ने मोटे तौर पर फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि बागी विधायकों को लेकर अदालत का दिशानिर्देश समझ से परे है। सोनी ने कहा कि इसके बाबत कांग्रेस कानूनी राय ले रही है।
सोनी ने कहा कि बागी विधायकों की सदस्यता को विधानसभा अध्यक्ष ने खत्म कर दिया है। सदन की सदस्यता के मामले में विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता। ऐसे में ये विधायक सदन के भीतर घुसने और मतदान में हिस्सा लेने के पात्र नहीं रह गए हैं।
दूसरी तरफ अदालत के निर्णय के अनुसार यदि ये सदन के बाहर वोट देंगे, तो नई परंपरा होगी। इसलिए यह निर्णय समझ से परे है। इसको लेकर कांग्रेस कानूनी विशेषज्ञों मसलन कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी समेत अन्य से राय ले रही है।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि पुरानी कहावत है, एक गलत काम करो तो कई ऐसे काम करने पड़ते हैं। केंद्र सरकार ने ऐसा अरुणाचल प्रदेश से शुरू किया था। इसके बाद उसने उत्तराखंड में ऐसा किया। केंद्र सरकार की भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने की मंशा से मणिपुर, हिमाचल की कांग्रेस सरकारों में भी डर है।
अंबिका ने कहा कि उत्तराखंड में हम अपने नाराज विधायक नहीं संभाल पाए, यह हमारी कमजोरी है। पार्टी का अंदरूनी मामला है, लेकिन भाजपा इनकी कौन है? आखिर भाजपा कैसे इन्हें बस में बैठाकर राज्यपाल के पास ले गई, कॉमन मेमोरेंडम पर दस्तखत कराया, चार्टर्ड प्लेन से इन्हें गुड़गांव के लीला होटल में लाई?
सोनी ने कहा कि हमें पता है कुछ विधायक क्यों नाराज थे, कुछ मंत्री, सांसद, या कुछ बनना चाहते थे। कांग्रेस अपने विधायकों के साथ क्या करती है, कैसे करती है, देखने की बात है। यह हमें करना है। इसमें भाजपा कौन होती है?
सोनी ने कहा कि 31 मार्च को सदन में हरीश रावत सरकार बहुमत साबित कर देगी। पहले भी साबित कर देते, लेकिन जैसे ही केंद्र सरकार को आभास हुआ उसने 24 घंटे पहले राज्य सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी।
सोनी ने कहा कि रावत के साथ 34 विधायकों ने शपथ पत्र के साथ राज्यपाल से भेंट की है। वह भाजपा और अमित शाह को रोकने के लिए डटे हैं। ऐसे में शक्ति परीक्षण के दौरान पार्टी व्हिप जारी करना तो केवल प्रक्रियागत होगा।